हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सबसे पहलेः
वुज़ू के अर्कान और उसके फराइज़ छह हैं :
1- चेहरा धोना - नाक और मुँह उसी में शामिल हैं।
2- कोहनी समेत दोनों हाथ धोना।
3- सिर का मसह करना।
4- टखनों समेत दोनों पैर धोना।
5- वुज़ू के अंगों के बीच तर्तीब (क्रम) का पालन करना।
6- उन अंगों को लगातार धोना। (अर्थात् वुज़ू के अंगों को उनके बीच लंबे समय के अंतराल के बिना एक के बाद एक धोना)
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
( يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا قُمْتُمْ إِلَى الصَّلاةِ فَاغْسِلُوا وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى الْمَرَافِقِ وَامْسَحُوا بِرُؤُوسِكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ إِلَى الْكَعْبَيْنِ ) المائدة/6
''ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने चेहरों को और अपने हाथों को कोहनियों समेत धो लिया करो और अपने सिरों का मसह करो और अपने पैरों को टखनों समेत धो लो।'' (सूरतुल मायदाः 6)
देखें: "अर-रौज़ुल मुर्बे हाशिया इब्न क़ासिम के साथ'' (1/181-188).
शैख इब्न उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमायाः
''यहाँ वुज़ू के फराइज़ से अभिप्राय वूज़ू के अर्कान हैं। इससे हमें पता चलता है कि उलमा – अल्लाह उनपर दया करे – विविध इबारतों का प्रयोग करते हैं और फराइज़ को अर्कान और अर्कान को फराइज़ क़रार देते हैं।'' ''अश-शर्हुल मुम्ते (1/183)'' से समाप्त हुआ।
हम इस बात को पहले वर्णन कर चुके हैं कि अधिकतर विद्वानों के निकट फर्ज़, वाजिब ही को कहते हैं। देखिए प्रश्न संख्याः (127742 )।
अतः वूज़ू के वाजिबात ही उसके अर्कान और उसके फ़राइज़ हैं, और ये ऐसी चीज़ें हैं जिनसे मिलकर वुज़ू बनता है और उनके बिना वह पाया नहीं जा सकता।
रही बात वुज़ू के लिए ‘बिस्मिल्लाह’ कहने की, तो इमाम अहमद उसकी अनिवार्यता की ओर गए हैं। जबकि जम्हूर (अधिकतर) विद्वान इस बात की ओर गए हैं कि वह वुज़ू की सुन्नतों में से एक सुन्नत है, अनिवार्य नहीं है। इसका उल्लेख फ़त्वा संख्याः (21241 ) में गुज़र चुका है।
द्वितीय :
वुज़ू की सुन्नतें विभिन्न और कई एक हैं। शैख सालेह अल फौज़ान हफिज़हुल्लाह फरमाते हैं :
वुज़ू की सुन्नतें यह हैं :
पहलाः मिस्वाक करना, और इसका स्थान कुल्ली करने के समय है; ताकि इससे और कुल्ली करने से इबादत के स्वागत के लिए मुँह की सफ़ाई और क़ुर्आन करीम का पाठ करने और अल्लाह सर्वशक्तिमान से विनती करने के लिए तैयारी हो जाए।
दूसराः वुज़ू के शुरू में चेहरा धोने से पहले दोनों हथेलियों को तीन बार धोना। क्योंकि इसके बारे में हदीसें वर्णित हैं, और इसलिए कि दोनों हाथ वुज़ू के अंगों तक पानी के हस्तांतरण का साधन हैं, इसलिए उनको धोने में समस्त वुज़ू के लिए सावधानी है।
तीसराः चेहरा धोने से पहले कुल्ली करने और नाक में पानी चढ़ाने से शुरूआत करना। क्योंकि हदीसों में उन्हीं दोनों से शुरूआत करने का वर्णन हुआ है। और यदि आदमी रोज़े की हालत में नहीं है तो उनमें अतिश्योक्ति से काम लेगा।
कुल्ली करने में अतिश्योक्ति का मतलब : अपने समुचित मुँह के भीतर पानी को घुमाना, और नाक में पानी चढ़ाने में अतिश्योक्ति का मतलबः पानी को नाक के अंतिम हद तक खींचना है।
चौथाः घनी दाढ़ी का पानी के साथ खिलाल करना यहाँ तक कि वह (पानी) अंदर तक पहुँच जाए, तथा दोनों हाथों और दोनों पैरों की उंगलियों का खिलाल करना।
पाँचवाँ : दाहिने से शुरूआत करना, अर्थात दाहिने हाथ और पैर को बाँए से पहले शुरू करना।
छठा : चेहरा, हाथ और पैर को धोने में एक से अधिक बार से तीन बार तक धोना।''
"अल-मुलख़्ख़स अल-फिक़्ही (1 / 44-45)" से समाप्त हुआ।
सुन्नतों ही में सेः जम्हूर (अधिकतर) विद्वानों के निकट दोनों कानों का मसह करना भी है। जबकि इमाम अहमद कानों के मसह की अनिवार्यता की ओर गए हैं। इसका उल्लेख फत्वा संख्याः (115246) में किया जा चुका है।
वुज़ू के बाद यह दुआ पढ़ना मुस्तहब हैः
( أشْهَدُ أنْ لا إله إِلاَّ اللَّهُ وَحْدَهُ لا شَرِيك لَهُ ، وأشْهَدُ أنَّ مُحَمَّداً عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ ، اللَّهُمَّ اجْعَلْنِي مِنَ التَوَّابِينَ ، واجْعَلْني مِنَ المُتَطَهِّرِينَ ، سُبْحانَكَ اللَّهُمَّ وبِحَمْدِكَ ، أشْهَدُ أنْ لا إلهَ إِلاَّ أنْتَ ، أسْتَغْفِرُكَ وأتُوبُ إِلَيْكَ ) .
''अश्हदो अन् ला इलाहा इल्लल्लाहो वह्दहू ला शरीका लहू, व अश्हदो अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहू, अल्लाहुम्मज्-अल्नी मिनत्तव्वाबीना, वज्-अल्नी मिनल मुता-तह्हेरीना. सुब्हानका अल्लाहुम्मा व बि-हम्दिका, अश्हदो अन् ला इलाहा इल्ला अन्ता, अस्तग़फ़िरुका व अतूबो इलैका।''
(मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं, वह अकेला है उसका कोई साझी नहीं। और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसके दास और उसके सन्देष्टा हैं। ऐ अल्लाह, मुझे तौबा (पश्चाताप) करनेवालों में से और पवित्रता हासिल करनेवालों में से बना दे। तू पाक-पवित्र है ऐ अल्लाह, और तेरी ही प्रशंसा है, मैं गवाही देता हूँ कि तेरे अलावा कोई सत्य पूज्य नहीं, मैं तुझसे क्षमायाचना करता हूँ और तेरे समक्ष तौबा (पश्चाताप) करता हूँ।
वुज़ू का संपूर्ण तरीक़ा जानने के लिए फत्वा संख्याः (11497) देखिए।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।