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संक्रामक रोगों के नियंत्रण के साथ इस्लाम कैसे व्यवहार करता हैॽ

20-09-2020

प्रश्न 129598

संक्रामक रोगों के नियंत्रण और उससे बचाव के प्रति इस्लाम का क्या व्यवहार हैॽ क्या दिव्य क़ुरआन में कोई सूरत (अध्याय) है जो उन निवारक उपायों और सावधानियों की व्याख्या करती है जिन्हें संक्रमण को नियंत्रित करने या रोकने के लिए अपनाया जाना चाहिएॽ उदाहरण के लिए, यहूदियों के पास “Book of Leviticus” (लेविटिकस की पुस्तक) नामक एक पुस्तक है, जो इस तरह के मामलों से संबंधित है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

एक व्यक्ति को चाहिए की उन तकलीफ़ों और पीड़ाओं से बचे, जो उसे संक्रामक और घातक बीमारियों से पीड़ित कर सकती हैं। इसका प्रमाण नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह कथन है : “बीमारी से पीड़ित (ऊँट) को स्वस्थ (ऊँट) के पास न लाया जाए।” अर्थात जो व्यक्ति खुजली और इसी तरह की बीमारियों वाले ऊँटों का मालिक है। इसका मतलब यह है कि जो व्यक्ति बीमार ऊँटों का मालिक है, उसे चाहिए कि अपने बीमार ऊँटों को ऐसी जगह या पानी पर न लाए, जहाँ स्वस्थ ऊँटों का मालिक अपने ऊँटों को लाता है। क्योंकि इस बात का डर है कि कहीं ऐसा न हो कि बीमारी, बीमार ऊँटों से स्वस्थ ऊँटों तक पहुँच जाए और इस तरह बीमारी फैल जाए।

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णन किया गया है कि आपने फरमाया : “कोढ़ी से उसी तरह भागो जिस तरह तुम शेर से भागते हो।”

कोढ़ी वह व्यक्ति है जो कुष्ठ रोग से ग्रसित हो। ये बुरे क़िस्म के घाव होते हैं, जिनका प्रभाव अल्लाह के हुक्म से फैलता है।

हम मानते हैं कि ये बीमारियाँ अपनी प्रकृति से संक्रामक नहीं होतीं हैं। क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : “प्राकृतिक रूप से कोई संक्रमण (छूत) प्रभावी नहीं है, न कोई बुरा शकुन है।” अर्थात : ये रोग अपने आपसे संक्रामक नहीं होते हैं, लेकिन अल्लाह उन्हें संचारित होने वाला बना देता। चुनाँचे वह उनमें ऐसा कारण पैदा कर देता है जो बीमारी को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को संचारित करता है। इस प्रकार मिश्रण (यानी बीमार आदमी का स्वस्थ आदमी के साथ मेल-मिलाप) इसका एक कारण है। इसलिए आदमी को उल्लिखित हदीसों का अनुपालन करते हुए, उन कारणों से बचना चाहिए, जिनके माध्यम से बीमारी फैलती है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि सब कुछ अल्लाह के ‘क़ज़ा व क़द्र’ (फैसले) के अंतर्गत होता है। तथा अल्लाह तआला ने उन लोगों का जो अपशकुन लेते थे, अपने इस कथन के द्वारा खंडन किया है :

فَإِذَا جَاءَتْهُمْ الْحَسَنَةُ قَالُوا لَنَا هَذِهِ وَإِنْ تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ يَطَّيَّرُوا بِمُوسَى وَمَنْ مَعَهُ

سورة الأعراف : 131

“फिर जब उन्हें अच्छी हालत पेश आती, तो कहते कि यह तो हमारे ही लिए है। और अगर उन्हें बुरी हालत पेश आती, तो वे उसे मूसा और उसके साथियों का अपशकुन (नहूसत) ठहराते।” (सूरतुल आराफ़ : 131)

अर्थात् वे कहते : यह मूसा और उनके साथ रहने वालों का दुर्भाग्य है और हमारे साथ जो कुछ हुआ है, वह केवल उनके दुर्भाग्य और बुराई के कारण हुआ है।

इसलिए अल्लाह ने उनका यह कहकर खंडन किया :

أَلا إِنَّمَا طَائِرُهُمْ عِنْدَ اللَّهِ

سورة الأعراف : 131

“याद रखो, उनकी नहूसत (अपशकुन) अल्लाह के पास है, परंतु उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते।” (सूरतुल आराफ़ : 131)

इस बारे में साक्ष्य स्पष्ट हैं कि यदि बीमारी से प्रभावित लोगों के साथ मिश्रण (मेल-मिलाप) होता है, तो उसके परिणामस्वरूप अल्लाह की अनुमति से संक्रमण घटित होता है।  तथा कभी-कभी (बीमार व्यक्ति के साथ) मिश्रण होता है, लेकिन अल्लाह की तौफ़ीक़ से संक्रमण नहीं होता है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

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