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मुसलमान के लिए किसी ऐसे कमरे में जिस की दीवारों पर प्रतिमाएं, छवियाँ और चित्र जैसे कि क्रिस्मस की मालाओं की छवियाँ और इसके समान चीज़ें हों, नमाज़ पढ़ने की अनुमति न होने का क्या कारण है ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
विद्वानों की ऐसी जगह पर नमाज़ पढ़ने के निषेध पर सहमति है जो चेतन प्राणियों की तस्वीरों पर आधारित हो,बल्कि कुछ विद्वान उसे हराम घोषित करने की ओर गए हैं,और अधिकांश विद्वानों ने उसे मक्रूह कहा है।
इमान नववी -अल्लाह उनपर दया करे- फरमाते हैं :
“जहाँ तक उस पोशाक का संबंध है जिसमें छवियाँ, क्रॉस, या ध्यान भंग करने वाली चीज़ें हैं तो उसमें (अर्थात उसे पहन कर),उसकी ओर मुँह करके और उसके ऊपर नमाज़ पढ़ना मक्रूह (घृणित) है।” इमाम नववी की किताब “अल-मजमूअ़्” (3/185) से संपन्न हुआ।
तथा शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने फरमाया:
उमर बिन अल-खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु वगैरह से जो बात शुद्ध रूप से वर्णित है और इमाम अहमद वगैरह ने जिसे स्पष्ट रूप से वर्णन किया है,यह है कि : यदि उसके -अर्थात् चर्च- में छवियाँ हों तो उसके अंदर नमाज़ नहीं पढ़ी जायेगी ;क्योंकि जिस घर में कोई छवि हो उस में स्वर्गदूत (फरिश्ते) प्रवेश नहीं करते हैं,और इसलिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम काबा के अंदर उस वक़्त तक दाखिल नहीं हुए यहाँ तक कि उसके अंदर जो छवियाँ थीं उन्हें मिटा दिया गया। इसी तरह उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का फरमान है: हम उन के चर्चों में प्रवेष नहीं करते थे इस हाल में कि उन के अंदर छवियाँ हों।” किताब “मजमूउल फतावा” (22/162) से संपन्न हुआ।
अल्लामा बहूती हंबली -अल्लाह उनपर दया करे- ने फरमाया:
“किसी खड़ी हुई प्रतिमा (छवि) की ओर नमाज़ पढ़ना घृणित है, इस को उन्हों ने स्पष्ट रूप से वर्णन किया है ; . . . क्योंकि यह काफिरों का उन्हें सज्दा करने (साष्टांग प्रणाम करने) के समान है . . . और “अल-फुसूल” के अंदर है कि: किसी ऐसी दीवार की ओर नमाज़ पढ़ना मक्रूह (घृणित) है जिस में कोई छवि या प्रतिमा हो;क्योंकि इस में मूर्तियों और बुतों की पूजा करने की नक़ल पाई जाती है।” संछेप के साथ “कश्शाफुल क़िनाअ” (1/370) से समाप्त हुआ।
स्थायी समिति के विद्वानों का कहना है:
“ऐसी जगह में नमाज़ पढ़ना जिस में नमाज़ियों के सामने छवि (चित्र) हो, इस में मूर्तियों की पूजा की समानता और नकल पाई जाती है,जबकि अल्लाह तआला के दुश्मनों की समानता और उनकी छवि अपनाने के निषेध और उनका विरोध करने के आदेश पर दलालत करने वाली बहुत सारी हदीसें आई हैं, साथ ही यह बात ज्ञात रहनी चाहिए कि दीवारों पर चेतन प्राणियों की चित्रों को लटकाना वैध (जाइज़) नहीं है,बल्कि वह अतिश्योक्ति और बहुदेववाद (अनेकेश्वरवाद) के कारणों में से है, विशेषकर जब वह सम्मानित लोगों की चित्रें हों।” स्थायी समिति के फतावा (6/250) से समाप्त हुआ। (अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़,अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफीफी,अब्दुल्लाह बिन गुदैयान,अब्दुल्लाह बिन क़ऊद)।
तथा हनफी और शाफेई विद्वानों में से बाद में आने वालों ने - हनाबिला के विपरीत- इस मामले में कड़ा रूख अपनाया है यहाँ तक कि उन्हों ने उस स्थान पर नमाज़ पढ़ने से मना किया है जहाँ चित्र और छवियाँ हों, भले ही वह नमाज़ी के पीछे हों,या ज़मीन पर इस तरह पड़ीं हों कि उसे दिखाई न देती हों।
अल-शब्रामलसी शाफेई कहते हैं:
“ऐसे कपड़े में नमाज़ पढ़ना जिस में कोई छवि हो, या उस के ऊपर नमाज़ पढ़ना मक्रूह है . . .भले ही वह आदमी अंधा हो, या अंधेरे में नमाज़ पढ़ रहा हो, या छवि उस की पीठ के पीछे हो, या ज़मीन पर इस तरह रखी हो कि नमाज़ पढ़ते समय उसे दिखाई न दे। और यही बात स्पष्ट है, उस से बचते हुए जिसमें निषिद्ध छवि हो।” हाशियतो निहायतिल मुहताज (2/14) से संपन्न हुआ।
दूसरा :
पिछले उद्धरणों से हमारे लिए ऐसी जगह में जहाँ चित्र और मूर्तियाँ हों नमाज़ के निषेद्ध की तत्वदर्शिता के पहलुओं को जानना और संग्रह करना संभव है,और वे निम्नलिखित हैं :
पहला : फरिश्ते उस घर में प्रवेश नहीं करते हैं जिस में कोई चित्र हो, अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “फरिश्ते उस घर में प्रवेश नहीं करते हैं जिस में कुत्ता और प्रतिमाओं की चित्र हो।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 3225) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2106)ने रिवायत किया है।
नमाज़ी अल्लाह तआला से दया और करुणा के अवतरण और भलाईयों की अधिकता का प्रश्न करता है, तो वह ऐसी जगह पर इसका प्रश्न कैसे करता है जहाँ दया व करूणा के फरिश्ते प्रवेष नहीं करते हैं।
दूसरा : बुतों और मूर्तियों की पूजा करने वाले मूर्तिपूजकों बल्कि ईसाईयों की - भी - समानता में पड़ने से बचना जिन्हों ने अपने चर्चों को मसीह अलैहिस्सलाम और उनकी माँ मरियम अलैहस्सलाम की छवियों और चित्रों से झूठ और मिथ्यापूर्ण भर रखा है। और गैर मुसलमानों की समानता अपनाने और नक़ल करने से बचना उन महत्वपूर्ण प्रावधानों में से है जिसे इस्लामी शरीअत ने प्रस्तुत किया है, ताकि मुसलमान की पहचान की पिघलने तथा घुलने और विनाशन से रक्षा किया जाए, और उसकी रोशन (चमकदार) चमक को बरक़रार रखा जाए जो राष्ट्रों के बीच रोशनी फैलाती और बिखेरती है।
आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उम्मे हबीबा और उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से एक चर्च का चर्चा किया जिसे उन्हों ने हबशा में देखा था जिसके अंदर चित्र और छवियाँ थीं, तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ये ऐसे लोग हैं कि जब इन के अंदर का एक नेक आदमी मर जाता तो उसकी क़ब्र पर एक मस्जिद (पूजा स्थल) बना डालते और उस के अंदर उन छवियों को चित्रित कर देते थे, वो लोग परलोक के दिन अल्लाह के निकट सबसे दुष्ट सृष्टि हैं।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 427) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 528)ने रिवायत किया है।
तीसरा पहलू : नमाज़ी के दिल को विचलित और व्यस्त करने वाली चीज़ों से बचाना, चुनाँचि जब नमाज़ी के सामने छवियाँ और तस्वीरें होती हैं तो उसकी सोच को उड़ा ले जाती हैं और उसके दिल को परागंदा कर देती हैं। जबकि मुसलमान अपनी नमाज़ के अंदर विनम्रता और अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर एकाग्रता व श्रद्धा के अंतिम स्तर तक पहुँचने का इच्छुक होता है।
अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : “आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास एक रंगीन चादर थी जिसका उन्हों ने अपने घर के एक कोने का पर्दा बना लिया था,तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तुम अपनी इस चादर को हमसे दूर कर दो (हटा दो) क्योंकि इसकी छवियाँ (तस्वीरें) निरंतर मेरी नमाज़ में रूकावट डाल रही हैं।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 374)ने अध्याय: “चित्रों में नमाज़ की कराहियत” में रिवायत किया है।
तथा प्रश्न संख्या (161211)का उत्तर देखिए।