हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
(अगर सूरज डूब जाए और वह ज़मीन पर अपना रोज़ा इफ़्तार कर ले, फिर हवाई जहाज़ उसके साथ उड़ान भरे और उसे सूरज दिखाई दे, तो उसके लिए खाने-पीने से रुकना अनिवार्य नहीं है, क्योंकि उसने अपने पूरे दिन का रोज़ा पूरा कर लिया है। अतः उसके लिए इबादत से फारिग़ होने के बाद उसे दोहराने का कोई रास्ता नहीं है। अगर सूर्यास्त से पहले उसके साथ विमान ने उड़ान भरी है और वह सफ़र के दौरान उस दिन का रोज़ा पूरा करना चाहता है, तो उसे अपना रोज़ा तब तक नहीं खोलना चाहिए जब तक कि सूरज उस जगह पर न डूब जाए जहाँ वह आंतरिक्ष में है। रोज़ा इफ़्तार करने के लिए पायलट के लिए विमान को उस स्तर तक नीचे ले जाना जायज़ नहीं है जहाँ सूरज दिखाई न दे, क्योंकि यह एक चालबाज़ी है। लेकिन अगर वह वैध तकनीकी कारण से उतरता है और सूरज गायब हो जाता है, तो वह अपना रोज़ा इफ़्तार करेगा।)
मौखिक रूप से शैख इब्ने बाज़ के फतावा से। तथा पुस्तिका “सबऊना मसअलह फ़िस्-सियाम” (रोज़े से संबंधित सत्तर मसाइल) देखें।
स्थायी समिति ने कहा :
“अगर रोज़ेदार हवाई जहाज़ में सवार हो और उसे घड़ी या टेलीफ़ोन से पास के किसी शहर में रोज़ा इफ़तार करने के बारे में पता चले, जबकि वह हवाई जहाज़ की ऊँचाई की वजह से सूरज को देख रहा हो, तो उसे रोज़ा तोड़ने की इजाज़त नहीं है; क्योंकि अल्लाह तआला ने फरमाया है :
ثم أتموا الصيام إلى الليل
سورة البقرة: 187
“फिर रोज़े को रात (सूर्य डूबने) तक पूरा करो।” (सूरतुल-बक़रा : 187)
और यह अंत (अंतिम सीमा) उसके मामले में प्राप्त नहीं हुआ जबकि वह सूरज को देख रहा है।
लेकिन अगर उसने अपने हक़ में दिन की समाप्ति के बाद शहर में अपना रोज़ा इफ़तार कर लिया है और हवाई जहाज़ ने उड़ान भरी है फिर उसने सूरज को देखा है, तो वह अपने इफ़तार की स्थिति पर बना रहेगा। क्योंकि वह उस शहर के हुक्म के अधीन है जिससे उसने उड़ान भरी है और वहाँ उसके रहते हुए ही दिन समाप्त हो गया था।
स्थायी समिति ने एक अन्य फतवे में कहा :
“अगर कोई व्यक्ति रमज़ान के दिन में हवाई जहाज़ में हो और वह रोज़ा रखे हुए हो और रात तक अपना रोज़ा जारी रखना चाहता हो, तो उसके लिए सूर्यास्त के बाद ही अपना रोज़ा इफ़तार करना जायज़ है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“मजमूओ फ़तावा अल-लजनह अद-दाईमह” (10/136-137)।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।