हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हिज्रत कर मदीना तशरीफ लाए तो मदीना वालों के दो दिन ऐसे थे जिसमें वे खेल-कूद करते थे, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
‘‘निःसंदेह अल्लाह तआला ने तुम्हें इन दोनों से बेहतर दो दिन प्रदान किए हैं, वे ईदुल-फित्र और ईदुल-अज़्हा के दिन हैं।’’ इसकी रिवायत अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1134) ने की है और अल्लामा अल्बानी रहिमहुल्लाह ने इसे अस-सिलसिला अस-सहीहा (हदीस संख्या : 2021) में सहीह कहा है।
तो अल्लाह तआला ने खेल-कूद के दो दिनों के बदले में इस उम्मत को जिक्र, शुक्र, क्षमा और माफी के दो दिन प्रदान किए हैं।
इस तरह मोमिनों के लिए दुनिया में तीन ईदें हैं:
एक ईद हर हफ्ते में आती है, और दो ईदें ऐसी हैं जो हर साल में एक-एक बार आतीं हैं।
हर हफ्ते में आने वाली ईद जुमा का दिन है।
और वह दोनों ईदें जो साल में बार-बार नहीं आतीं हैं बल्कि उन दोनों में से प्रत्येक साल भर में केवल एक बार आती है।
उन दोनों में से एक : ईदुल-फित्र अर्थात रमज़ान के रोज़े को तोड़ने की ईद, यह रमज़ान के रोज़ो को पूरा करने पर निष्कर्षित होती है। यह इस्लाम के मौलिक स्तंभों में से तीसरा स्तंभ है। जब मुसलमान लोग रमज़ान के अनिवार्य रोज़े पूरे करलें, तो अल्लाह तआला ने उनके लिए अपने रोजे पूरे करने के बाद ही एक ईद निर्धारित किया है जिसमें वे अल्लाह तआला का शुक्र अदा करने, उसका जि़क्र करने और उसके प्रदान किए हुए मार्गदर्शन पर उसकी बड़ाई प्रकट करने के लिए एकत्रित होते हैं। और इस ईद में अल्लाह तआला ने उनके लिए नमाज़ और सदक़ा धर्मसंगत किया है।
दूसरी ईद : क़ुबानी की ईद है जो ज़ुल-हिज्जा के महीने का दसवाँ दिन है, और यह दोनों ईदों में सबसे बड़ी और सर्वश्रेष्ठ ईद है, और यह हज्ज को पूरा करने पर निष्कर्षित होती है, जब मुसलमान हज्ज पूरा कर लेते हैं तो उन्हें क्षमा कर दिया जाता है।
हज्ज अरफा के दिन और अरफा में ठहरने से पूरा होता है, क्योंकि वह हज्ज का सबसे महान स्तंभ है, जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है:
‘‘हज्ज अरफा में ठहरने का नाम है।’’ इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 889) ने रिवायत किया है और अल्लामा अल्बानी ने इर्वाउल गलील (हदीस संख्या: 1064) में इस हदीस को सहीह कहा है।
अरफा का दिन (नरक की) आग से मुक्ति का दिन है, चुनांचे इस दिन अल्लाह तआला अरफा में ठहरनेवालों को तथा अन्य शहरों में रहने वाले मुसलमानों में से उसमें न ठहरने वालों को नरक की आग से मुक्त कर देता है। इसीलिए इसके बाद आने वाला दिन सारी दुनिया में सभी मुसलमानों के लिए ईद हो गया, चाहे वह हज्ज मे उपस्थित हुआ हो या न हुआ हो।
तथा उस दिन सभी लोगों के लिए क़ुर्बानी के द्वारा अल्लाह तआला की निकटता प्राप्त करना धर्मसंगत है, और वह क़ुर्बानी के जानवरों का खून बहाना है।
इस दिन की फज़ीलतों को संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है:
1- वह अल्लाह तआला के निकट सबसे अच्छा दिन है:
हाफिज इब्ने कैयिम रहिमहुल्लाह ज़ादुल मआद (1/54) में कहते हैं:
अल्लाह तआला के निकट सबसे बेहतर दिन क़ुर्बानी का दिन है, और वही हज्जे अक्बर का दिन है, जैसाकि सुनन अबू दाऊद (हदीस संख्या: 1765) में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है कि : ‘‘निःसंदेह अल्लाह तआला के निकट सबसे महान दिन क़ुर्बानी का दिन है।’’ अल्लामा अल्बानी ने इस हदीस को सहीह अबू दाऊद में सही क़रार दिया है।
2- यह हज्जे अक्बर का दिन है :
इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा बयान करते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस हज्ज के दौरान जो आप ने किया था क़ुर्बानी के दिन जमरात के बीच खड़े हुए और फरमाया: ‘‘यह हज्जे अकबर का दिन है।’’ इसे बुखारी (हदीस संख्या: 1742) ने रिवायत किया है।
इसका कारण यह है कि हज्ज के अधिकतर कार्य इसी दिन अंजाम दिए जाते हैं, चुनाँचे इस दिन हाजी लोग निम्नलिखित कार्य करते हैं :
1- जमरतुल अक़बा को कंकड़ी़ मारना।
2- कुर्बानी करना।
3- सिर के बाल मुंडवाना या कटवाना।
4- तवाफ करना।
5- सई करना।
3- यह मुसलमानों की ईद का दिन हैः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
‘’अरफा का दिन, क़ुर्बानी का दिन (10 ज़ुल-हिज्जा) और तश्रीक़ के दिन (11, 12, 13 ज़ुल-हिज्जा) हम इस्लाम के अनुयायियों के लिए ईद के दिन हैं, तथा वे सब खाने और पीने के दिन हैं।‘’ इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 773) ने रिवायत किया है और अल्लामा अल्बानी ने सहीह तिर्मिजी में इसे सही ठहराया है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।