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अपने कार्यस्थल की प्रकृति के कारण, हम कोरोना वायरस के संक्रमण के इन कठिन दिनों में सेनेटाइज के बहुत इच्छुक हैं। यहाँ तक कि जब हम इमारत के गलियारों में चलते हैं या वॉशरूम में जाते हैं, तो हम मास्क पहनते हैं। मेरा सवाल नमाज़ के बारे में है, क्योंकि सज्दा करते समय नाक ज़मीन (फर्श) या जाए-नमाज़ को छूती है, और यहाँ की ज़मीन (फर्श) घर के समान नहीं है, क्योंकि हर कोई जूते पहनकर चलता है। इसलिए अगर वहाँ वायरस मौजूद है, तो उसके ज़मीन (फर्श) के माध्यम से नाक तक पहुँचने का बड़ा जोखिम है। अगर मैं वहाँ नमाज़ पढ़ता हूँ और किसी सहकर्मी ने मुझे देख लिया, तो यह एक समस्या बन जाएगी। क्योंकि ऐसा करके मैंने सभी चिकित्सा दिशानिर्देशों और चेतावनियों को दीवार पर मार दिया। इसलिए क्या मैं बिना सज्दे के नमाज़ पढ़ सकता हूँॽ या मैं नमाज़ों को इकट्ठा करके उन्हें अपने घर पर पढ़ सकता हूँॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
सज्दा नमाज़ के स्तंभों में से एक स्तंभ है, जिसके बिना नमाज़ सही (मान्य) नहीं होती है, सिवाय उस व्यक्ति के लिए जो बीमारी के कारण सज्दा करने में असमर्थ है, या जो किसी अशुद्ध (नापाक) जगह पर बंदी बनाकर रखा गया है, तो वह उसके लिए झुककर इशारा करेगा।
“कश्शाफुल क़िनाअ” (1/351) में आया है : “नमाज़ी का इन सात अंगों : माथा नाक के साथ, दोनों हाथों, दोनों घुटनो और दोनों पैरों पर सज्दा करना : एक स्तंभ है, यदि वह ऐसा करने में सक्षम है। क्योंकि इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आपने फरमाया : “मुझे आदेश दिया गया है कि मैं सात हड्डियों पर सज्दा करूँ : पेशानी पर और आपने अपने हाथ से अपनी नाक की ओर संकेत किया, और दोनों हाथों, दोनों घुटनों, और दोनों पाँव के किनारों (सिरों) पर।’’ इसे बुखारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब तुम में से कोई सज्दा करता है, तो उसके साथ सात अंग (भी) सज्दा करते हैं : उसका चेहरा, उसकी दोनों हथेलियाँ, उसके दोनों घुटने और उसके दोनों पाँव।” इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
तथा हदीस “सजदा वजहिया... अंत तक” (मेरे चेहरे ने सज्दा किया...) : चेहरा के अलावा अन्य अंगों के सज्दे का इनकार नहीं करती है, बल्कि केवल चेहरे को इसलिए विशिष्ट किया है क्योंकि पेशानी (माथा) ही असल है। अतः जब भी वह इनमें से किसी अंग पर सज्दा का उल्लंघन करेगा, तो वह सज्दा मान्य नहीं होगा।
और यदि वह पेशानी के साथ सज्दा करने में असमर्थ है, तो वह जितना हो सकता है उसके लिए झुककर इशारा करेगा और शेष अंगों की अनिवार्यता समाप्त हो जाएगी; क्योंकि सज्दे में पेशानी ही असल है और उसके अलावा अन्य अंग उसके अधीन हैं। अतः जब असल ही समाप्त हो गया, तो उसका अधीनस्थ भी समाप्त हो जाएगा ...
और अगर वह उसके साथ (अर्थात पेशानी के साथ) सज्दा करने में सक्षम है, तो उपर्युक्त अंगों में से शेष अंग उसके अधीन होंगे; उस आधार पर जिसका ऊपर उल्लेख किया गया है।
दूसरा :
नमाज़ को उसके समय से विलंबित करना जायज़ नहीं है, किंतु आप ज़ुहर की नमाज़ को अस्र की नमाज के साथ, तथा मग़रिब की नमाज़ को इशा की नमाज़ के साथ इकट्ठा कर सकते है, यदि नमाज़ को इकट्ठा करने को जायज़ ठहराने वाला कोई उज़्र (कारण) पाया जाता है।
इन शरई कारणों (उज़्र) के बारे में जानने के लिए : प्रश्न संख्या : (147381) का उत्तर देखें।
आपने बीमारी से संक्रमित होने से बचने के लिए जिस एहतियात (सावधानी) का उल्लेख किया है, वह सज्दा को छोड़ने के लिए या नमाज़ों को इकट्ठा करके पढ़ने के लिए उज़्र (वैध बहाना) नहीं है। आप एक चटाई (जाए-नमाज़) रख सकते हैं, जिस पर आप नमाज़ पढ़ सकते हैं तथा उसकी ज़मीन के साथ संपर्क में आने वाली तरफ को सेनेटाइज कर सकते हैं।
इसी तरह आप अपने साथ कई एक (पलास्टिक के) दस्तरख्वान, या स्वच्छ प्लास्टिक की थैलियों रख सकते हैं, ताकि आप हर नमाज़ को उनमें से किसी एक पर अदा करें और फिर नमाज़ से फ़ारिग होने के बाद उसे कचरे में फेंक दें। इस प्रकार आप ज़मीन (फर्श) से होने वाले नुकसान और क्षति से बच जाएंगे, तथा खुद को संक्रमण से भी सुरक्षित रख सकेंगे।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।