हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
इस्तिख़ारा एक दुआ है, जिसमें बंदा अपने सर्वशक्तिमान पालनहार से अपने लिए दो मामलों में से सबसे अच्छा चुनने के लिए अनुरोध करता है। इस्लामी शरीयत में दुआ का अध्याय बहुत व्यापक है, जिसमें मुसलमान के लिए जायज़ है कि वह अपनी सभी जरूरतों का सर्वशक्तिमान अल्लाह से सवाल करे। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम व्यापक दुआएँ पसंद करते थे, जो कि कम शब्दों में बहुत सारे अर्थों को समोए होती हैं।
दो रकअत नमाज़ पढ़ने के बाद उसे अपने इस्तिख़ारा में एक से अधिक ज़रूरतों का उल्लेख करने से रोकने का कोई कारण नज़र नहीं आता; और उसके बारे में यह कहना सच है कि उसने दो रकअत नमाज़ पढ़ी, फिर उनके बाद उसने अपनी ज़रूरत के लिए दुआ की। हालाँकि, हर ज़रूरत के लिए एक अलग-अलग दो रकअत नमाज़ पढ़ना और दुआ करना बेहतर है।
शैख अब्दुल्लाह बिन जिबरीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया :
क्या एक नमाज़ में एक से अधिक मामलों के लिए इस्तिख़ारा किया जा सकता हैॽ
तो उन्होंने जवाब दिया :
यह जायज़ है, और आप नमाज़ को उसके बाद दुआ करने का एक वसीला (ज़रीया) बना सकते हैं। अतः [दो रकअत] नमाज़ पढ़ने के बाद दो या दो से अधिक ज़रूरतों के लिए इस्तिख़ारा करने में कोई आपत्ति नहीं है। चुनाँचे वह प्राक्कथन के बाद दुआ में कह सकता है : “ऐ अल्लाह! अगर यह मामला और यह मामला मेरे लिए अच्छा है... तो उन्हें मेरे लिए आसान बना दे...”
“फ़तावा फी सलातिल-इस्तिख़ारह” (प्रश्न संख्या : 12).
हमने यह प्रश्न अपने शैख अब्दुर-रहमान अल-बर्राक हफ़िज़हुल्लाह से पूछा, तो उन्होंने कहा : “वह एक ही (इस्तिख़ारा की) नमाज़ में कई मामलों को एकत्र कर सकता है, और वह कह सकता है : ऐ अल्लाह! यदि तू जानता है कि यह मामला, यह मामला और यह मामला मेरे लिए अच्छा है ...”
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।