हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम:
आप अल्लाह की रहमत (दया एवं कृपा) से निराश न हों,तथा आप अल्लाह के इस फरमान में मननचिंतन करें :
قُلْ يَاعِبَادِي الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ لا تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ [سورة الزمر : 53]
“आप कह दीजिए कि ऐ मेरे बन्दो! जिन्हों ने अपनी जानों पर अत्याचार किया है अल्लाह की रहमत से निराश न हो,निःसन्देह अल्लाह तआला सभी गुनाहों को माफ कर देता है,निःसंदेह वह बड़ा बख्शने वाला बड़ा दयालू है।“(सूरतुज़्ज़ुमर: 53)
दूसरा :
आप अल्लाह तआला से खालिस तौबा करें और उन सारी चीजों से दूर रहें जो हराम एवं अपराध की ओर ले जाती हैं और अधिक से अधिक अच्छे कर्म करें क्योंकि अच्छाईयाँ बुराईयों को खत्म कर देती हैं।
तीसरा:
जब आप ने अल्लाह तआला से तौबा कर लिया,तो आप से ज़िना (व्यभिचार) का आरोप समाप्त हो गया और इस आधार पर आप के लिए एक सदाचारी एवं सच्चरित्र औरत से विवाह एवं शरीफ औरत से शदी करना जाइज़ है।
तीसरा:
दुआ के अंदर मोमिन का संकल्प और उत्साह बहुत ऊँचा होता है,वह यह दुआ नहीं करता है कि अल्लाह तआला नरक की यातना को उस पर हल्की कर दे,बल्कि अल्लाह तआला से यह दुआ करता है कि उसे नरक से मुक्त कर दे,बल्कि स्वर्ग के सबसे महान स्थान फिरदौसे-आला में प्रवेश प्रदान करे। साथ ही