शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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हज्ज के अनिवार्य होने की शर्तें

प्रश्न

हज्ज के अनिवार्य होने की शर्तें क्या हैं ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उलमा रहिमहुमुल्लाह ने हज्ज के अनवार्य होने की कुछ शर्तों का उल्लेख किया है, जो कि जब किसी व्यक्ति के अंदर पाई जाती हैं तो उस पर हज्ज अनिवार्य (फर्ज़)हो जाता है, और उनके बिना हज्ज अनिवार्य नहीं होता, और यह पाँच शर्तें है : मुसलमान होना, बुद्धि वाला होना, बालिग (व्यस्क) होना, आज़ाद होना और सामर्थ्य (ताक़त) का होना।

1-इस्लाम (मुसलमान होना)

यह शर्त सभी इबादतों में लागू होती है, इस का कारण यह है कि काफिर से कोई भी इबादत शुद्ध नहीं होती है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है : "उनके व्यय (खर्च) के स्वीकार न किए जाने का इसके अतिरिक्त कोई अन्य कारण नहीं कि उन्हों ने अल्लाह और उसके रसूल को मानना अस्वीकार कर दिया।" (सूरतुत तौबा: 54)

तथा मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में -जब कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें यमन की ओर भेजा- वर्णित है : "तुम अह्ले किताब (यहूदियों व ईसाईयों) की एक कौम के पास जा रहे हो, अत: तुम उन्हें इस बात की गवाही देने का आमंत्रण देना कि अल्लाह के अलावा कोई सच्चा पूज्य नहीं और यह कि मैं अल्लाह का पैगंबर हूँ। अगर वे इस बात को स्वीकार कर लें, तो तुम उन्हें इस बात से सूचित करना कि अल्लाह तआला ने उनके ऊपर प्रत्येक दिन और रात में पाँच नमाज़ें अनिवार्य की हैं, अगर वे इस बात को मान लें तो उन्हें बतलाना कि अल्लाह तआला ने उनके ऊपर सद्क़ा (दान) अनिवार्य किया है जो उनके मालदारों से लिया जायेगा और उनके फक़ीरों (गरीब लोगों) पर लौटा दिया जायेगा।" (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम)

अत: काफिर व्यक्ति को सब से पहले इस्लाम में प्रवेश करने का आदेश दिया जायेगा, जब वह इस्लाम स्वीकार कर ले तो फिर हम उसे नमाज़, ज़कात, रोज़ा, हज्ज और इस्लाम के अन्य अहकाम का आदेश देंगे।

2,3- बुद्धि और व्यस्कता (आक़िल और बलिग होना) :

क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "तीन प्रकार के लोगों से क़लम उठा लिया गया है : सोने वाले आदमी से यहाँ तक कि वह जाग जाए, और बच्चे से यहाँ तक कि वह बालिग़ (व्यस्क) हो जाए, पागल (बुद्धिहीन) से यहाँ तक कि वह समझने बूझने लगे।" इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4403)ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में सहीह कहा है।

अत: बच्चे पर हज्ज अनिवार्य नहीं है, किन्तु अगर उसका संरक्षक (सरपरस्त) उसे लेकर हज्ज करे तो स्वयं उसका अपना हज्ज शुद्ध होगा और बच्चे को हज्ज का सवाब मिलेगा, और उसके संरक्षक को भी उस का सवाब मिलेगा, क्योंकि जब एक महिला ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर एक बच्चे को उठा कर पूछा कि: क्या इसका हज्ज है ? तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "हाँ, और तुम्हें इस का अज्र मिलेगा।" (इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है)

4-आज़ादी : अत: गुलाम (दास) पर हज्ज अनिवार्य नहीं है क्योंकि वह अपने मालिक के हक़ की अदायगी में व्यस्त होता है।

5-सामर्थ्य (ताक़त)

अल्लाह तआला का फरमान है : "अल्लाह तआला ने उन लोगों पर जो उस तक पहुँचने का सामर्थ्य रखते हैं इस घर का हज्ज करना अनिवार्य कर दिया है, और जो कोई कुफ्र करे (न माने) तो अल्लाह तआला (उस से बल्कि) सर्व संसार से बेनियाज़ है।" (सूरत आल-इम्रान: 97)

यह शारीरिक शक्ति और आर्थिक शक्ति दोनों को शामिल है।

शारीरिक शक्ति का अर्थ यह है कि वह शारीरिक तौर पर स्वस्थ हो और अल्लाह के घर काबा की तरफ यात्रा करने के कष्ट को सहन कर सकता हो।

आर्थिक शक्ति (माली ताक़त) का मतलब यह है कि वह अल्लाह के घर काबा तक जाने और वहाँ से वापस आने के खर्च भर धन का मालिक हो।

फतावा की स्थायी समिति (11/30)का कहना है :

"हज्ज के लिए सामर्थ्य (ताक़त) का मतलब यह है कि आदमी शारीरिक तौर पर स्वस्थ हो और अल्लाह तआला के घर काबा तक पहुँचाने वाली सवारी जैसे हवाई जहाज़, या गाड़ी (कार, बस) या चौपाये या अपनी यथाशक्ति उसके किराये का मालिक हो, तथा उस के पास इतना सफर का सामान (तोशा) हो जो उसके जाने और आने के लिए काफी हो, इस शर्त के साथ कि वह तोशा (मार्ग व्यय) उन लोगों के खर्चे से अधिक हो जिन का उस के ऊपर खर्चा अनिवार्य है यहाँ तक कि वह अपने हज्ज से वापस लौट आये, तथा महिला के साथ उसका पति या उसका कोई मह्रम होना चाहिये यहाँ तक कि उसके हज्ज या उम्रा के सफर में भी यह शर्त है।"

तथा यह भी शर्त है कि वह खर्च जिसके द्वारा वह अल्लाह के पवित्र घर तक पहुँचना चाहता है उसकी असली आवश्यकताओं (बुनियादी ज़रूरतों), उसके शरई खर्चे और उसके क़र्ज़की अदायगी से अधिक हो।

क़र्ज़ से अभिप्राय अल्लाह के हुक़ूक़ जैसे कफ्फारा वगैरा और मनुष्यों के हुक़ूक़ हैं।

अत: जिस के ऊपर क़र्ज़अनिवार्य है, और उस का धन हज्ज करने और क़र्ज को चुकान भर के लिए पर्याप्त नहीं है, तो वह सब से पहले क़र्ज़ की अदायगी करेगा और उस पर हज्ज अनिवार्य नहीं है।

कुछ लोग यह समझते हैं कि क़र्ज़ दार पर हज्ज के अनिवार्य न होने का कारण क़र्ज़ देने वाले से अनुमति का न लेना है, और यदि उस से अनुमति मांग ली गई और उस ने अनुमति दे दी तो कोई हानि की बात नहीं है।

हालांकि इस गुमान का कोई आधार नहीं है, बल्कि उसका कारणा उसके ज़िम्मे (ज़िम्मेदारी) का व्यस्त होना है, और यह बात सर्वज्ञात है कि अगर क़र्ज़ देने वाले ने क़र्ज़ दार को हज्ज करने की अनुमति दे दी तब भी क़र्ज़ दार का ज़िम्मा क़र्ज़ के साथ व्यस्त रहता है, और इस अनुमति से उस का ज़िम्मा समाप्त नहीं हो सकता, इस लिए क़र्ज़ दार से कहा जायेगा कि : पहले तू क़र्ज की अदायगी कर, फिर अगर तेरे पास हज्ज करने भर का धन बाक़ी बचता है तो हज्ज कर, अन्यथा तेरे ऊपर हज्ज अनिवार्य नहीं है।

और अगर क़र्ज़ दार आदमी जिसे क़र्ज़की अदायगी ने हज्ज से रोक रखा था, मर जाये, तो वह अल्लाह तआला से संपूर्ण रूप से इस्लाम की हालत में मुलाक़ात करेगा, वह कमी व कोताही करने वाला नहीं समझा जायेगा, क्योंकि उस पर हज्ज अनिवार्य नहीं हुआ था, चुनाँचि जिस प्रकार गरीब आदमी पर ज़कात अनिवार्य नहीं है उसी तरह हज्ज भी है।

किन्तु अगर उसने कर्ज़ की अदायगी पर हज्ज को प्राथमिकता दे दी और क़र्ज़ की अदायगी से पहले मर गया तो वह खतरे में है, क्योंकि शहीद की हर चीज़ माफ कर दी जाती है सिवाये क़र्ज़ के। जब शहीद का यह हाल है तो फिर दूसरे का क्या हाल होगा!?

शरई खर्चे का मतलब : वह खर्चे हैं जिन्हें शरीअत स्वीकार करती और मानती है जैसेकि बिना फुज़ूल खर्ची किये हुये अपने ऊपर और अपने परिवार पर खर्च करना, अगर आदमी औसत दर्जे का है और उस की इच्छा हुई कि वह अपने आप को मालदार आदमी के रूप में प्रदर्शित करे तो उस ने एक मंहगी कार खरीद ली ताकि उस के द्वारा मालदारों के साथ बराबरी दिखाये, और उस के पास हज्ज करने के लिए माल नहीं है, तो उस के ऊपर अनिवार्य है कि वह गाड़ी (कार) को बेच दे और उसकी क़ीमत से हज्ज करे, और कोई दूसरी गाड़ी खरीद ले जो उसकी स्थिति के अनुकूल हो।

क्योंकि इस मंहगी गाड़ी की क़ीमत में उस का खर्च शरई खर्च नहीं है, बल्कि वह फुज़ूल खर्ची है जिस से शरीअत रोकती है।

तथा खर्च के अंदर ऐतिबार इस बात का है कि वह उस के लिए और उसके परिवार के लिए काफी हो यहाँ तक कि वह (हज्ज से) वापस लौट आये।

तथा उसके वापस लौटने के बाद उसके पास कोई ऐसा साधन मौजूद हो जिस के द्वारा उसके और जिन पर वह खर्च करता है उन लोगों के पर्याप्त खर्च का प्रबंध हो सके जैसे कि मकान इत्यादि का किराया, या वेतन, या तिजारत और इसी तरह की कोई अन्य चीज़।

इसीलिए उस के ऊपर अनिवार्य नहीं है कि वह अपनी उस तिजारत के मूलधन के द्वारा हज्ज करे जिस के लाभ से वह अपने ऊपर और अपने परिवार पर खर्च करता है,यदि मूलधन की कमी से उसका लाभ इतना कम हो जायेगा कि वह उसके और उसके परिवार के खर्च भर के लिए काफी नहीं रह जायेगा।

फतावा की स्थायी समिति (11/36) से उस आदमी के बारे में प्रश्न किया गया जिस का एक इस्लामी बैंक में कुछ धन है और उसका वेतन उसके धन के लाभ के साथ मिलकर औसत तरीक़े से उस के खर्च के लिए काफी है, तो क्या उस पर मूलधन से हज्ज करना अनिवार्य है ? जबकि ज्ञात रहना चाहिए कि यह चीज़ उसके मासिक वेतन पर प्रभाव डाले गी, और अर्थिक तौर पर उसे कष्ट में डाल देगी। तो समिति ने उत्तर दिया कि :

"अगर तुम्हारी हालत उसी तरह है जैसाकि तुम ने उल्लेख किया है तो तुम हज्ज के मुकल्लफ नहीं हो क्योंकि तुम्हारे पास शरई इस्तिताअत (सामर्थ्य) नहीं है, अल्लाह तआला का फरमान है :

"अल्लाह तआला ने उन लोगों पर जो उस तक पहुँचने का सामर्थ्य रखते हैं इस घर का हज्ज करना अनिवार्य कर दिया है।" (सूरत आल-इम्रान: 97)

तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : "और उस ने दीन के बारे में तुम पर कोई तंगी नहीं डाली।" (सूरतुल हज्ज : 78) (समिति की बात समाप्त हुई।)

असली ज़रूरतों से मुराद : वह चीज़ें हैं जिन की मनुष्य को अपने जीवन में अधिक आवश्यकता पड़ती है, और उस के लिए उन से उपेक्षा करना कठिन होता है।

उदाहरण के तौर पर : विद्यार्थी के लिए ज्ञान की किताबें, तो हम उस से यह नहीं कहेंगे कि : तू अपनी किताबों को बेच दे और उनकी क़ीमत से हज्ज कर, क्योंकि यह असली ज़रूरतों में से हैं।

इसी प्रकार वह गाड़ी जिस की आदमी को आवश्यकता है, हम उस से यह नहीं कहेंगे कि उसे बेच कर उस की क़ीमत से हज्ज कर, लेकिन अगर उस के पास दो गाड़ियाँ हैं और उसे केवल एक ही की आवश्यकता है तो उस के ऊपर अनिवार्य है कि वह उन में से एक को बेच दे ताकि उसकी क़ीमत से हज्ज करे।

इसी प्रकार कारीगर के लिए अपनी कारी गरी के औज़ार को बेचना अनिवार्य नहीं है क्योंकि उसे उनकी आवश्यकता पड़ती है।

इसी तरह वह गाड़ी जिस पर आदमी काम करता है और उसकी मज़दूरी से वह अपने ऊपर और अपने परिवार पर खर्च करता है, उस के ऊपर उसे बेचना अनिवार्य नहीं है ताकि वह हज्ज कर सके।

इसी तरह असली ज़रूरतों में से : शादी की आवश्यकता भी है।

अगर आदमी को शादी करने की ज़रूरत है तो वह हज्ज पर शादी को प्राथमिकता देगा, नहीं तो पहले हज्ज करेगा।

प्रश्न संख्या (27120)का उत्तर देखिये।

इस का सारांश यह निकला कि माली ताक़त (आर्थिक सामर्थ्य) से अभिप्राय यह है कि उस के क़र्ज़ की अदायगी, शरई खर्चे और असली ज़रूरतों के बाद उसके पास इतना धन बाक़ी बचता हो जो उसके हज्ज के लिए पर्याप्त हो।

अत: जो आदमी अपने शरीर और धन के द्वारा हज्ज करने की ताक़त रखता है उस के ऊपर हज्ज करने में जल्दी करना अनिवार्य है।

और जो आदमी अपने शरीर और धन के द्वारा हज्ज करने की ताक़त नहीं रखता है, या वह अपने शरीर के द्वारा हज्ज की ताक़त तो रखता है किन्तु वह गरीब है उसके पास धन नहीं है, तो ऐसी हालत में उस पर हज्ज अनिवार्य नहीं है।

और जो आदमी अपने धन के द्वारा हज्ज करने की ताक़त रखता है किन्तु शारीरिक तौर पर वह असक्षम है तो हम देखेंगे कि :

अगर उसकी असक्षमता और असमर्थता के समाप्त होने की आशा है जैसे कि ऐसा बीमार आदमी जिसकी बीमारी के निवारण की आशा की जाती है तो वह आदमी प्रतीक्षा करेगा यहाँ तक कि अल्लाह तआला उसे स्वास्थ्य प्रदान कर दे फिर वह हज्ज करे।

और अगर उसकी असमर्थता और असक्षमता के समाप्त होने की आशी नहीं की जाती है जैसे कि कैंसर का रोगी, या वयो वृद्ध (बूढ़ा आदमी) जो हज्ज करने की ताक़त नहीं रखता है, तो ऐसे व्यक्ति पर अनिवार्य यह है कि वह अपनी तरफ से हज्ज करने के लिए किसी को प्रतिनिधि बना दे, और शारीरिक तौर पर हज्ज करने की ताक़त न रखने के कारण उस से हज्ज की अनिवार्यता समाप्त नहीं होगी यदि वह अपने धन के द्वारा हज्ज करने में सक्षम है।

इस का प्रमाण :

वह हदीस है जिसे इमाम बुखारी (हदीस संख्या : 1513)रहिमहुल्लाह ने रिवायत किया है कि एक महिला ने कहा : ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! हज्ज से संबंधित बन्दों पर अल्लाह का फरीज़ा मेरे बाप पर इस अवस्था में आ पहुँचा है कि वह बहुत बूढ़े हो चुके हैं, वह सवारी पर बैठने की शक्ति नहीं रखते, तो क्या मैं उनकी ओर से हज्ज कर सकती हूँ ? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "हाँ।"

इस हदीस में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस महिला को उस की इस बात पर स्वीकृति प्रदान कर दी कि उसके बाप पर हज्ज अनिवार्य हो चुका है जबकि वह शारीरिक तौर पर हज्ज करने की ताक़त नहीं रखते थे।

महिला के ऊपर हज्ज के अनिवार्य होने के लिए एक शर्त यह भी है कि उस के साथ उस का कोई मह्रम भी हो, और उस के लिए बिना मह्रम के हज्ज के लिए यात्रा करना हलाल नहीं है चाहे वह अनिवार्य हज्ज हो या ऐच्छिक, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "महिला बिना महरम के यात्रा न करे।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1862) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1341) ने रिवायत किया है।

मह्रम से मुराद उस का पति और हर वह व्यक्ति है जिस पर वह नसब (वंश), या रज़ाअत (दूधपिलाई) या ससुराली संबंध के कारण हमेशा-हमेशा के लिए हराम है। (अर्थात् जिस आदमी से उसकी कभी भी शादी नहीं हो सकती )

बहन का पति (बहनोई) या खाला या फूफी का पति (खालू और फूफा) मह्रम में से नहीं हैं। जबकि कुछ महिलायें इस बारे में सुस्ती से काम लेती हैं और अपनी बहन और बहनोई, या खाला और खालू के साथ यात्रा करती हैं, हालांकि यह हराम (निषिद्ध) है।

इसलिये कि उसका बहनोई या उस का खालू उस के महरम में से नहीं है।

अत: उस के लिए उस के साथ यात्रा करना जाइज़ नहीं है।

और इस बात का भय है कि उसका हज्ज मब्रूर (मक़बूल) न हो, क्योंकि मब्रूर हज्ज वह है जिस में पाप का मिश्रण न हो, और यह महिला तो अपने पूरे सफर में पापी है यहाँ तक कि वापस आ जाये।

महरम के अंदर शर्त यह है कि वह बुद्धि वाला और व्यस्क (बालिग) हो।

क्योंकि महरम के होने का उद्देश्य महिला की रक्षा और सुरक्षा करना है, जबकि बच्चे और पागल आदमी से यह संभव नहीं है।

जब महिला को मह्रम न मिले, या महरम मौजूद हो किन्तु वह उस के साथ सफर करने पर सहमत न हो, तो उस महिला पर हज्ज अनिवार्य नहीं है।

तथा महिला पर हज्ज के अनिवार्य होने की शर्तों में अपने पति से अनुमति लेना शामिल नहीं है, बल्कि जब हज्ज के अनिवार्य होने की शर्तें पूरी हो जायें तो उस पर हज्ज करना अनिवार्य हो जाता है यद्यपि पति अनुमति न दे।

फतावा की स्थायी समिति (11/20) का कहना है :

"जब इस्तिताअत (सामर्थ्य) की शर्तें पूरी हो जायें तो फर्ज़ हज्ज वाजिब हो जाता है, और उन शर्तों में पति से अनुमति लेना शामिल नहीं है, और पति के लिए उसे रोकना जाइज़ नहीं है, बल्कि उस के लिए मश्रूअ़ यह है कि वह इस कर्तव्य की अदायगी में उस के साथ सहयोग करे।" (फतावा स्थायी समिति 11/20)

यह बात फर्ज़ हज्ज के बारे में है, जहाँ तक नफ्ली (ऐच्छिक) हज्ज का संबंध है तो इब्नुल मुंज़िर ने इस बात पर इज्माअ़ (सर्वसम्मति) का उल्लेख किया है कि पति अपनी पत्नी को नफ्ली हज्ज से रोक सकता है, क्योंकि पति का हक़ उस के ऊपर अनिवार्य है जो ऐसी चीज़ के द्वारा समाप्त नहीं हो सकता जो उस के ऊपर अनिवार्य नहीं है। (अल-मुग़्नी 5/35)

देखिये : अश्शर्हुल मुम्तिअ़ (7/5-28)

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर