हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सबसे पहलेः
वर्णित तरीके से आपका स्नान करना ठीक और पर्याप्त है, और सारी प्रशंसाएं अल्लाह के लिए हैं। लेकिन आपसे कुछ सुन्नतें छूट गई हैं, जो आपके स्नान की शुद्धता तो प्रभावित नहीं करती हैं।
इसका कारण यह है कि स्नान के दो प्रकार हैं : एक पर्याप्त स्नान और दूसरा पूर्ण स्नान। रही बात पर्याप्त स्नान की तो उसमें आदमी केवल स्नान के अनिवार्य कार्यों के करने पर निर्भर करता है। सुन्नतों और मुस्तहब कार्यों में से कुछ भी नहीं करता है। चुनाँचे वह खुद को शुद्ध करने का इरादा करे, फिर किसी भी तरीक़े से अपने शरीर के हर हिस्से तक पानी पहुँचाए, चाहे वह "शॉवर" के नीचे खड़ा हो, या समुद्र में अथवा स्विमिंग पूल में डुबकी लगा ले, साथ ही साथ कुल्ली करे और नाक में पानी चढ़ाए।
रही बात पूर्ण गुस्ल (स्नान) कीः तो इसका मतलब यह है कि वह उसी तरह स्नान करे जैसा कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किया है। चुनाँचे वह गुस्ल की सभी सुन्नतों का पालन करे।
शैख मुहम्मद इब्न उसैमीन रहिमहुल्लाह से गुस्ल की विधि के बारे में प्रश्न किया गयाः
तो उन्होंने उत्तर दिया : ‘‘गुस्ल करने के दो तरीक़े हैं :
1 – गुस्ल की अनिवार्य विधिः यह इस प्रकार कि आदमी अपने शरीर के सभी हिस्सों तक पानी पहुंचाए, जिसमें कुल्ली करना और नाक में पानी चढ़ाना भी शामिल है। यदि उसने किसी भी तरह से अपने शरीर के सभी हिस्सों तक पानी पहुँचा दिया, तो उससे ‘हदस् अक्बर’ दूर हो गया (अर्थात उसकी प्रमुख अशुद्धता समाप्त हो गई) और उसकी शुद्धता व पवित्रता संपन्न हो गई, क्योंकि अल्लाह तआला फरमाता है :
(وَإِنْ كُنْتُمْ جُنُبًا فَاطَّهَّرُوا) المائدة/6 .
"और अगर तुम जनाबत की हालत में हो तो ग़ुस्ल (स्नान) कर लो।" (सूरतुल मायादा : 6).
2 - गुस्ल की पूर्ण विधिः वह यह है कि उसी तरह स्नान किया जाए जैसे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किया है। चुनाँचे जब आदमी जनाबत का गुस्ल करना चाहे, तो वह अपनी दोनों हथेलियों को धोए, फिर अपने गुप्तांग और उस भाग को धोए जहाँ अशुद्धता लगी हो। फिर वह संपूर्ण वुज़ू करे। फिर वह पानी के साथ तीन बार अपना सिर धोए, फिर वह अपने शेष शरीर को धोए। यह पूर्ण गुस्ल की विधि है।’’
‘‘फतावा अर्कानुल इस्लाम’’ (पृष्ठः 248) से समाप्त हुआ।
दूसरा :
जनाबत के गुस्ल और मासिक धर्म के गुस्ल के बीच कोई अंतर नहीं है, सिवाय इसके कि मासिक धर्म के गुस्ल में बालों को, जनाबत के गुस्ल में रगड़ने की तुलना में, अधिक रगड़ना मुस्तहब है। तथा उसमें महिला के लिए, अप्रिय गंध को दूर करने के लिए, खून बहने की जगह इत्र (सुगंध) लगाना भी मुस्तहब है।
इमाम मुस्लिम (हदीस संख्या : 332) ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हा ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मासिक धर्म के गुस्ल के बारे में पूछा। तो आप ने कहा : "तुम में से कोई औरत बेर की पत्ती मिला हुआ पानी ले और उससे अच्छी तरह पवित्रता हासिल करे। फिर अपने सिर पर पानी डाले और उसे ज़ोर से रगड़े यहाँ तक कि वह (पानी) उसके बालों की जड़ों तक पहुँच जाए। फिर वह अपने ऊपर पानी डाले, फिर कस्तूरी से सुगंधित कपड़े का एक टुकड़ा ले और खुद को शुद्ध करे।" अस्मा ने कहा : वह खुद को कैसे शुद्ध करे? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "सुब्हान-अल्लाह! वह अपने आप को इसके साथ शुद्ध करे।" आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा – मानो कि वह उसे गुप्त रख रही हों (अर्थात उन्हों ने धीमी स्वर में कहा जिसे संबोधित सुन सके और अन्य श्रोता न सुन सकें) - : उसे रक्त के निशान पर फेरो।
तथा अस्मा ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से जनाबत के गुस्ल के बारे में पूछा, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "वह पानी ले ले और खुद को अच्छी तरह साफ करे, फिर अपने सिर पर पानी डाले और उसे रगड़े यहाँ तक कि वह उसके बालों की जड़ों तक पहुँच जाए, फिर अपने ऊपर पानी डाले।" आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं : अंसार की महिलाएं कितनी अच्छी हैं! लज्जा उन्हें धर्म की समझ हासिल करने से नहीं रोकती थी।’’
इसमें पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जनाबत के गुस्ल और मासिक धर्म के गुस्ल के बीच बालों के रगड़ने और सुगंध का प्रयोग करने के संबंध में विभेद किया है।
तीसरा :
वुज़ू और गुस्ल करने के समय बिस्मिल्लाह कहना जम्हूर फ़ुक़हा (विद्वानों की बहुमत) के निकट मुस्तहब है। जबकि हनाबिला का कहना है कि यह अनिवार्य है।
शैख इब्न उसैमीन (अल्लाह तआला उनपर दया करे) कहते हैं : ‘‘बिस्मिल्लाह कहना (हंबली) मत के अनुसार वाजिब है, जैसा कि वुज़ू के मामले में अनिवार्य है। हालांकि इसके बारे में कोई नस (स्पष्ट प्रमाण) नहीं है, लेकिन उनका कहना है कि : यह वुज़ू में अनिवार्य है, तो गुस्ल में तो और अधिक (अनिवार्य) होना चाहिए, क्योंकि यह बड़ी पवित्रता है।
लेकिन सही बात यह है कि यह न तो वुज़ू में अनिवार्य है और न ही गुस्ल में।’’
‘‘अश-शर्हुल मुम्ति’’ से अंत हुआ।
चौथा :
कुल्ली करना और नाक में पानी चढ़ाना गुस्ल के अंदर ज़रूरी है, जैसा कि हनफिय्या और हनाबिला का मत है।
इमाम नववी रहिमुल्लाह ने इस बिंदु पर मतभेद के बारे में चर्चा करते हुए फरमाया : ‘‘कुल्ली करने और नाक में पानी चढ़ाने के विषय में विद्वानों के चार मत हैं :
पहला मतः ये दोनों क्रियाएं वुज़ू और गुस्ल दोनों में सुन्नत हैं। यही हमारा (अर्थात शाफेई) मत है।
दूसरा मतः ये दोनों वुज़ू और गुस्ल दोनों में अनिवार्य हैं और उन दोनों के सही होने के लिए शर्त हैं। यही इमाम अहमद का प्रसिद्ध मत है।
तीसरा मतः वे दोनों गुस्ल में अनिवार्य हैं, लेकिन वुज़ू में नहीं। यह इमाम अबू हनीफा और उनके साथियों का विचार है।
चौथा मतः नाक में पानी चढ़ाना वुज़ू और गुस्ल दोनों में ज़रूरी है, लेकिन कुल्ली करना नहीं। यह इमाम अहमद से एक रिवायत है। इब्नुल-मुंज़िर कहते हैं : यही मेरा भी विचार है।’’ ‘‘अल-मज्मूअ’’ (1/400) से संक्षेप के साथ अंत हुआ।
सही (राजेह) कथन दूसरा है, अर्थात् यह कि गुस्ल में कुल्ली करना और नाक में पानी चढ़ाना अनिवार्य है और ये दोनों उसके सही होने के लिए शर्त (ज़रूरी) हैं।
शैख़ इब्न उसैमीन (अल्लाह तआला उनपर दया करे) कहते हैं : ‘‘विद्वानों में से कुछ ऐसे हैं जो कहते हैं कि उन दोनों के बिना गुस्ल सही नहीं होगा, जैसे कि वुज़ू का मामला है।
और यह भी कहा गया है किः उन दोनों के बिना वह (गुस्ल) सही है।
सही विचार पहला कथन है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान हैः (فاطَّهَّروا) "तो ग़ुस्ल (स्नान) कर लो।’’ [अल-मायाद 5: 6] और इसमें पूरा शरीर शामिल है, और नाक और मुँह के अंदर का भाग शरीर का हिस्सा हैं जिन्हें पवित्र किया जाना ज़रूरी है। इसीलिए पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने वुज़ू में उन दोनों का हुक्म दिया है क्योंकि वे दोनों अल्लाह के कथन (فاغسلوا وجوهكم) "अपने चेहरे को धो लें" [अल-मायाद 5: 6]। के अंतर्गत आते हैं। जब वे दोनों चेहरे को धोने में शामिल हैं और यह उनमें शामिल है जिन्हें वुज़ू में शुद्ध किया जाना अनिवार्य है, तो वे दोनों गुस्ल के अंदर भी चेहरे में शामिल होंगे, क्योंकि उस में शुद्धि (तहारत) अधिक महत्वपूर्ण है।
‘‘अश-शर्हुल मुम्ति’’ से अंत हुआ।
पाँचवाँ :
अगर अतीत में आप गुस्ल के अंदर कुल्ली करने और नाक में पानी चढ़ाने की उपेक्षा करती थीं, क्योंकि आपको इन दोनों के हुक्म की जानकारी नहीं थी, या इसलिए कि आप उस व्यक्ति की राय का पालन कर रही थीं जो उसे अनिवार्य नहीं कहता है, तो आपका गुस्ल सही (मान्य) है और इस गुस्ल पर आधारित आपकी नमाज़ सही (मान्य) है, और आपको उनको दोहराने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि कुल्ली करने और नाक में पानी चढ़ाने के हुक्म के बारे में विद्वानों के बीच प्रबल मतभेद पाया जाता है, जैसा कि ऊपर बताया गया है।
अल्लाह तआला सब को उस चीज़ की तौफ़ीक़ प्रदान करे जिससे वह पसंद करता और उससे प्रसन्न होता है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक जानता है।