सोमवार 22 जुमादा-2 1446 - 23 दिसंबर 2024
हिन्दी

रोज़े के सही होने की शर्तों में से यह नहीं है कि आप जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ें

221480

प्रकाशन की तिथि : 29-12-2015

दृश्य : 3155

प्रश्न

उस आदमी के रोज़े का क्या हुक्म है जो मस्जिद में जमाअत की नमाज़ छोड़ दे उन लोगों के निकट जो उसे अनिवार्य ठहराते हैं ; क्योंकि जो आदमी लोगों को नमाज़ पढ़ाता है वह सूरतुल फातिहा में स्पष्ट गलती करता है, और इस स्थिति में क्या इस आदमी पर यह अनिवार्य है कि वह अपनी माँ को अपने साथ घर में जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने पर मजबूर करे, या कि यदि उसने घर में अकेले ही नमाज़ पढ़ लिया तो उसके लिए जमाअत का अज्र व सवाब लिखा जायेगा यदि यह व्यक्ति मस्जिद छोड़ने पर अफसोस करता है और दुखी होता है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसाऔर गुणगान केवलअल्लाह के लिएयोग्य है।

रोज़े के सही होनेकी शर्तों मेंसे मस्जिद मेंजमाअत की नमाज़पढ़ने की पाबंदीकरना नहीं है,यहाँतक कि उन फुक़हा(धर्म शास्त्रियों)के निकट भी जिन्होंने जमाअत की नमाज़के अनिवार्य होनेकी बात कही है।उनमें से किसीने कभी यह बात नहींकही है कि इसकेबिना रोज़ा सहीनही होता है, या किअकेले नमाज़ पढ़नेसे रोज़े का अज्रव सवाब नष्ट होजाता है। अल्लाहसर्वशक्तिमानका न्याय और उसकीदानशीलता इस बातसे बहुत बड़ी हैकि रोज़ा जैसे एकमहान और महत्वपूर्णउपासना को एक दूसरीइबादत – जमाअत केनमाज़ में कोताहीकरने के कारण नष्टकर दे, जबकि अल्लाहसर्वशक्तिमानका कथन है:

إِنَّ اللَّهَ لَا يَظْلِمُ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ وَإِنْ تَكُ حَسَنَةً يُضَاعِفْهَاوَيُؤْتِ مِنْ لَدُنْهُ أَجْرًا عَظِيمًا [النساء :40]

‘‘निःसंदेह अल्लाहरत्ती भर भी ज़ुल्मनहीं करता और यदिकोई एक नेकी होतो वह उसे कई गुनाबढ़ा देगा और अपनीओर से बड़ा बदलादेगा।” (सूरतुन्निसा: 40)

तथा अल्लाह तआलाने फरमाया :

فَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ خَيْرًا يَرَهُ وَمَنْيَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ شَرًّا يَرَهُ [الزلزلة: 7-8]

‘‘जो व्यक्तिएक कण के बराबरअच्छाई करे गावह उसे देख लेगा,और जोआदमी एक कण के बराबरबुराई करे गा,वह उसेदेख लेगा।’’ (सूरतुज़जलज़ला : 7 – 8(.

तथा प्रश्न करनेवालेके लिए नसीहत यहहै कि वह अपने प्रश्नमें घृणित तकल्लुफऔर अतिश्योक्तिकी ओर लौटने वालेरूपों पर ध्यानदे :

उनमें सर्व प्रथमरोज़े के सही होनेको जमाअत की नमाज़के साथ जोड़नाऔर संबंधितकरना है, और इसकाहुक्म उल्लेख कियाजा चुका है।

दूसरा : माँको उसके बेटे केसाथ जमाअत की नमाज़पढ़ने पर मजबूरकरने के बारे मेंप्रश्न करना।जबकि मुसलमानजानता है कि मातापिता का अल्लाहके यहाँ क्या महानहक़ है, और बेटे परउन दोनों के प्रतिनर्मी अपनाना,मीठीबोल बोलना, शिष्टव्यवहार करना अनिवार्यहै। तो इसके साथमजबूर करना औरज़बरदस्ती करनाकैसे एकत्र होसकता है, और क्याकिसी को इबादतपर मजबूर कियाजा सकता है !! या किमजबूरी के साथकोई इबादत सहीहो सकती है !! तो फिरउस समय क्या हुक्महोगा जब ज़ोर-ज़बरदस्तीमाँ पर हो जिसकेलिए सम्मान, नेकीऔर उपकार का सबसेबड़ा हिस्सा है !!

यह सब चीज़ें हमसेइस बात का आहवानकरती हैं कि हमआपको मस्जिद मेंजमाअत की नमाज़छोड़ने के कारणके बारे में एकबार फिर विचारकरने की नसीहतकरें।शायदकि इस मामले मेंविस्तार है औरआपको पता नहींहै, शायद शैतानआपको जमाअत छोड़नेमें अतिशयोक्तिकरने पर उकसाताहै आपके दिल मेंस्पष्ट त्रुटिकी कल्पना पैदाकरके जो फातिहाऔर इमाम की नमाज़को बातिल कर देतीहै। और आप इसे असंभवन समझें, क्योंकिशैतान मनुष्य केलिए हर रास्तेपर बैठता है ताकिउसे अल्लाह केरास्ते से रोकसके, और ताकि उसेउसके दीन और दुनियाके मामलें मेंतकल्लुफ और सख्तीपर उभारे। इसलिएआप उसके वस्वसों(भ्रम) का आसान शिकारबनने से बचें,और ज्ञान,संतुलतिव्यवहार और स्थिरताअपनाकर मज़बूत होजाएं। बहरहाल,जिसनेजमाअत के कारणोंको अपनाया और उसकालालायित बना तथाउसके लिए प्रयासकिया, और उसे उससेकिसी सर्व सहमतिसे प्रमाणित शरईउज़्र, जैसे कि बीमारीइत्यादि के अलावाकिसी चीज़ ने नहींरोका, तो हमें आशाहै कि अल्लाह सर्वशक्तिमानउसे अपनी दानशीलतासे जमाअत की नमाज़का पूरा सवाब देगा।जैसाकि नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने अपने इस कथनके द्वारा हमेंइस बात की सूचनादी है कि : ”जब बंदाबीमार हो जाए यासफर में हो तो उसकेलिए उसी के समान(अमल) लिखा जाताहै जो वह निवासीहोने और स्वस्थ्यहोने की अवस्थामें किया करताथा।’’ इसे बुखारी(हदीस संख्या :2996) ने रिवायत कियाहै।

अल्लामा सअदीरहिमहुल्लाह नेफरमाया:

‘‘अमलकरने वाले के दिलमें स्थापित विश्वासऔर इख्लास (निःस्वार्थतात)के एतिबार से कार्योंका पुण्य (सवाब)एक दूसरे से बेहतरऔर बड़ा होता है, यहाँ तककि सच्ची नीयतवाला – विशेषकरयदि उसके साथ कार्यभी शामिल हो जिसपरवह सक्षम है – अमलकरने वाले से जामिलता है, अल्लाहतआला ने फरमाया:

وَمَن يَخْرُجْ مِن بَيْتِهِ مُهَاجِرًا إِلَى اللهِ وَرَسُولِهِ ثُمَّ يُدْرِكْهُ الْمَوْتُ فَقَدْ وَقَعَ أَجْرُهُ عَلى اللهِ [النساء:100]

‘‘और जो व्यक्तिअपने घर से अल्लाहऔर उसके रसूल कीओर निकले फिर उसकीमृत्यु हो जाए,तो उसका प्रतिदानअल्लाह के ज़िम्मेहो गया।”(सूरतुन्निसाः100)

तथा सहीह बुखारीमें मरफूअन रिवायतहै : ‘‘जब बंदा बीमारहो जाए या सफर मेंहो तो उसके लिएउसी के समान (अमल)लिखा जाता है जोवह निवासी होनेऔर स्वस्थ्य होनेकी अवस्था मेंकिया करता था।’’

तथा फरमायाः ”मदीनामें कुछ ऐसे लोगहैं कि तुम ने जोभी रास्ता चलाहै, और जो भी घाटीतय की है, वे तुम्हारेसाथ थे – अर्थात:अपनी नीयतों,दिलोंऔर सवाब में – उन्हेंउज़्र ने रोक लियाहै।’’ तथा जब बंदाभलाई का इरादाकरे फिर उसके लिएअमल करना मुक़द्दरन हो, तो उसका इच्छाऔर इरादा करनाएक मुकम्मल नेकीलिखा जाता है।’’

‘‘बहजतोक़ुलूबिल अबरारव क़ुर्रतो उयूनिलअख्यार’’ (पृष्ठ16)

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर