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तरावीह की नमाज़ को लंबी करना

06-08-2011

प्रश्न 106461

एक मस्जिद का इमाम लोगों को तरावीह की नमाज़ पढ़ाता है और हर रक्अत में एक संपूर्ण पृष्ठ क़ुर्आन पढ़ता है अर्थात उसकी क़िराअत लगभग 15 आयतों के बराबर होती है, किंतु कुछ लोग कहते हैं कि : वह क़िराअत को लंबी करता है, जबकि कुछ लोग इसके विपरीत बात कहते हैं। तरावीह की नमाज़ में सुन्नत क्या है ॽ क्या नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कुछ ऐसे उद्वरण वर्णित हैं जिनसे यह पता चलता हो कि कौन सी क़िराअत लंबी है और कौन सी किराअत लंबी नहीं है ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

“ सही हदीस में में प्रमाणित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रमज़ान में और रमज़ान के अलावा अन्य दिनों में रात को ग्यारह रक्अत नमाज़ पढ़ते थे, किंतु आप क़िराअत और अन्य अरकान को लंबा करते थे, यहाँ तक कि आप ने एक बार एक रकअत में तर्तील के साथ और ठहर-ठहर कर पाँच पारों की तिलावत की। तथा यह बात प्रमाणित है आप आधी रात को या उस से थोड़ा पहले या उसके थोड़ा बाद क़ियामुल्लैल करते थे, फिर आप फज्र के उदय होने के निकट तक निरंतर नमाज़ पढ़ते रहते थे, चुनाँचे लगभग पाँच घंटे में तेरह रक्अत नमाज़ पढ़ते थे, और इसके लिए क़िराअत और अरकान को लंबा करने की आवश्यकता होती है।

तथा यह बात सिद्ध है कि उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने जब सहाबा को तरावीह की नमाज़ पर एकत्र किया तो वे बीस रकअत नमाज़ पढ़ते थे, और एक रक्अत में सूरतुल बक़रा की लगभग तीस आयतें पढ़ते थे अर्थात् लगभग चार या पाँच पृष्ठ, चुनाँचे वे सूरतुल बक़रा आठ रकअत में पढ़ते थे, यदि वे उसे (सूरतुल बक़रा) बारह रकअत में पढ़ते थे तो वे समझते थे कि इमाम ने क़िराअत हल्की की है।

तरावीह की नमाज़ में यही सुन्नत है, यदि वह क़िराअत को हल्की करता है तो रक्अतों की संख्या में इक्तालीस रक्अत तक वृद्धि करे, जैसाकि कुछ इमामों का कहना है, और यदि वह ग्यारह या तेरह रक्अतों पर ही बस करना पसंद करे तो क़िराअत और अरकान में वृद्धि करे, तथा तरावीह की नमाज़ की कोई निश्चित (निर्धारित) संख्या नहीं है, बल्कि उद्देश्य यह है कि ऐसे समय में नामज़ पढ़ी जाय जिसमें इतमिनान (मन की शांति) और ध्यान प्राप्त हो, जो एक घंटे या उसके आसपास से कम न हो, और जो व्यक्ति यह समझे कि यह लंबा है तो उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से उद्धरण बातों का विरोध किया, अतः उसकी ओर ध्यान नहीं दिया जायेगा।” (अंत)

फज़ीलतुश्शैख इब्ने जिब्रीन

नफ्ल (स्वेच्छिक) नमाज़ तरावीह की नमाज़ और शबे-क़द्र
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