हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
इस मस्अले में विद्वानों ने प्राचीन और आधुनिक हर समयकाल में मतभेद किया है। कुछ विद्वानों का कहना है कि :
यदि महिला रास्ता को सुरक्षित समझती है और वह सुरक्षित और विश्वस्त लोगों की संगति में है तो वह बिना मह्रम के हज्ज कर सकती है।
जबिक कुछ दूसरे विद्वानों का कहना है कि :
औरत के लिए एक मह्रम के बिना जो उसकी रक्षा कर सके, यात्रा करना जायज़ नहीं है, भले ही वह विश्वस्त और सुरक्षित लोगों की संगति में हो।
इमाम अबू हनीफा और इमाम अहमद का यही मत है। उन्होंने निम्नलिखित प्रमाणों से तर्क स्थापित किया है :
1- बुखारी और मुस्लिम ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘’औरत किसी मह्रम के साथ ही यात्रा करे, तथा कोई व्यक्ति उसके पास न आए सिवाय इसके कि उसके साथ कोई मह्रम मौजूद हो।‘’ इस पर एक आदमी ने कहा कि : ऐ अल्लाह के पैगंबर! मैं फलाँ सेना के साथ निकलना चाहता हूँ और मेरी पत्नी हज्ज पर जाना चाहती है। तो अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘’तुम अपनी पत्नी के साथ जाओ।‘’ (बुखारी हदीस संख्या : 1763, मुस्लिम हदीस संख्या : 1341).
2- अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : अल्लाह तआला और अंतिम दिन में विश्वास रखने वाली औरत के लिए अपने मह्रम के बिना एक रात और दिन की यात्रा करना जायज़ नहीं है।‘’ इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1038) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 133) ने रिवायत किया है।
तथा बुखारी (हदीस संख्या : 1139) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 827) में अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में (दो दिनों की दूरी) का शब्द वर्णित है।
इब्ने हजर रहिमहुल्लाह कहते हैं :
‘’अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में (सफर को) ‘’दो दिनों की दूरी’’ से प्रतिबंधित किया गया है, और अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में ‘’एक दिन और रात की दूरी’’ से प्रतिबंधित है, तथा उनसे अन्य रिवायतें भी वर्णित हैं, और इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस में ‘’तीन दिनों’’ से प्रतिबंधित है, तथा उनसे और भी रिवायतें वर्णित हैं।
इस अध्याय में अधिकतर विद्वानों ने प्रतिबंधित रिवायतों की विभिन्नता के कारण सामान्य रिवायत पर अमल किया है।
इमाम नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं कि :
(सफर के) निर्धारण से अभिप्राय उसका प्रत्यक्ष अर्थ नहीं है, बल्कि जिसे भी यात्रा का नाम दिया जाए, तो वह महिला के लिए बिना मह्रम के वर्जित और निषिद्ध है। जिन रिवायतों में (सफर का) निर्धारण किया गया है तो वह वस्तुस्थित का उल्लेख हुआ है, इसलिए उसके आशय का पालन नहीं किया जाएगा। तथा इब्नुल मुनैयिर का कहना है कि : ‘’कई स्थानों पर अंतर, प्रश्न करनेवालों के एतिबार से, हुआहै।‘’ समाप्त हुआ।
‘’फत्हुलबारी’’ (4/75).
दूसरा :
मह्रम के अनिवार्य न होने के कथन को मानने वालों ने निम्नलिखित प्रमाणों से दलील पकड़ी है :
1- अदी बिन हातिम रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : ‘’मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास था कि एक व्यक्ति आपके पास आया और अकाल (भूखमरी) की शिकायत की। फिर एक दूसरा आदमी आया और उसने रास्ते के कटने (असुरक्षित होने) की शिकायत की। तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ऐ अदी! क्या तुमने हीरा नामी स्थान को देखा है? मैनें कहा कि : मैने उसे देखा तो नहीं है, लेकिन उसके बारे में मुझे बताया गया है। तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : अगर तुम्हारी जीवन लंबी हुई, तो तुम देखोगे कि अकेली औरत हीरा से चलेगी यहाँ तक कि आकर काबा का तवाफ़ करेगी और उसे अल्लाह तआला के अलावा किसी और का डर नहीं होगा।‘’ अदी रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि : मैने देखा कि हीरा से एक महिला चलती है और आकर काबा का तवाफ़ करती है वह अल्लाह के अलावा किसी और से नहीं डरती है।‘’ इसे बुखारी (हदीस संख्या: 3400) ने रिवायत किया है।
इस तर्कोपस्थिति का जवाब यह दिया जाएगा कि : यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर से इस मामले के घटित होने की खबर (सूचना) दी गई है, किसी मामले के होने की खबर देने का मतलब यह नहीं है कि वह जायज़ (अनुमेय) है, बल्कि हो सकता है कि वह जायज़ हो, या जायज़ न हो, यह फैसला शरई प्रमाणों के आधार पर होगा। जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खबर दी है कि क़ियामत से पहले शराब, ज़िना (व्यभिचार), जनसंहार बहुत अधिक हो जाएगा और यह सारी चीज़ें हराम और कबीरा गुनाहों में से हैं।
इसलिए हदीस का उद्देश्य यह है कि : शांति फैल जाएगी यहाँ तक कि कुछ महिलाएं बिना मह्रम के अकेले यात्रा करने का साहस करेंगी। इसका अभिप्रेत यह नहीं है कि उसका बिना मह्रम के यात्रा करना जायज़ है।
इमाम नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं कि :
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जिन चीज़ों के बारे में क़ियामत की निशानी होने की सूचना दी है वे सब निषिद्ध या वर्जित नहीं हैं, क्योंकि चरवाहों का महलों में गर्व करना, धन की व्यापकता और एक पुरुष का पचास महिलाओं का निरीक्षक होना बिना किसी संदेह के हराम नहीं है। बल्कि ये क़ियामत के लक्षण और संकेत हैं, और लक्षण में इस तरह की कोई शर्त नहीं होती है, बल्कि वह अच्छाई और बुराई, अनुमेय व निषिद्ध और वाजिब आदि कुछ भी हो सकता है, और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।‘’ अन्त हुआ।
इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि हज्ज के लिए यात्रा में महिला के लिए मह्रम की शर्त लगाने में विद्वानों का मतभेद अनिवार्य हज्ज के बारे में है, जहाँ तक नफ़्ली (स्वैच्छिक) हज्ज का संबंध है तो विद्वानों की इस बात पर सर्वसहमति है कि बिना मह्रम या पति के औरत के लिए यात्रा करना जायज़ नहीं है। जैसाकि अल-मौसूआ अल-फिक़हिय्या (17/36) में है।
तथा इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों का कहना है कि : ‘’जिस औरत का कोई मह्रम नहीं है उस पर हज्ज वाजिब (अनिवार्य) नहीं है क्योंकि उसके लिए मह्रम का होना रास्ते में से है, और रास्ते का सामर्थ्य होना हज्ज के अनिवार्य होने के लिए शर्त है। अल्लाह तआला ने फरमाया :
(ولله على الناس حج البيت من استطاع إليه سبيلا) [سورة آل عمران : 97]
‘’अल्लाह तआला ने उन लोगों पर जो उस तक पहुँचने का सामर्थ्य रखते हैं इस घर का हज्ज करना अनिवार्य कर दिया है।‘’ (सूरत आल-इम्रान : 97)
तथा उसके लिए हज्ज या उसके अलावा के लिए यात्रा करना जायज़ नहीं है सिवाय इसके कि उसके साथ उसका पति या कोई मह्रम हो, . . . यही कथन हसन, नखई, अहमद, इसहाक़, इब्नुल मुन्ज़िर और असहाबुर-राय का है, और उपर्युक्त आयत और उन हदीसों के सामान्य अर्थ के आधार पर जिनमें महिला को बिना पति या मह्रम के यात्रा करने से मनाही की गई है यही कथन सही है। जबकि इमाम मालिक, इमाम शाफई और औज़ाई रहिमहुमुल्लाह ने इसका विरोध किया है, और उनमें से हर एक ने ऐसी शर्त लगाई है जिसपर उनके पास कोई दलील नहीं है।
इब्नुल मुन्ज़िर कहते हैं कि : उन्हों ने हदीस के प्रत्यक्ष अर्थ को छोड़कर ऐसी शर्त लगाई गई है जिसपर उनके पास कोई तर्क नहीं है।‘’ अन्त हुआ।
‘’फतावा स्थायी समिति’’ (11/90, 91)
तथा स्थायी समिति के विद्वानों का यह भी कहना है कि :
सही बात यह है कि औरत के लिए अपने पति या अपने किसी मह्रम पुरूष के बिना हज्ज के लिए यात्रा करना जायज़ नहीं है, चुनाँचे उसके लिए गैर मह्रम विश्वस्त महिलाओं के साथ, या अपनी फूफी, या अपनी खाला (मौसी) या अपनी माँ के साथ सफर करना जायज़ नहीं है। बल्कि उसके साथ उसके पति या किसी मह्रम पुरूष का होना ज़रूरी है।
अगर वह उन दोनों में से किसी को अपने साथ ले जाने के लिए नहीं पाती है तो जब तक वह इस स्थिति में है उस पर हज्ज अनिवार्य नहीं है।‘’
‘’फतावा स्थायी समिति’’ (11/92) से संपन्न हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।