हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हज्ज के अर्कान (स्तंभ) चार और उसके वाजिबात सात हैं, और अर्कान और वाजिबात के अलावा जो चीज़ें हैं वे सुन्नत हैं, और उनका वर्णन इस प्रकार है :
बहूती रहिमहुल्लाह ने ‘‘अर-रौज़ुल मुर्बे’’ (1/285) में फरमाया :
''हज्ज के अर्कान चार हैं : एहराम जो कि हज्ज की इबादत में दाखिल होने की नीयत करना है, इसका प्रमाण यह हदीस है : ‘‘कार्यों का आधार नीयतों पर है।’’
अरफा में ठहरना, इस हदीस के आधार पर कि : ‘‘हज्ज अरफा में ठहरने का नाम है।’’
तवाफे ज़ियारत (उसे तवाफे इफाज़ा भी कहा जाता है) क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है:
وليطوفوا بالبيت العتيق.[الحج :29]
''और उन्हें चाहिए कि वे पुराने घर (काबा) का तवाफ करें।'' (सूरतुल हज्जः 29).
सई करना, क्योंकि हदीस में है कि : ‘‘सई करो, क्योंकि अल्लाह ने तुम्हारे ऊपर सई को लिख दिया है।’’ इसे अहमद ने रिवायत किया है।
और उसके वाजिबात सात हैं :
उसके लिए मोतबर मीक़ात से एहराम बाँधना, अर्थात् एहराम मीक़ात से बांधा जायेगा, जहाँ तक स्वयं एहराम (हज्ज की इबादत में दाखिल होने की नीयत) की बात है तो वह रूक्न (स्तंभ) है।
अरफा में सूरज डूबने तक ठहरना जो व्यक्ति वहाँ दिन के समय ठहरा है।
पानी पिलाने वालों और चरवाहों के अलावा लोगों का मिना में तश्रीक़ के दिनों में रात गुज़ारना।
पानी पिलाने वालों और चरवाहों के अलावा लोगों का मुज़दलिफा में आधी रात के बाद तक रात गुज़ारना जो उसे इससे पहले पाया है। (कुछ विद्वान मुज़दलिफा में रात बिताने को हज्ज के अर्कान में से क़रार देते हैं जिसके बिना वह सही नहीं हो सकता। इमाम इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह का ‘‘ज़ादुल मआद’’ (2/233) में इसी कथन की ओर रूझान है।)
तर्तीब (क्रम) से कंकरी मारना।
सिर के बाल मुँडाना या छोटे करवाना।
विदाई तवाफ करना।
[अगर हाजी तमत्तुअ हज्ज करने वाला है या क़िरान हज्ज करनेवाला है तो उसके ऊपर एक हदी (बकरी की क़ुर्बानी करना) अनिवार्य है, क्योंकि अल्लाह तआला का कथन है :
فَمَنْ تَمَتَّعَ بِالْعُمْرَةِ إِلَى الْحَجِّ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ فِي الْحَجِّ وَسَبْعَةٍ إِذَا رَجَعْتُمْ تِلْكَ عَشَرَةٌ كَامِلَةٌ ذَلِكَ لِمَنْ لَمْ يَكُنْ أَهْلُهُ حَاضِرِي الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ [البقرة : 196].
''जिसने हज्ज तक उम्रा का लाभ उठाया तो जो हदी (क़ुर्बानी का जानवर) उपलब्ध हो उसकी क़ुर्बानी करे। फिर जो व्यक्ति (क़ुर्बानी का जानवर) न पाए तो वह तीन रोज़े हज्ज के दिनों में रखे और सात रोज़े उस समय जब तुम घर लौट आओ। ये पूरे दस (रोज़े) हैं। यह हुक्म उस व्यक्ति के लिए है जिसके घर वाले मस्जिदे हराम के पास न रहते हों।'' (सूरतुल बक़रा : 196). ]
इनके अलावा हज्ज के शेष कार्य और कथन सुन्नत हैं, जैसे - तवाफ क़ुदूम, अरफा की रात मिना में रात बिताना, इज़्तिबाअ और रमल करना उनकी जगहों पर, हज्रे अस्वद को चुंबन करना, अज़कार और दुआयें, सफा व मरवा पर चढना।
उम्रा के अर्कान तीन हैं : एहराम, तवाफ, और सई।
और उसके वाजिबात : सिर के बाल मुँडाना या छोटे करवाना, मीक़ात से एहराम बाँधना हैं।’’ अंत हुआ।
रूक्न, वाजिब और सुन्नत के बीच अंतर: यह है कि रूक्न के बिना हज्ज सही नहीं होता है, और वाजिब के छोड़ने के साथ हज्ज सही हो जाता है, परंतु उसके छोड़नेवाले पर जमहूर के निकट एक दम (बकरी की क़ुर्बानी) अनिवार्य है। रही बात सुन्नत की तो उसके छोड़नेवाले पर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है।
इन अर्कान, वाजिबात और सुनन के प्रमाणों, और उनसे संबंधित अहकाम को जानने के लिए देखिए : ‘‘अश-शर्हुल मुम्ते’’ (7/380-410).