सोमवार 24 जुमादा-1 1446 - 25 नवंबर 2024
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क्या आशूरा का अज्र व सवाब उस व्यक्ति को मिलेगा जो इसके रोज़े की नीयत दिन के दौरान करे?

प्रश्न

मुझे आशूरा के दिन रोज़ा रखने की फज़ीलत (विशेषता) का ज्ञान है और यह कि वह पिछले एक वर्ष के पापों का कफ्फारा (प्रायश्चित्त) बन जाता है, परंतु हमारे यहाँ ईसवी कैलेंडर (ग्रेगोरियन कैलेंडर) प्रचलित है, जिसके कारण मुझे आशूरा के दिन का ज्ञान उसकी सुबह को हुआ। उस समय तक मैं नें कुछ खाया नहीं था इसलिए मैं नें रोज़ा रखने कि नीयत कर ली, तो क्या मेरा रोज़ा सही है? और क्या मुझे इस दिन की फज़ीलत और पिछले एक वर्ष के पापों के कफ्फारा का पुण्य प्राप्त होगा?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रशंसा अल्लाह के लिए है कि उसने आपको नवाफिल (स्वैच्छिक उपासना कृत्यों) और आज्ञाकारिता का लालायित बनाया। हम उस से दुआ करते हैं कि वह हमें और आप को इस पर साबित क़दम (सुदृढ़) रखे।

जहाँ तक रोज़े की नीयत रात ही से करने के बारे में आप के प्रश्न का संबंध है, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ऐसा प्रमाण साबित है जो यह तर्क देता है कि नफ्ल (स्वैच्छिक) रोज़े की नीयत दिन में करना सही है, जब तक मनुष्य ने फज्र के बाद रोज़ा तोड़नेवाली चीज़ों में से किसी चीज़ का प्रयोग न किया हो। चुनाँचे आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने वर्णन किया है कि एक दिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी पत्नियों के पास तश्रीफ लाए और फरमाया : ‘‘क्या तुम लोगों के पास कोई (खाने की) चीज़ है? उन्होंने जवाब दिया : नहीं। आप ने फरमाया : तो फिर मैं रोज़े से हूँ।” (सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 170,1154)

हदीस में प्रयुक्त शब्द ‘‘इज़न” (अर्थात : तब, तब तो, तो फिर) वर्तमान काल को दर्शाने के लिए आता है। यह इस बात का प्रमाण है कि नफ्ल रोज़े की नीयत दिन में करना जायज़ है। जबकि फर्ज़ रोज़े का मामला इसके विपरीत है, वह रात ही से नीयत किए बिना सही नहीं होगा। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस है : ‘‘जिस ने फज्र से पहले रोज़े की नीयत नहीं की तो उस का रोज़ा नहीं है।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2454) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 726) ने रिवायत किया है, तथा शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह ने “सहीहुल-जामे” (हदीस संख्या : 6535) में इस हदीस को सहीह क़रार दिया है। यहाँ रोज़े से अभिप्राय अनिवार्य रोज़े हैं।

इस आधार पर आप का रोज़ा सही है। रहा प्रश्न रोज़े के सवाब की प्राप्ति का, तो क्या वह पूरे दिन के रोज़े का सवाब होगा या केवल नीयत करने के समय से ही सवाब मिलेगा? शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं :

(इस विषय में उलमा के दो कथन हैं : प्रथम : उसे दिन के आरम्भ से सवाब दिया जाएगा क्योंकि शरई रोज़ा दिन के आरम्भ से ही होता है।

दूसरा : उसे केवल नीयत के समय से सवाब दिया जाएगा। यदि उसने सूर्य ढ़लते समय नीयत की है तो उसे आधे दिन का सवाब मिलेगा। और यही सही कथन है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “आमाल (कर्मों) का आधार नीयतों पर है। और हर व्यक्ति को उसकी (अच्छी या बुरी) नीयत के अनुकूल (अच्छा या बुरा बदला) मिलेगा।’’ (बुखारी व मुस्लिम) और इस व्यक्ति ने तो दिन के दौरान नीयत की है। अतः उसे अज्र भी नीयत ही के समय से प्राप्त होगा।

इस राजेह कथन की बुनियाद पर यदि रोज़ा दिन पर बोला जाए, उदाहरण के तौर पर : सोमवार का रोज़ा, जुमेरात का रोज़ा, बीज़ के दिनों (अर्थात प्रत्येक हिज्री महीने की 13, 14, 15 तारीख़) का रोज़ा और प्रति माह के तीन रोज़े। और मनुष्य इन दिनों के रोज़ों की नीयत दिन के दौरान करे तो उसे उस दिन का सवाब नहीं मिलेगा।) (अश्शर्हुल मुम्ते 6/373)

और यही हुक्म उस व्यक्ति पर भी लागू होगा जिसने आशूरा के रोज़े की नीयत फज्र उदय होने के बाद की, ऐसे व्यक्ति को आशूरा के रोज़े पर मिलने वाला अज्र, यानी एक वर्ष के पापों का कफ्फारा प्राप्त नहीं होगा। क्योंकि यह बात उस पर पूरी नहीं उतरती है कि उस ने आशूरा के दिन का रोज़ा रखा, बल्कि उसने तो अपनी नीयत की शुरूआत से, दिन के कुछ हिस्से का रोज़ा रखा है।

परंतु उसे अल्लाह के महीने मुहर्रम में रोज़ा रखने का आम अज्र व सवाब मिलेगा, और वह रमज़ान के बाद सब से श्रेष्ठ रोज़ा है। (जैसा कि सहीह मुस्लिम, हदीस संख्या :1163 में वर्णन हुआ है।)

आशूरा के दिन - और इसी के समान बीज़ के दिनों – को, आप और बहुत से लोगों के दिन की शुरुआत होने तक न जान पाने के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से : शायद ईसवी कैलेंडर का उपयोग और प्रचलन है, जैसा कि आप ने उल्लेख किया है। इस तरह की फज़ीलतों का छूट जाना शायद आप के और उन तमाम लोगों के लिए जिन पर अल्लाह ने इस्तिक़ामत (दीन पर सुदृढ़ता) के द्वारा एहसान (उपकार) किया है, हिज्री कैलेंडर अपनाने और इसी के अनुकूल अमल करने का कारण बने। - जिसे अल्लाह ने अपने बन्दों के लिए मशरूअ (धर्मसंगत) क़रार दिया है, और अपने दीन के लिए पसन्द फरमाया है – भले ही उसे अपने विशेष कार्यों और आपसी व्यवहार के दायरे में प्रयोग करें, ताकि इस कैलेंडर और जिन शरई अवसरों की यह याद दिलाता है उनको पुनर्जीवित किया जा सके, और अहले किताब (यहूद व नसारा) का विरोध हो सके जिनका विरोध करने और उनके अनुष्ठानों औऱ विशेषताओं से उत्कृष्ट रहने का हमें हुक्म दिया गया है। विशेषकर पिछले पैगंबरों के समुदायों में इसी चंद्र कैलेंडर का प्रचलन था, जैसा कि आशूरा के दिन यहूदियों के रोज़ा रखने के कारण का उल्लेख करनेवाली हदीस से यह बात इंगित होती है, - और आशूरा के दिन को चंद्र कैलेंडर के माध्यम से ही जाना जाता है – कि यह वही दिन है जिस में अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम को नजात दी थी। इससे पता चला कि वे लोग इसी पर अमल करते थे, अंग्रेज़ी सौर महीनों पर उनका अमल नहीं था। (अश्शर्हुल मुम्ते 6/471)

आशा है कि अल्लाह तआला आप से और आप जैसे भलाई के लालायित लोगों से इस विशेष अज्र व सवाब के छूट जाने में खैर व भलाई पैदा कर दे। यह इस तरह कि इस अज्र के छूट जाने से हृदय में जो एहसास पैदा होता है वह मनुष्य को अच्छे कार्य में संघर्ष करने पर उभारता है, जो अनेक प्रकार की बन्दगी का कारण बनता है। जिनका हृदय पर इतना प्रभाव हो सकता है जो मनुष्य को विशेष आज्ञाकारिता से प्राप्त होने वाले प्रभाव से कहीं अधिक होता है। जिसकी ओर कुछ लोग रुझान रखते हैं और वह उनके लिए आज्ञाकारिताओं से सुस्ती व आलस्य का कारण बन जाती है। और कभी यह उसके अभिमान में पड़ने और उस आज्ञाकारिता के द्वारा अल्लाह पर उपकार जताने का का कारण बनता है।

अल्लाह से दुआ है कि वह हमें अपनी कृपा व अनुकंपा और अज्र व सवाब प्रदान करे, और अपने ज़िक्र व शुक्र पर हमारी मदद करे।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर