हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
यदि वह महिला नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस : "जिस व्यक्ति ने रमज़ान का रोज़ा रखा, फिर उसके पश्चात ही शव्वाल के महीने के छ: रोज़े रखे तो वह ज़माने भर रोज़ा रखने के समान है।" (सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 1984) में वर्णित अज्र व सवाब (पुण्य) को प्राप्त करना चाहती है, तो उसे चाहिए कि सबसे पहले रमज़ान के रोज़े पूरे करे, फिर उसके पश्चात ही शव्वाल के छ: रोज़े रखे ताकि हदीस उस पर लागू हो सके और वह उसमें वर्णित अज्र व सवाब को प्राप्त कर सके।
जहाँ तक जाइज़ होने का संबंध है तो उसके लिए रमज़ान की क़ज़ा को इतना विलंब करना जाइज़ है कि वह अगले रमज़ान के आने से पहले उसकी क़जा कर सके।