गुरुवार 27 जुमादा-1 1446 - 28 नवंबर 2024
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क्या उस आदमी के लिए बुकिंग करना जायज़ है जो यात्रा करता है और अपनी यात्रा के दौरान बुराईयाँ करता है?

प्रश्न

मैं एक सरकारी क्षेत्र के जनसंपर्क विभाग में कार्य करता हूँ। मैं सभी सरकारी मिशन के लिए होटल और जहाज़ की बुकिंग और वीज़े के प्रति ज़िम्मेदार हूँ। कार्य में मेरे प्रमुख ने बाहर जाने का फैसला किया है, यदि मैं उसके लिए किसी होटल में बुकिंग करता हूँ तो मुझे पता है कि वह वहाँ जाकर शराब पिएगा और हो सकता है कि वहाँ वह अन्य शैतानी कार्य भी करे। तो क्या अगर मैं उसके लिए या उसके अलावा अन्य लोगों के लिए बुकिंग करता हूँ जो यात्रा करते हैं और निषिद्ध कामों में लिप्त होते हैं, तो मैं गुनाहगार हूँगा?

उत्तर का सारांश

जो व्यक्ति जायज़ काम के लिए सफर करता है और अपने सफर में बुरा काम करता है, उसके बीच और उस आदमी के बीच जो मूल रूप से बुराई
करने के लिए यात्रा करता है, दोनों में फर्क़ है।

पहले की उसके सफर पर मदद करना जायज़ है, जबकि दूसरे का मामला इसके विपरीत है।

चूँकि आपका काम सरकारी मिशन के लिए बुकिंग करना है जो मूलतः जायज़ कामों के लिए यात्रा करता है : तो आपके लिए उनके लिए बुकिंग करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है, और जिसने अपने सफर में हराम काम किया तो वही व्यक्ति उसका संपूर्ण पाप सहन करेगा।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

वह यात्री जो अपनी यात्रा में पाप करता है उसकी दो स्थितियां हैं :

प्रथम :

उसकी यात्रा मूल रूप से हराम कार्य करने के लिए हो, जैसेकि कोई व्यभिचार करने के लिए, या शराब पीने के लिए, या मुसलमानों से लड़ाई करने के लिए या इसी तरह के अन्य कामों के लिए यात्रा करे : तो इस तरह के आदमी की किसी भी प्रकार से उसकी यात्रा पर मदद करने की अनुमति नहीं है।

और फ़ुक़हा (धर्मशास्त्री) उसे : ‘‘अपनी यात्रा के द्वारा पाप करनेवाला’’ कहते हैं।

विद्वानों की बहुमत इस बात की ओर गई है कि उसके लिए यात्रा की रूख्सतों (छूट) को अपनाने की अनुमति नहीं है। क्योंकि इसमें पाप पर उसकी मदद करना पाया जाता है।

गज़ाली का कहना है :”अपनी यात्रा के द्वारा पाप करने वाला :रूख्सत को नहीं अपनाएगा, जैसे भगौड़ा गुलाम, माता पिता का अवज्ञाकारी और डाकू ; क्योंकि रूख्सत एक मदद है, और पाप करने पर मदद नहीं की जायेगी।’

‘‘अल-वसीत फिल मज़हब’’ (2/251) से समाप्त हुआ।

तथा अल-जुवैनी कहते हैं कि : ‘‘यात्रा में रूख्सतों को यात्री को पेश आनेवाली कठिनाइयों और कष्ट पर मदद करने के हुक्म में प्रमाणित किया गया है, और शरीअत की स्थिति में पाप पर मदद करना संभावित नहीं है।’’

‘‘निहायतुल मतलब फी दिरायतिल मज़हब’’ (2/459) से समाप्त हुआ।

तथा शैखुल इस्लाम ने फरमाया : ‘‘यदि वह अपने सफर के द्वारा पाप करनेवाला है, जैसे डाका डालना वगैरह, तो क्या उसके लिए सफर की रूख्सतों को अपनाना, जैसे कि रोज़ा तोड़ना और नमाज़ क़स्र करना, जायज़ है?इसके बारे में मतभेद है।

तो मालिक, शाफई और अहमद का मत यह है कि : उसके लिए क़स्र करना और रोज़ा तोड़ना जायज़ नहीं है, और अबू हनीफ़ा का मत यह है कि उसके लिए ऐसा करना जायज़ है।’

‘‘मजमूउल फतावा’’ )18/254) से समाप्त हुआ।

द्वितीय :

उसका सफर मूल रूप से किसी अनुमेय कार्य के लिए हो, किंतु वह अपने सफर में कभी कभी पाप भी करता है : तो ऐसे व्यक्ति की यात्रा करने पर मदद करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है, और यह पाप पर मदद करने के अध्याय से नहीं है ; क्योंकि यहाँ अनुमेय सफर पर मदद करना है, न कि उस पाप पर मदद करना है जिसे वह अपने सफर में करता है।

इसे फुक़हा : ‘‘अपनी यात्रा में पाप करनेवाला’’ कहते हैं।

और फुक़हा ने उल्लेख किया है कि अपनी यात्रा में पाप करनेवाला यात्रा की रूख्सतों को अपना सकता है, जिसका अर्थ यह होता है कि यह पाप पर मदद करने के अध्याय के अंतर्गत नहीं आता है।

अल्लामा नववी कहते हैं : ‘‘जहाँ तक अपने सफर में अवज्ञा करनेवाले की बात है, और यह वह व्यक्ति है जिसकी यात्रा अनुमेय हो किंतु वह अपने रास्ते में पाप करता है जैसे शराब पीना वगैरह : तो उसके लिए रूख्सतों को अपनाना जायज़ है।”

‘‘अल-उसूल वज़-ज़वाबित’’ (पृष्ठ : 44).

इब्ने तैमिय्या कहते हैं : ‘‘इसीलिए फुक़हा ने अपने सफर के द्वारा पाप करने वाले, और अपने सफर में पाप करनेवाले के बीच अंतर के बारे में बात की है, तो उन्हों ने कहा है कि : यदि उसने कोई जायज़ सफर किया जैसे – हज्ज, उम्रा और जिहाद : तो उसके लिए चारों इमामों की सर्वसहमति के साथ क़स्र करना और रोज़ा तोड़ना जायज़ है, अगरचे वह अपने उस सफर में अवज्ञा करे।’’

‘‘मजमूउल फतावा’’ (18/254) से समाप्त हुआ।

तथा राफई का कहना है : ‘‘रूख्सत को, यात्रा पर मदद और आसानी पैदा करने के तौर पर साबित किया गया है, और पाप करनेवाले की उस चीज़ में सहायता करने का कोई रास्ता नहीं जिसके द्वारा वह पाप करनेवाला है। विपरीत इसके कि यदि उसका सफर जायज़ हो और वह अपने रास्ते में पाप करता हो, तो उसे सफर से नहीं रोका जाएगा, बल्कि उसे पाप से रोका जायेगा।’’

‘‘अल-अज़ीज़ शरहुल वजीज़’’ (2/223) से समाप्त हुआ।

यदि उसे सफर से नहीं रोका जाएगा – जैसा कि राफई ने उल्लेख किया है – तो उसे उसके कारणों से भी नहीं रोका जाएगा।

शैख इब्ने उसैमीन फरमाते हैं : दोनों के बीच अंतर यह है कि पहली स्थिति में उसके सफर करने का कारण (मक़सद) पाप करना है, और दूसरी स्थिति में : उसका दूसरा लक्ष्या है, परंतु उसने अपने सफर में पाप किया है।

इसका उदाहरण यह है कि यदि किसी मनुष्य ने आप से एक घर किराए पर लिया जिसमें वह मनोरंजन के लिए एक थिएटर लगाना चाहता है : तो उसे किराए पर देना हराम है, और अगर वह उसमें निवास करने के लिए आपसे किराए पर ले, फिर उसमें मनोरंजन के लिए थिएटर बना ले : तो उसे किराए पर देना हराम नहीं है। दोनों में फर्क़ यह है कि : पहले में उसने हराम काम करने के लिए किराए पर लिया है, और दूसरे में उसने एक अनुमेय काम के लिए किराए पर लिया है, लेकिन उसने उसमें हराम काम किया है।’’

‘‘तालीक़ात इब्ने उसैमीन अलल काफी’’ (3/126) से समाप्त हुआ।

जब शरीअत ने अपने सफर में पाप करनेवाले को सफर की रूख्सतों को प्राप्त करने की अनुमति प्रदान की है, और यह उसकी उसके सफर के मामलों में मदद करती है, तो उसके सफर से संबंधित चीज़ें, जैसे विमान और होटल इत्यादि की बुकिंग का भी वही हुक्म होगा।

हमने अपने शैख अब्दुर्रहमान अल बर्राक हफिज़हुल्लाह से इस मुद्दे के बारे में प्रश्न किया तो उन्हों ने कहा : अगर सफर का उद्देश्य अनुमेय है लेकिन मुसाफिर कभी कभी हराम काम कर लेता है तो उसके लिए बुकिंग करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है। और अगर यात्रा किसी हराम मक़सद के लिए है तो उसकी उसपर मदद करना जायज़ नहीं है।’’ समाप्त हुआ।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर