सोमवार 24 जुमादा-1 1446 - 25 नवंबर 2024
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वह विवाह के विलंब होने से डरती है तथा जब भी उसकी कोई सहेली शादी करती है तो वह दुखी होती है।

प्रश्न

मैं हमेशा अपनी सहेलियों को देखती हूँ कि उनकी शादी हो गई तथा कुछ सहेलियों की मंगनी हो चुकी है, तो मैं इससे दुखी होती हूँ और मुझे लगता है कि मेरी शादी की आयु निकल जाएगी। और चूँकि कोई मुझे देखता नहीं है; क्योंकि मैं घर में रहती हूँ, इसलिए मैं यह सोचती हूँ कि मेरी शादी कभी नहीं होगी। और मेरे लिए पति कहाँ से आयेगा जबकि मैं घर में रहती हूँ, बाहर नहीं निकलती हूँ। तथा न मुझे कोई देखता है और न ही मैं काम करती हूँ। और जब लड़कों से मेरे संबंध कटे हुए हैं तो मुझसे शादी करने वाला व्यक्ति कहाँ से आयेगाॽ आप मुझे क्या सलाह देते हैंॽ इस संबंध में सही प्रक्रियाएं क्या हैं जिनका पालन किया जाना चाहिएॽ हमेशा से मेरा यह विचार है कि : किसी व्यक्ति से शादी करने से पहले उसको अच्छी तरह से जानना ज़रूरी है, तथा उसको जानने के लिए कुछ समय तक उससे बात-चीत करना चाहिए ताकि बाद में कोई बुरी चीज़ सामने न आए अथवा इसी प्रकार की कोई और बात हो। तो क्या यह (विचार) सही हैॽ या कि तुरंत शादी कर लेनी चाहिएॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्व प्रथम :

यदि मुसलमान अल्लाह तआला के इस कथन पर मनन चिंतन करे :

  نحْنُ قَسَمْنَا بَيْنَهُمْ مَعِيشَتَهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَرَفَعْنَا بَعْضَهُمْ فَوْقَ بَعْضٍ دَرَجَاتٍ  

[الزخرف: 32].

“हमने ही सांसारिक जीवन में उनके जीवन-यापन के साधन को उनके बीच बाँटा है और हमने उनमें से कुछ लोगों को कुछ दूसरे लोगों से श्रेणियों की दृष्टि से उच्च रखा है।” (सूरतुज़-ज़ुख़रुफ : 32)

तो उसे ज्ञात होगा कि लोगों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है। चुनाँचे कोई अमीर है तो कोई ग़रीब, कोई मज़बूत़ है तो कोई कमज़ोर, कोई स्वस्थ है तो कोई रोगी, कोई विवाहित है तो कोई अविवाहित, किसी को संतान दिया गया है तो किसी को संतान नहीं दिया गया है... इत्यादि।

तथा उसे ज्ञात होगा कि यह विभाजन अल्लाह तआला की तरफ़ से है, किसी मनुष्य की ओर से नहीं है। उस समय उसका हृदय संतुष्ट हो जाएगा, और उसके दिल में उस व्यक्ति के लिए कुछ भी ईर्ष्या नहीं पैदा होगी जिसे अल्लाह ने कोई नेमत प्रदान की है। तथा उसके दिल में कुछ भी चिंता और दु:ख उत्पन्न नहीं होगा कि उसे उस तरह जीवन का आनंद नहीं मिला जिस तरह कि अमुक व्यकित को जीवन का आनंद प्राप्त है। क्योंकि वह जानता है कि यह सब अल्लाह तआला के आदेश और उसकी इच्छा से है। अतः जो अल्लाह ने चाहा वह हुआ और जो अल्लाह ने नहीं चाहा वह नहीं हुआ।

यदि एक मुसलमान व्यक्ति इतनी बात समझ जाए तो वह भविष्य के प्रति चिंतित नहीं होगा, बल्कि वह जानता है कि उसके लिए आवश्यक यह है कि वह अल्लाह के आदेश पर जमा रहे तथा अपना पूरा जीवन अल्लाह के साथ और अल्लाह के लिए गुज़ारे। फिर उसके बाद अल्लाह तआला उसके लिए जो चाहे आजीविका विभाजित करे, लेकिन अल्लाह तआला ने उसे जो आजीविका दी है उस पर उसे संतुष्टि प्रदान कर देगा।

तथ्य यह है कि मनुष्य के लिए उसकी आजीविका निर्धारित है और अल्लाह ने उसके लिए जो आजीविका निर्धारित की है वह बिना कमी या वृद्धि के उसे मिलकर रहेगी। नबी सल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं:

“किसी भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं होगी यहाँ तक कि वह अपनी अधिकतम आजीविका तथा आयु को पूरा कर ले। अतः अल्लाह से डरो और आजीविका तलाश करने में संतुलन से काम लो।” इस हदीस को शैख़ अल्बानी ने “सिलसिला अहादीस सहीहा” (6/865) में सही क़रार दिया है।

इसका मतलब यह है कि : मनुष्य की रोज़ी उसे अवश्य प्राप्त होगी। मनुष्य का कर्तव्य यह है कि वह अल्लाह से डरे और उसके आदेश पर सुदृढ़ रहे। तथा आजीविका की खोज अच्छे ढंग से करे, अर्थातः रोज़ी तलाश करने में संतुलन से काम ले। अतः उसे केवल हलाल (वैध) तरीक़े से ही तलाश करे; क्योंकि वह जितना भी प्रयास करले वह उस चीज़ को कदापि नहीं पा सकता जिसे अल्लाह ने उसके भाग्य में नहीं लिखा है।

अतः आपके घर से बाहर निकलने या युवाओं के साथ आपके संबंधों का कोई औचित्य और आवश्यकता नहीं है . . .

इनमें से किसी भी चीज़ बल्कि इन सब की कोई ज़रूरत नहीं है। अल्लाह ही आपकी शादी का प्रबंध करेगा। इसलिए (अल्लाह से डरो और मांगने में संतुलन से काम लो) तथा आप भविष्य की चिंताओं के बारे में व्यस्त न हों जिन्हें शैत़ान आपके दिल में डालता है ताकि वह आपको अल्लाह के मार्ग से रोक दे। इस समय अल्लाह आपसे जो चाहता है उसमें व्यस्त रहें, और अल्लाह के आदेश पर दृढ़ता के साथ जम जाएं। तथा अल्लाह के यहाँ आपके लिए जो आजीविका निर्धारित है वह अनिवार्य रूप से आपको प्राप्त होगी।

द्वितीय :

जहाँ तक किसी व्यक्ति से शादी करने से पहले उसके बारे में जानने के उद्देश्य से उससे व्यक्तिगत जान पहचान करने तथा कुछ अवधि के लिए उससे बात-चीत करने का संबंध है, तो वस्तुस्थिति यह कहती है कि शादी से पहले इस परिचय का कोई लाभ नहीं है, और यह शादी के सफल होने की कोई गारंटी नहीं है।

तथा अधिक लाभ के लिए प्रश्न संख्या: (84102) का उत्तर देखें। जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि पूर्व ज्ञान तथा प्रेम व इश्क़ की कहानियों पर आधारित अधिकतर शादियाँ असफल रहती हैं और उनका अंत तलाक़ पर होता है।

बल्कि यह ज्ञान लड़की के लिए बहुत खतरनाक है; क्योंकि हो सकता है कि युवक झूठा और धोखेबाज़ हो और वह जो कुछ चाहता है लड़की से प्राप्त कर ले, और लड़की सब कुछ खो दे और उसे कुछ भी हासिल न हो। हर लड़की खुद से यही कहती है : मैं दूसरी लड़कियों की तरह नहीं हूँ तथा वह युवक जिससे मैं प्यार करती हूँ और जिसके साथ बाहर निकलती हूँ वह दूसरे युवाओं की तरह नहीं है। इस चाल के द्वारा, शैत़ान उसे धोखा देता है यहाँ तक कि वह उसके जाल में फंस जाती है और अपना सबकुछ खो देती है, और अंत में उसे पता चलता है कि वह अन्य लड़कियों ही की तरह है।

अधिक लाभ के लिए प्रश्न संख्या : (84089) का उत्तर देखें।

जिस व्यक्ति से शादी करनी है उसकी पहचान करने के लिए उसके धर्म (धार्मिकता), उसकी नैतिकता और उसके उस परिवार के बारे में पूछना पर्याप्त है जिसमें और जिनके साथ उसका पालनपोषण हुआ है। जबकि कुछ समाजों में शैक्षिक एवं सामाजिक स्तर इतना महत्वपूर्ण हो सकता है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। फिर मंगनी की संक्षिप्त अवधि फिर उसके बाद शादी का अनुबंध। तथा आपको मालूम होना चाहिए कि दंपति की नैतिकता का वास्तविक ज्ञान प्रवेश (मिलाप) के बाद ही होता है जब वे दोनों एक ही छत के साये तले आजाते हैं। लेकिन जहाँ तक इससे पहले ... मंगनी और शादी की अवधि के दौरान का मामला है, तो उन दोनों में से प्रत्येक अपनी अच्छाई ही प्रकट करता है, किसी बुराई को प्रकट नहीं करता है। तथा दोनों में से हर एक दूसरे को ख़ुश करने के लिए तकल्लुफ़ (कृत्रिमता) से काम लेता है। फिर वास्तविकता प्रवेश (मिलाप) के बाद दिखाई देती है, चुनाँचे मनुष्य अपनी प्रकृति पर लौट आता है और कृत्रिमता तथा दिखावा (बनावट) से दूर हो जाता है।

अतः शादी से पहले की अवधि कितनी भी लंबी हो जाए, वह काफी नहीं होगी और शादी की सफलता या विफलता की एक वास्तविक अभिव्यक्ति व्यक्त नहीं कर सकती।

हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह आपको सुपथ का मार्गदर्शन करे, और आपको उस चीज़ की तौफीक़ प्रदान करे जो उसे पसंद हो और जिससे वह प्रसन्न हो।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर