शुक्रवार 19 रमज़ान 1445 - 29 मार्च 2024
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अगर अल्लाह ने किसी को अपनी पुस्तक याद करने की तौफ़ीक़ प्रदान की है, तो क्या इसका मतलब यह है कि अल्लाह ने उसके साथ भलाई का इरादा किया हैॽ

प्रश्न

अगर अल्लाह किसी को अपनी पुस्तक (क़ुरआन) को याद करने में सक्षम बनाता है, तो क्या इसका मतलब यह है कि वह अवश्य उसका भला चाहता है, चाहे उसकी स्थिति कुछ भी होॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अल्लाह तआला जिस व्यक्ति को अपनी पुस्तक को याद करने की तौफ़ीक़ प्रदान करता है, ताकि वह अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करे, ना कि इसलिए कि वह कोई सांसारिक लाभ चाहता हो : तो वह, इन शा अल्लाह, उन लोगों में से है जिनके साथ अल्लाह भलाई का इरादा रखता है।

क्योंकि क़ुरआन शरई (इस्लामी) विज्ञानों का मूल और उसका महान द्वार है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "तुम में सबसे अच्छा वह है जो क़ुरआन सीखे और उसे दूसरों को सिखाए।" इसे बुखारी (हदीस संख्याः 5027) ने  रिवायत किया है।

तथा मुस्लिम (हदीस संख्या : 804) ने अबू उमामह अल-बाहिली से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना: "कुरआन पढ़ो, क्योंकि वह क़यामत के दिन उसके पढ़ने वालों के लिए सिफ़ारिशी बनकर आएगा।''

लेकिन जिसने कुरआन को याद किया है, फिर उसने उसके नियमों के खिलाफ़ काम किया है और उसके शिष्टाचार का पालन नहीं किया है, उसे इस बात से सावधान रहना चाहिए कि ऐसा न हो कि क़ुरआन उसके लिए हुज्जत बनने के बजाय उसके खिलाफ हुज्जत (प्रमाण) बन जाए।

मुस्लिम (हदीस संख्या : 223) ने अबू मालिक अल-अशअरी से वर्णन किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "क़ुरआन तुम्हारे लिए या तुम्हारे खिलाफ सबूत (प्रमाण) है।"

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा :

''या तो वह तुम्हारे लिए हुज्जत (सबूत) है, और वह इस प्रकार कि यदि आप इसके माध्यम से अल्लाह के निकट पहुँच जाते हैं, और इस महान क़ुरआन द्वारा निर्धारित कर्तव्यों को पूरा करते हैं, अर्थात् इसके समाचारों पर विश्वास करते हैं, इसकी आज्ञाओं का पालन करते, इसके निषेधों से बचते और इस पवित्र क़ुरआन का आदर और सम्मान करते हैं, तो ऐसी स्थिति में यह आपके लिए हुज्जत है।

परंतु यदि मामला इसके विपरीत है : आपने क़ुरआन का अनादर किया है और उसके शब्दों को (पढ़ना) और अर्थों (को समझना) और उसके अनुसार कार्य करना छोड़ दिया, और उसके कर्तव्यों का पालन नहीं किया; तो वह क़यामत के दिन उसके ख़िलाफ साक्षी होगा।'' ‘शर्ह रियाज़ुस्सालेहीन’ (पृष्ठ 30) से समाप्त हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर