सोमवार 24 जुमादा-1 1446 - 25 नवंबर 2024
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एक मुसलमान लड़की को नसीहत जिसे उसके घर वाले नमाज़ और पर्दा करने से रोकते हैं

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प्रकाशन की तिथि : 19-12-2020

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प्रश्न

मैं सोलह साल की एक लड़की हूँ, और एक ऐसे परिवार से हूँ जो धर्म के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं, मैं एक अकेली हूँ जो नमाज़ पढ़ती हूँ और इस्लाम की शिक्षाओं का पालन करने का प्रयास करती हूं, इसीलिए मुझे बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, उन्हीं में से यह है कि मेरी माँ मुझे इशा और फज्र की नमाज़ पढ़ने से रोकती है और कहती है कि वे दोनों अनुचित समय में हैं !! इसके बावजूद मैं उन्हें चुपके से पढ़ लेती हूं, और यदि वह मुझसे आकर पूछती है तो मैं कहती हूँ कि: मैं ने नमाज़ नहीं पढ़ी . . . ! तो इस बारे में शरीअत का प्रावधान क्या है ॽ क्या मेरे लिए ऐसी स्थिति में झूठ बोलना जइज़ है ॽ तथा मैं पिज़्ज़ा रेस्तरां में काम करता थी और यह रेस्तरां सूअर बेचता था इसलिए मैं ने उसे छोड़ दिया, और जब उसने मुझसे पूछा तो मैं ने उससे कहा कि उन्हों ने मुझे निकाल दिया है, तो इस स्थिति में भी शरीअत का दृश्य क्या है ॽ एक दूसरा मुद्दा यह है कि मैं अपनी माँ के साथ ट्रेन से एक दूसरे शहर का सफर करने वाली हूँ और ज़ुहर और अस्र की नमाज़ का समय ट्रेन ही में हो जायेगा, और उस समय मेरे लिए उनकी अदायगी करना संभव न होगा, तो फिर क्या करना होगा ॽ मैं ने सुना है कि नमाज़ों को एकत्र करके पढ़ना जाइज़ है, लेकिन मुझे नहीं पता कि कैसे . . .! क्या इसका मतलब यह है कि मेरे लिए ज़ुहर और अस्र की नमाज़ ज़ुहर की नमाज़ के समय पढ़ना संभव है, और इसे कैसे पढ़ा जायेगा ॽ यह बात निश्चित है कि मैं इशा और फज्र की नमाज़ भी पढ़ने पर सक्षम नहीं हूँगी क्योंकि मेरी माँ मेरे साथ होगी, तो फिर क्या करूँ ॽ क्या दूसरे समय में नमाज़ों की क़जा की जायेगी, और कैसे ॽ इसके अलावा, मेरी माँ मुझे हिजाब पहनने से भी रोकती है, और इस बात पर ज़ोर देती है कि मैं ऐसा पोशाक पहनूँ जो उस समाज और वातावरण के अनुकूल हो जिसमें मैं रहती हूँ, उदाहरण के तौर पर गर्मियों में मुझे छोटे कपड़े पहनने पर मजबूर करती है, और कहती है कि सूरज त्वचा के लिए उपयोगी है . . इन सब के बावजूद, मैं इन दबावों का विरोध करती हूँ, और यथा संभव शालीनता अपनाने का प्रयास करती हूँ, . . लेकिन मैं वास्तव में उस समय उदास और दुखी होती हूँ जब मैं अपनी माँ को देखती हूँ कि वह मुझसे गुस्सा करती है, लेकिन मैं भी अपने धर्म के सिद्धांतों को त्याग नहीं कर सकती, तो क्या आप कोई नसीहत करेंगेॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

इस अच्छे पत्र से हमें बहुत खुशी हुई, और हम अल्लाह की स्तुति करते हैं उसने आपको अपने धर्म के प्रति लालायित और उत्सुक होने,अपने पालनहार के आदेश का पालन करने, और उसके रास्तें में आपको जो कष्ट पहुँचती है उस पर धैर्य करने की तौफीक़ प्रदान की,अल्लाह तआला ने अपने बंदों को धैर्य,सब्र,और अपनी आज्ञाकारिता पर सुदृढ़ रहने का आदेश दिया है, चाहे उन्हें कितना ही कष्ट झेलना पड़े,अल्लाह तआला ने फरमाया :

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اصْبِرُوا وَصَابِرُوا وَرَابِطُوا وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ

سورة آل عمران : 200

“ऐ ईमान वालो, तुम सब्र करो, और एक दूसरे को थामे रखो और जिहाद के लिए तैयार रहो ताकि तुम कामयाबी को पहुँचो।” (सूरत आल इम्रान : 200)

तथा अल्लाह तआला ने फरमाया:

وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا وَإِنَّ اللَّهَ لَمَعَ الْمُحْسِنِينَ  

العنكبوت :69

“और जिन लोगों ने हमारे लिए संघर्ष किया हम अवश्य ही उन्हें अपना मार्ग दर्शायेंगे, और अल्लाह तआला तो सदाचारियों के साथ है।” (सूरतुल अंकबूत : 69).

तथा ऐ अल्लाह की बांदी, आप इस बात को जान लें कि अल्लाह तआला ने आपके ऊपर जिन इबादतों और कर्तव्यों को अनिवार्य किया है उनका पालन करने और हिजाब की प्रतिबद्धता के कारण आपको जो भी कष्ट और तंगी का सामन करना पड़ता है वह सब अल्लाह के रास्ते में है, और आपका उस कष्ट और इन कठिनाइयों को सहन करना सब्र और धैर्य का सर्वश्रेष्ठ प्रकार है जिसका अल्लाह तआला ने अपने बंदों को आदेश दिया है: अल्लाह की आज्ञाकारिता पर धैर्य करना, और बंदे को उसके धर्म के रास्ते में और उस पर प्रतिबद्धता के कारण जो कष्ट पहुँचता है उस पर सब्र करना, तथा अल्लाह तआला ने हमें सूचना दी है कि उसके पैगंबरों ने अपने समुदायों से यह घोषणा कर दिया कि वे अपने रब के उस रास्ते पर सुदृढ़ हैं जिसका उसने उन्हें मार्गदर्शन किया है, चाहे उन्हें अपने समुदाय की ओर से कितने भी कष्ट का सामना करना पड़े :

وَمَا لَنَا أَلا نَتَوَكَّلَ عَلَى اللَّهِ وَقَدْ هَدَانَا سُبُلَنَا وَلَنَصْبِرَنَّ عَلَى مَا آذَيْتُمُونَا وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُتَوَكِّلُونَ

إبراهيم : 12

“और हम अल्लाह पर भरोसा क्यों न करें जबकि उसी ने हमें हमारा रास्ता दिखाया, और जो कुछ कष्ट और दुख तुम हमें दोगे हम उस पर यक़ीनन सब्र ही करेंगे, तथा भरोसा करने वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।” (सूरत इब्राहीम : 12).

तथा हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आप ने फरमाया : “निःसंदेह तुम्हारे पीछे सब्र (धैर्य) के दिन हैं, जिनके अंदर सब्र करना अंगारे को पकड़ने के समान है, उनमें कार्य करने वाले के लिए उसी के समान कार्य करने वाले पचास आदमियों के समान अज्र व सवाब है, कहा गयाः ऐ अल्लाह के रसूल : उन्हीं में से पचास आदमियों का अज्र ॽ आप ने फरमाया : तुम में से पचास का अज्र ।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्याः 4343) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने उसे मज़बूत कहा है।

आप पिछले लोगों की स्थिति, उनके सर्व संसार के पालनहार की आज्ञाकारिता की लालायिता और उसके रास्ते में कठिनाइयों और भयावहता की सहनशक्ति के इस जीवित उदाहरण पर मननचिंतन करें :

खब्बाब बिन अल-अरत्त से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : हमने अल्लाह के पैगंबर से शिकायत की जबकि आप काबा के साये में अपनी एक चादर का तकिया लगाए हुए थे, हम ने आप से कहा: क्या आप हमारे लिए मदद नहीं मांगें गे ॽ क्या आप हमारे लिए दुआ नहीं करेंगे ॽ आप ने फरमाया : “तुम से पहले आदमी के लिए ज़मीन में गढ़ा खोदा जाता था, और उसे उसमें डाल दिया जाता था,और आरी लाकर उसके सिर पर रख दिया जाता था फिर उसके दो टुकड़े कर दिये जाते थे, और यह चीज़ उसे उसके दीन से नहीं रोकती थी, तथा लोहे की कंघी से उसके गोश्त के नीचे तक कंघी की जाती थी जिससे उसकी हड्डी और पट्ठे ज़ाहिर हो जाते थे। और यह उसे उसके धर्म से नहीं हटाती थी . . .” इसे बुखारी (हदीस संख्याः 3612) ने रिवायत किया है।

जहाँ तक आपकी माँ का मामला है : तो वह एक आश्चर्यजनक मामला है, बल्कि दुःख और शोक का मामला है ; बजाय इसके कि माँ अपने धर्म का पालन करती और अपनी बेटी के लिए आदर्श और शिक्षक होती उसका हाल यह है जो आप वर्णन कर रही हैं ; निःसंदेह हम अल्लाह ही के लिए हैं और उसी की ओर पलटने वाले हैं, हम अल्लाह से प्रश्न करते हैं कि वह अपने दीन के लिए उसके दिल का मार्ग दर्शन करे, और उसके सीने को खोल दे, और आपके लिए उसकी बुराई से काफी हो जाए।

तथा – ऐ अल्लाह की बांदी – आप इस बात से बचें कि आपकी माँ की स्थिति और उसका आपके लिए हठ, आप को अल्लाह के धर्म से रोक दे, या आपको उसके रास्ते से फेर दे, तथा आपके अपने पालनहार की आज्ञाकारिता के कारण उसके आपके ऊपर गुस्सा करने का कोई एतिबार नहीं है ;क्योंकि अल्लाह की आज्ञाकारिता हर एक की आज्ञाकारिता पर प्राथमिकता रखती है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अवज्ञा और पाप में कोई आज्ञा पालन नहीं है, बल्कि आज्ञापालन केवल भलाई में है।” इसे बुखारी (हदीस संख्याः 7257) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1840) ने रिवायत किया है।

तथा आप ल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: “अल्लाह सर्वशक्तिमान की अवज्ञा में किसी मनुष्य की आज्ञाकारिता जाइज़ नहीं।” इसे इमाम अहमद (हदीस संख्याः 1098) ने रिवायत किया है।

दूसरा :

यदि आप नमाज़ की अदायगी, या इसके अलावा अपने पालनहार के अन्य आदेशों का पालन या अल्लाह की हराम की हुई चीज़ों से बचने पर, अपनी माँ पर झूठ बोले बिना सक्षम नहीं हैं, तो इन-शा अल्लाह उसके उपर झूठ बोलने में आपके ऊपर कोई गुनाह नहीं है।

यद्यपि आपके लिए अपनी बात में तौरीयह का उपयोग करना सर्वश्रेष्ठ है, अर्थात् आप उसे ऐसी बात बतलाएं जिस से उसे राहत मिल जाए,और आप उसके नुक़सान से बच जाएं, और आपकी नीयत में शुद्ध अर्थ हो,जिसकी ओर उसका ध्यान न जाए ; उदाहरण के तौर पर जब वह आप से पूछे: क्या तू ने नमाज़ पढ़ी ॽ तो आप कहें : नहीं !! और आपके इरादा में यह हो कि : आप ने उदाहरण के तौर पर तरावीह की नमाज़, या क़ियामुल्लैल नहीं पढ़ी है, या आप ने नमाज़ नहीं पढ़ी है सिवाय फर्ज़ के या इसी तरह की अन्य चीज़ें।

रही बात हिजाब पहनने के तो आप उन्हें यह समझाने का प्रयास करें कि यह आपके पालनहार का आदेश है,और यह कि यह आपकी पसंद और चुनाव भी है,और जहाँ तक हो सके आप उसकी बुराई और उसके आप को कष्ट पहुँचाने से बचने की कोशिश करें, और अपने रब से मदद मांगे कि वह उसके दिल का मार्ग दर्शन करे और आप से उसकी बुराई को दूर रखे।

तीसरा :

मुसाफिर के लिए यात्रा की रूख्सतों से लाभान्वित होना जाइज़ है, उन्हीं रूख्सतों में से यह भी है कि : चार रकअत वाली नमाज़ें (ज़ुहर,अस्र,इशा) यात्री केवल दो रकअत पढ़ेगा, और यह चीज़ आपके लिए नमाज़ की अदायगी को आसान कर देगी जब आप अपनी माँ के संग होंगी,क्योंकि दो रकअतों का समय चार से कमतर होगा।

यात्रा की रूख्सतों में से दो नमाज़ों को एकत्र करके पढ़ना भी है : चुनाँचे ज़ुहर और अस्र की नमाज़ एक ही समय में पढ़ी जायेगी : दो रकअत ज़ुहर की नमाज़ पढ़ी जायेगी फिर दो रकअत अस्र की नमाज़ पढ़ी जायेगी, तथा उसके लिए जाइज़ है कि वह इस एकत्रता को पहले करे, अर्थात उन दोनों नमाज़ों को ज़ुहर के समय में और अस्र का नियमित समय शुरू होने से पहले पढ़े, और उन दोनों को विलंब करके पढ़े: जब ज़ुहर का समय प्रवेश करे तो नमाज़ न पढ़े और प्रती़क्षा करे यहाँ तक कि अस्र का समय आ जाए, फिर उन दोनों को एक साथ पढ़े।

इसी तरह इशा और मग्रिब को एक साथ पहले, या विलंब करके पढ़ें, लेकिन यह ध्यान रखें कि यात्रा में मग्रिब की नमाज़ क़स्र नहीं की जायेगी, तीन रकअतें उसी के तरीक़ा पर पढ़ी जायेंगी।

रही बात फज्र की तो दो रकअतें उसके समय पर फज्र के निकलने से सूर्य के उदय होने तक पढ़ी जायेंगी।

यह दो नमाज़ों को एकत्र करना आपके लिए लाभदायक है: आपके लिए संभव है कि ऐसा समय चुनें जिसमें आपकी माँ आप से गाफिल होती है, या किसी चीज़ में व्यस्त होती है,या आप उसे इस भ्रम में रखें कि आप बाथरूम में जा रही हैं, या इसी के समान, या जब आप आरामगाह में उतरें तो उससे दूर होकर नमाज़ पढ़ लें, या पहुँचने के बादयदि आप दूसरी नमाज़ का समय निकलने से पहले पहुँच जाती हैं।

तथा उत्तर संख्या : (82658), (105109) और (38079) देखें।

अंत में, हमारी आपको ऐ अल्लाह की बांदी, यह नसीहत और सलाह है कि आप अपने रब की जिस आज्ञाकारिता और उसकी खुशी की चीज़ों की लालायिता पर क़ाइम हैं उस पर सुदृढ़ रहें, और अपने पालनहार के ज़िक्र और उसकी किताब की तिलावत को लाज़िम पकड़ें ;ताकि आपका दिल संतुष्ट हो जाए, और आप हिदायत के अंदर बढ़ जायें, तथा आप अपने धर्म के प्रावधानों को सीखने और उनकी पाबंदी करने की भरपूर कोशिश करें, यहाँ तक कि अल्लाह तआला आपके लिए आसानी और वर्तमान स्थिति से निकलने का रास्ता पैदा कर दे।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर