शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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उसकी बहन को डाउन सिंड्रोम है तो क्या रोज़ा न रखने के कारण उसके लिए कफ़्फ़ारा अनिवार्य हैॽ

प्रश्न

मेरी एक बहन है, जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है। वह इस साल पहले-पहल युवावस्था (वयस्कता) को पहुंची है और वह रोज़ा रखने में सक्षम नहीं है। क्या हम उसकी तरफ से फिद्या अदा करेंॽ या क्या करेंॽ और उसकी मात्रा कितनी हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सबसे पहले:

डाउन सिंड्रोम : बच्चों को होनेवाली एक बीमारी है, जिसमें बौद्धिक और शारीरिक बलों में मंदता होती है, उसके बाहरी संकेतों और लक्षणों में : संकीर्ण आँखें, छोटी गर्दन, छोटे हाथ और मांसपेशियों में ढीलापन शामि है।

दूसरा :

रोज़ा के अनिवार्य होने के लिए बुद्धि का होना शर्त है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : "तीन प्रकार के लोगों से क़लम उठा लिया गया है : उस पागल व्यक्ति से जिसकी बुद्धि अभिभूत है यहाँ तक कि वह अपने होश में आ जाए, सोने वाले व्यक्ति से यहाँ तक कि वह जाग जाए, और बच्चे से यहाँ तक कि वह बालिग़ (व्यस्क) हो जाए।" इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4399) ने रिवायत किया है और अल्लामा अलबानी ने “सहीह सुनन अबू दाऊद” में इसे सही कहा है।

यदि आपकी बहन बौद्धिक विकलांगता (मानसिक मंदता) से इस हद तक प्रभावित है कि वह विवेक (भले बुरे के पहचान) की क्षमता नहीं रखती है, तथा वह इस्लामी शरीयत के आदेश-निर्देश को नहीं समझती है, तो ऐसी स्थिति में उसपर न रोज़ा रखना अनिवार्य है और न उसकी क़ज़ा करना। तथा आप लोगों को (छूटे हुए रोज़ों के लिए) उसकी ओर से फिद्या भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह मूलतः उत्तरदायी ही नहीं है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने “अश-शर्हुल मुम्ते” (6/324) में कहा : “जिस किसी के पास बुद्धि (विवेक) नहीं है, वह उत्तरदायी नहीं है, और इस्लाम धर्म के कर्तव्यों में से कोई भी कर्तव्य उसके लिए अनिवार्य नहीं हैं, न नमाज़ पढ़ना, न रोज़ा रखना, न रोज़े के बदले गरीबों को भोजन कराना। अर्थात कुछ वित्तीय दायित्वों के अपवाद के साथ, उसपर बिल्कुल कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है।” शैख की बात समाप्त हुई।

और अल्लाह ही सबसे अच्छा ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर