गुरुवार 25 जुमादा-2 1446 - 26 दिसंबर 2024
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बहुदेववादियों की निषिद्ध सदृशता का नियम

प्रश्न

मैंने कुछ लोगों को कहते सुना है कि पैंट और सूट पहनना हराम है क्योंकि यह काफिरों की नकल (सदृशता) है। क्या यह बात सही हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्वशक्तिमान अल्लाह ने मुसलमानों को काफ़िरों की नकल करने से मना किया है, तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस बारे में कठोर रवैया अपनाया है, यहाँ तक कि आपने फरमाया : “जिसने किसी जाति की सददृशता अपनाई, वह उन्हीं में से है।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4031) ने रिवायत किया है और अलबानी ने सहीह सुनन अबी दाऊद में इसे सहीह कहा है।

काफिरों की नक़ल करने का निषेध केवल उन चीज़ों पर लागू होता है जो उनके लिए विशिष्ट हैं, और मुसलमान अन्हें उनके साथ साझा नहीं करते हैं।

विशिष्टता के अर्थ को यह तथ्य स्पष्ट करता है कि : यदि उस कार्य को करने वाले व्यक्ति को देखा जाए तो उसके बारे में यही कहा जाए कि : वह उस पंथ से है जिसकी समानता अपनाने से मना किया गया है। और यह केवल उस कार्य पर लागू हो सकता है जो उस पंथ के अलावा कोई और नहीं करता है। जहाँ तक उनके और मुसलमानों के बीच सामान्य कार्य की बात है, तो यह कहना सही नहीं है कि : उसका यह कार्य निषिद्ध सदृशता (नकल) में से माना जाएगा; क्योंकि वह कार्य उनके लिए विशिष्ट नहीं है।

इसके आधार पर; जिन चीज़ों से केवल इसलिए मना किया जाता है क्योंकि वे मुशरिकीन की नकल हैं, उनका हुक्म समय या स्थान के अनुसार, अलग-अलग परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार अलग-अलग हो सकता है।

यदि इस तरह का कपड़ा किसी देश में केवल काफ़िर ही पहनते हैं, तो उस देश में मुसलमान के लिए इसे पहनना हराम है। लेकिन अगर किसी दूसरे देश में इसे मुसलमान और काफ़िर दोनों ही पहनते हैं, तो उस देश में (एक मुसलमान के लिए) इसे पहनना जायज़ है।

पैंट या सूट पहनना आज काफिरों के लिए विशिष्ट नहीं है, बल्कि अधिकांश देशों में इसे मुसलमानों द्वारा पहना जाता है, और वे इसे पहनने में काफिरों की नकल नहीं समझते, क्योंकि यह उनके लिए विशिष्ट नहीं है।

इस आधार पर; इसे पहनना जायज़ है और इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है।

प्रश्न संख्या (105412) और (105413) के उत्तर में, हम इफ़्ता की स्थायी समिति के फतवे का पहले ही उल्लेख कर चुके हैं कि पैंट और सूट पहनना जायज़ है, और यह काफिरों की नकल नहीं है।

शैख मुहम्मद बिन उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया : काफ़िरों की नक़ल करने के मुद्दे के बारे में नियम क्या है?

तो उन्होंने जवाब दिया :

काफिर की नक़ल शक्ल-सूरत, कपड़े, खाने-पीने आदि में होती है, क्योंकि यह एक सामान्य शब्द है। इसका मतलब यह है कि इनसान कोई ऐसी चीज़ करे जो विशेष रूप से काफ़िरों द्वारा की जाती है, इस तरह से कि जो कोई भी उसे देखता है उसे यह इंगित होता है कि वह एक काफ़िर है। यही इसका नियम है। लेकिन अगर वह चीज़ मुसलमानों और काफिरों के बीच सामान्य हो गई है, तो यह नक़ल जायज़ है, भले ही वह मूल रूप से काफिरों से ली गई हो, जब तक कि वह अपने आप में हराम न हो, जैसे कि रेशम पहनना।” उद्धरण समाप्त हुआ।

“मजमूओ दुरूस व फ़तावा अल-हरम अल-मक्की” (3/367).

तथा उनसे यह भी पूछा गया : काफ़िरों की नक़ल (सदृशता) का पैमाना क्या हैॽ

तो उन्होंने जवाब दिया :

“नक़ल करने का पैमाना यह है कि नक़ल करने वाला वही कुछ करे जो उस व्यक्ति के लिए विशिष्ट है जिसकी नक़ल की गई है। इसलिए काफिरों की नकल करने का मतलब यह है कि एक मुसलमान कोई ऐसी चीज़ करे, जो उनकी विशेषताओं में से है।

लेकिन जो चीज़ मुसलमानों के बीच फैल गई है और वह काफिरों की एक विशिष्ट विशेषता नहीं रह गई है, तो यह नक़ल नहीं है। इसलिए यह नक़ल के आधार पर हराम नहीं होगी, सिवाय इसके कि वह किसी अन्य कारण से हराम हो। हमने जो कुछ कहा है वह इस शब्द के अर्थ का तक़ाज़ा है। कुछ इसी तरह फ़त्हुल-बारी के लेखक [इब्न हजर] ने भी कहा है, जब उन्होंने (10/272) कहा : “सलफ में से कुछ ने बर्नोज़ (हुड वाला लबादा) पहनने को मकरूह माना है, क्योंकि यह पादरियों का पहनावा था। इमाम मालिक से इसके बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा : इसमें कोई हर्ज नहीं। कहा गया : लेकिन यह ईसाइयों का पहनावा है। उन्होंने कहा : यह यहाँ पहना जाता था। उद्धरण समाप्त हुआ।”

मैं (इब्ने उसैमीन] कहता हूँ : अगर इमाम मालिक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन को सबूत के तौर पर उद्धृत करते, जब आपसे पूछा गया कि मोहरिम को क्या पहनना चाहिए, तो आपने कहा : “उसे शर्ट (क़मीज़), पगड़ी, पैंट, बर्नोज़ नहीं पहनना चाहिए...” तो यह अधिक उपयुक्त होता।

फ़त्हुल-बारी (1/307) में यह भी कहा गया है : यदि हम कहते हैं कि उससे (अर्थात् अर्ग़वान की गद्दियों से) मनाही गैर-अरबों की नक़ल करने के कारण है, तो यह एक धार्मिक उद्देश्य के लिए है। परंतु यह उस समय उनका प्रतीक था, जब वे काफिर थे। लेकिन अब जब यह उनका विशिष्ट प्रतीक नहीं है, तो वह अर्थ ग़ायब हो गया, इसलिए अब वह मकरूह नहीं है। और अल्लाह ही बेहतर जानता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

“फतावा अल-अक़ीदह” (245).

अर्ग़वान की गद्दियाँ उस तकिए की तरह होती हैं जिसे घोड़े पर सवार अपने नीचे रखता है।

अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या (21694 ) का उत्तर देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर