हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
सहीह सुन्नत (हदीस) से पता चलता है कि जुमा के दिन एक घड़ी ऐसा है जो दुआ के क़बूल होने की घड़ी है, जिसे पाकर कोई मुसलमान बंदा उस समय अल्लाह से कोई भलाई माँगता है, तो वह उसे प्रदान कर देता है। जैसा कि उस हदीस में है, जिसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 5295) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 852) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अबुल-क़ासिम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जुमा में एक घड़ी ऐसी है, जिसमें अगर कोई मुसलमान बंदा खड़ा होकर नमाज़ पढ़ता हो और अल्लाह से कोई भलाई माँगे, तो वह उसे प्रदान कर देगा।”
इस घड़ी के समय के निर्धारण में बहुत सारे कथनों पर मतभेद किया गया है, जिनमें से सबसे सही दो कथन हैं :
इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने कहा : “इन कथनों में से सबसे प्रबल (राजेह) : दो कथन हैं, जो प्रमाणित हदीसों पर आधारित हैं, और उनमें से एक दूसरे की तुलना में अधिक प्रबल है :
पहला कथन : यह है कि वह (घड़ी) इमाम के मिंबर पर बैठने से लेकर नमाज़ के अंत तक है। इस कथन का प्रमाण वह हदीस है जिसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 853) ने अबू बुर्दह बिन अबी मूसा अल-अशअरी से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने मुझसे कहा : क्या आपने अपने पिता को जुमा के दिन की (विशिष्ट) घड़ी के विषय में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से हदीस बयान करते हुए सुना हैॽ
उन्होंने कहा : मैंने कहा : हाँ, मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह फरमाते हुए सुना : “यह इमाम के बैठने के समय से लेकर नमाज़ ख़त्म होने के समय के बीच है।”
तथा तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 490) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1138) ने कसीर बिन अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन औफ़ अल-मुज़नी की हदीस से रिवायत किया है, जो अपने पिता (अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन औफ़ अल-मुज़नी) से, वह उनके दादा (अम्र बिन औफ़ अल-मुज़नी) से, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आपने फरमाया : “जुमा के दिन एक घड़ी ऐसी है कि जिसके दौरान बंदा अल्लाह से जो कुछ भी माँगता है, अल्लाह उसे वह चीज़ प्रदान कर देता है।”
लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, वह कौन-सी घड़ी हैॽ
आपने कहा : “(जुमा की) नमाज़ खड़ी होने के समय से लेकर उससे फ़ारिग़ होने (नमाज़ समाप्त होने) तक है।” [शैख अलबानी ने कहा : यह हदीस बहुत ज़ईफ़ (कमज़ोर) है]
दूसरा कथन : यह है कि वह अस्र के बाद है, और यह दोनों कथनों में अधिक प्रबल (राजेह) है। यह अब्दुल्लाह बिन सलाम, अबू हुरैरा, इमाम अहमद और अन्य लोगों का दृष्टिकोण है।
इस कथन का प्रमाण वह हदीस है, जिसे अहमद ने अपनी मुसनद (हदीस संख्या : 7631) में अबू सईद अल-ख़ुदरी और अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जुमा के दिन एक घड़ी ऐसी है कि कोई मुसलमान बंदा उस समय अल्लाह से कोई भलाई माँगता है, तो वह उसे प्रदान कर देता है। और वह (घड़ी) अस्र के बाद है।” [अल-मुसनद की तह़क़ीक़ में कहा गया है : यह हदीस अपने शवाहिद के साथ सहीह है। लेकिन यह इस्नाद ज़ईफ़ (कमज़ोर) है]।
तथा अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1048) और नसाई (हदीस संख्या : 1389) ने जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जुमा का दिन बारह घड़ी का है, जिसमें एक घड़ी ऐसी है जिसमें कोई मुसलमान बंदा अल्लाह से कुछ माँगता है, तो वह उसे प्रदान कर देता है। अतः उसे अस्र के बाद आखिरी घड़ी में तलाश करो।” [इसे अलबानी ने सहीह के रूप में वर्गीकृत किया है]।
तथा सईद बिन मंसूर ने अबू सलमह बिन अब्दुर्रहमान से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों में से कुछ लोग इकट्ठा हुए और उस घड़ी के बारे में बात की, जो जुमा के दिन होती है। तो उनके विचार अलग-अलग थे, लेकिन वे इसपर असहमत नहीं हुए कि वह जुमा के दिन की अंतिम घड़ी है। [हाफ़िज़ इब्ने ह़जर ने फत्ह़ुल-बारी 2/489 में उसकी इस्नाद को सहीह क़रार दिया है]।
तथा सुनन इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1139) में अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णति है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बैठे हुए थे और मैंने कहा : हम अल्लाह की किताब में पाते हैं कि जुमा के दिन एक ऐसी घड़ी है, जिसे कोई मोमिन बंदा नमाज़ पढ़ते हुए पा ले और उस समय अल्लाह से कुछ माँगे, तो वह उसकी ज़रूरत पूरी करेगा। अब्दुल्लाह कहते हैं : तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मेरी ओर इशारा करते हुए फरमाया : “या वह एक घड़ी का कुछ हिस्सा है।” तो मैंने कहा : आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सही कहा : या वह एक घड़ी का कुछ हिस्सा है।
मैंने कहा : वह कौन-सी घड़ी हैॽ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “वह दिन की आखिरी घड़ी है।” मैंने कहा : वह तो नमाज़ का समय नहीं हैॽ! आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “क्यों नहीं, निःसंदेह जब एक मोमिन बंदा नमाज़ पढ़ता है, फिर नमाज़ ही की प्रतीक्षा में बैठा रहता है, तो वह नमाज़ ही (की स्थिति) में होता है।” इसे अलबानी ने सहीह कहा है....
तथा सुन्न अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1046), तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 491) और नसाई (हदीस संख्या : 1430) में अबू सलमह बिन अब्दुर्रहमान की हदीस से अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : “सबसे अच्छा दिन जिसमें सूरज उगा, जुमा का दिन है। उसी दिन आदम (अलैहिस्सलाम) पैदा हुए, उसी दिन वह नीचे (पृथ्वी पर) उतारे गए, उसी दिन उनकी तौबा स्वीकार की गई, उसी दिन उनकी मृत्यु हुई और उसी दिन क़ियामत क़ायम होगी। जिन्न और मानव जाति को छोड़कर जो भी जीव हैं, वे जुमा के दिन सुबह होने से सूर्योदय तक क़ियामत क़ायम होने के डर से कान लगाए रहते हैं। तथा उसमें एक घड़ी ऐसी है, जिसे कोई मुसलमान बंदा नमाज़ पढ़ते हुए पा ले, फिर अल्लाह से किसी ज़रूरत का प्रश्न करे, तो वह उसे प्रदान कर देगा।” कअब ने कहा : क्या वह (घड़ी) हर साल में एक दिन होती हैॽ मैंने कहा : नहीं, बल्कि हर जुमा में होती है। वह कहते हैं कि फिर कअब ने तौरात पढ़ी और कहा : पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सच फरमाया। अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं : “फिर मैं अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु से मिला और कअब के साथ अपनी मुलाक़ात के बारे में उन्हें बताया, तो अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : मुझे पता है कि वह कौन-सी घड़ी है। अबू हुरैरा ने कहा : मैंने उनसे कहा : मुझे उसके बारे में बताएँ। तो अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : यह जुमा के दिन की अंतिम घड़ी है। मैंने कहा : वह जुमा के दिन की अंतिम घड़ी कैसे हो सकती हैॽ जबकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : “कोई मुसलमान बंदा उस समय को नमाज़ पढ़ते हुए पाए”, जबकि उस समय नमाज़ नहीं पढ़ी जाती है। तो अब्दुल्लाह बिन सलाम ने कहा : क्या अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह नहीं फरमाया : “जो व्यक्ति नमाज़ के इंतज़ार में बैठा रहे, वह नमाज़ ही की स्थिति में है जब तक कि वह नमाज़ न पढ़ ले।” मैंने कहा : क्यों नहीं। तो उन्होंने कहा : तो इससे अभिप्राय वही है।”
तिर्मिज़ी ने कहा : यह हदीस हसन सहीह है। इस हदीस का कुछ भाग सहीहैन (बुख़ारी व मुस्लिम) में है। [इसे अलबानी ने सहीह कहा है।] “ज़ादुल-मआद” (1/376) से उद्धरण समाप्त हुआ।
दूसरी बात :
इस कथन के आधार पर कि वह घड़ी इमाम के बैठने से लेकर नमाज़ के अंत तक है, इसका मतलब यह नहीं है कि मुक़्तदी दुआ करने में व्यस्त रहे और ख़ुत्बा सुनने से उपेक्षा करे। बल्कि उसे ख़ुत्बा सुनना चाहिए और उसमें अपने इमाम की दुआ पर आमीन कहना चाहिए। तथा वह अपनी नमाज़ के दौरान, अपने सज्दों में और सलाम फेरने से पहले दुआ कर सकता है।
इस तरह वह इस महान घड़ी में दुआ करने वाला समझा जाएगा। और अगर वह इसके साथ अस्र के बाद आखिरी घड़ी में दुआ करना भी शामिल कर लेता है, तो यह बेहतर और अधिक अच्छा है।
और अल्लाह तआला ही सबसे बेहतर जानता है।