हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जमहूर विद्वानों के निकट तहारत (पवित्रता, वुज़ू) तवाफ के सही होने के लिए शर्त है।तथा इस बारे में उन्हों ने मतभेद किया है कि यदि वह तवाफ के अंदर अपवित्र हो गया फिर उसने वुज़ू किया, तो क्या वह (बाक़ी बचे हुए) चक्करों को पूरा करेगा या नये सिरे से तवाफ करेगा? इस बारे में दो कथन हैं :
हनफिय्या और शाफेइय्या इस बात की ओर गए हैं कि वह अपने तवाफ के ऊपर निर्माण करेगा, अगरचे उन दोनों के बीच अंतराल लंबा हो जाए ; क्योंकि चक्करों के बीच निरंतरता तवाफ के अंदर शर्त नहीं है।
तथा मालिकिय्या और हनाबिला इस बात की ओर गए हैं कि वह शुरू से फिर से तवाफ करेगा ; क्योंकि अपवित्रता तवाफ को बातिल (अमान्य) कर देती है, और उसके लिए नये सिरे से तवाफ करना अनिवार्य है।तथा यही हुक्म उस रूप में भी है यदि चक्करों के बीच अंतराल लंबा हो जाए, क्योंकि तवाफ के चक्करों के बीच निरंतरता तवाफ के सही होने के लिए शर्त है।
देखिए : अल-मौसूअतुल फिक्हियया’’ (29/131).
तथा शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
‘‘यदि मनुष्य तवाफ में अपवित्र हो जाए तो नमाज़ के समान उसका तवाफ कट जायेगा, वह जाकर वुज़ू करेगा फिर नये सिरे से तवाफ शुरू करेगा, यही सही बात है। जबकि इस मसअले के अंदर मतभेद है, लेकिन तवाफ और नमाज़ दोनों में यही सही है ; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है : ‘‘यदि तुम में से कोई व्यक्ति हवा पास कर दे तो वह (नमाज़) से पलट जाए, और वुज़ू करे, और नमाज़ को दोहराए।’’ इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है, और इब्ने खुज़ैमा ने इसे सहीह कहा है, और सामान्य रूप से तवाफ नमाज़ के जिन्स से है।''
‘‘मजमूओ फतावा शैख इब्ने बाज़’’ (10/160) से समाप्त हुआ।
तथा शैख मुहम्मद बिन उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
‘‘तवाफ और सई में मवालात (अर्थात निरंतरता) शर्त है, और वह चक्करों का एक दूसरे के पीछे और लगातार होना है। यदि उन दोनों के बीच लंबा अंतराल हो जाए तो पहले के चक्कर बातिल (अमान्य) हो जायेंगे, और उसके ऊपर नये सिरे से तवाफ करना अनिवार्य है, लेकिन यदि अंतराल लंबा नहीं है, वह दो या तीन मिनट के लिए बैठ गया फिर उठकर पूरा किया तो कोई हानि (आपत्ति) की बात नहीं है।’’
‘‘मजमूओ फतावा शैख इब्ने उसैमीऩ’’ (22/293) से समाप्त हुआ।
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया:
एक आदमी ने तवाफे इफाज़ा किया, और तवाफ के दौरान उसका वुज़ू टूट गया फिर उसने जाकर वुज़ू किया और वापसस आकर तवाफ पूरा किया, नये सिरे से तवाफ शुरू नहीं किया यह समझते हुए कि उसका यह काम सही है, तो अब उस पर क्या अनिवार्य है?
तो उन्हों ने उत्तर दिया : ‘‘वह तवाफ जिसमें उसका वुज़ू टूट गया फिर उसने जाकर वुज़ू किया, यदि हम यह कहें कि : तवाफ के लिए तहारत (पवित्रता) शर्त है तो उसका वह तवाफ जिसमें उसका वुज़ू टूट गया है बातिल (अमान्य) हो गया, और उसके अंतिम चक्करों को उसके पहले के चक्करों (के आधार) पर पूरा करना सही नहीं है। इस आधार पर, वह अभी तवाफ इफाज़ा करनेवाला नहीं समझा जायेगा।
लेकिन यदि हम यह कहें कि : तवाफ के लिए वुज़ू शर्त नहीं है, तो हम देखेंगे कि: क्या उसके पानी तलाश करने और वुज़ू करने में एक लंबा समय लगा है? तो ऐसी स्थिति में भी उसका तवाफ सही नहीं है ; क्योंकि तवाफ के लिए मवालात (निरंतरता) शर्त है। लेकिन अगर उसने निकट ही पानी पा लिया फिर वुज़ू करके जल्दी से वापस आ गया तो उसका तवाफ सही है।’’
‘‘मजमूओ फतावा व रसाइल अल-उसैमीऩ’’ (22/357) से समाप्त हुआ।
आम तौर से हज्ज के मौसम में जबकि भीड़ भाड़ होती है शौचालयों में जाना, फिर वुज़ू करना : एक लंबा समय लेता है जिससे चक्करों के बीच मवालात (निरंतरता) समाप्त हो जाता है, इसलिए जो चक्कर पहले बीत चुके हैं उनके आधार पर तवाफ मुकम्मल करना सही नहीं है।
इस आधार पर:
यदि आप ने अभी तक तवाफ इफाज़ा को दोबारा नहीं किया है, तो अभी तक आपका हज्ज अपूर्ण है, और आपके लिए अनिवार्य है कि तवाफ इफाज़ा करने के लिए मक्का वापस जाएं ; क्योंकि तवाफ इफाज़ा एक रूक्न (हज्ज का स्तंभ) है जिसे अदा करना ज़रूरी है, सिवाय इसके कि आप ने ऐसा किसी धार्मिक विद्वान के फत्वा के आधार पर किया है, या उनमें से किसी ऐसे विद्वान की तक़लीद करते हुए किया है जो इस तरह का विचार रखता है, तो इन हालतों में आपके ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है।
अधिक लाभ के लिए फत्वा संख्या : (49012 ) देखें।