हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
क़ुर्बानी के जानवर के गोश्त को तीन हिस्सों में विभाजित करना कुछ सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से वर्णित है। इस विषय में मामले के अंदर विस्तार है, महत्वपूर्ण यह है कि उसमें से कुछ हिस्सा गरीबों और मिस्कीनों तक पहुँचना ज़रूरी है।
इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने फरमाया :क़ुर्बानी के जानवर और उपहार एक तिहाई तुम्हारे परिवार के लिए, एक तिहाई तुम्हारे लिए और एक तिहाई मिस्कीनों (गरीबों) के लिए हैं।
तथाइब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से इसी के समान वर्णित है।
दूसरा :
अगर क़ुर्बानी करनेवाले ने अपने क़ुर्बानी के जानवर से एक भी गरीब मुसलमान को खिला दिया, तो उसके लिए इसके बाद उससे गैर मुसलमानों को दान करना जायज़ है।
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
उससे - अर्थातृ क़ुर्बानी के जानवर से - काफिर को खिलाना जायज़ है। यही बात अल-हसन, अबू सौर और असहाबुर्राय ने कही है।
क्योंकि यह एक स्वैच्छिक सदक़ा (दान) है, तो अन्य स्वैच्छिक दान के समान उसे ज़िम्मी और क़ैदी को खिलाना जायज़ है। लेकिन जहाँ तक अनिवार्य दान की बात है: तो उसे काफिर को देना काफी (पर्याप्त) नहीं होगा, क्योंकि वह एक अनिवार्य सदक़ा है, इसलिए वह ज़कात और क़सम के कफ्फारा के समान हो गया।’’
‘‘अल-मुगनी’’ (11/109) से संक्षेप के साथ समाप्त हुआ।
इस आधार पर, जब आप अपने क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह करें तो किसी मुसलमान मिस्कीन (गरीब) को तलाश करें और उसे उसमें से कुछ दे दें, फिर जो बाक़ी बचे उससे आप खाएं, बचाकर रखें, उपहार करें और दान दें, चाहे गैर-मुसलमानों पर ही क्यों न हो, और शायद इससे उनके दिल इस्लाम के प्रति नरम हो जाएं।
यदि आप किसी मिस्कीन को नहीं जानते हैं, और इस्लामी केंद्र आपकी ओर से उनके बारे में तलाश कर उन्हें क़ुर्बानी का गोश्त पहुंचा सकता है, तो आप जितना चाहें उससे इस्लामी केंद्र को देने में कोई रूकावट नहीं है।