रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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रमज़ान में क़ुरआन ख़त्म करना

प्रश्न

क्या रमज़ान में जिबरील अलैहिस्सलाम के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ क़ुरआन को दोहराने से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि (रमज़ान में) क़ुरआन खत्म करना श्रेष्ठ हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

इससे यह समझ में आता है कि हमें कुरआन को दोहराना चाहिए, और यह कि ईमानवाले के लिए वांछनीय है कि वह क़ुरआन को किसी ऐसे व्यक्ति के साथ दोहराए जो उसे लाभ और फ़ायदा पहुँचाए। क्योंकि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसे जिबरील अलैहस्सलाम के साथ लाभ प्राप्त करने के लिए दोहराया था। क्योंकि जिबरील अलैहिस्सलाम ही उसे अल्लाह तआला के पास से लेकर आते थे, और वह अल्लाह और रसूलों के बीच दूत थे। इसलिए जिबरील अलैहिस्सलाम अवश्य रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर से कुछ चीज़ों से लाभान्वित करते थे, क़ुरआन के अक्षरों को शुद्ध रूप से पढ़ने के संदर्भ में और उसके अर्थों के संदर्भ में कि अल्लाह के निकट उनका क्या मतलब है।

इसलिए यदि कोई व्यक्ति क़ुरआन को किसी ऐसे व्यक्ति के साथ दोहराता है जो उसे क़ुरआन को समझने मदद करता है और जो उसे उसके शब्दों को शुद्ध रूप से पढ़ने में मदद करता है, तो यह अपेक्षित है, जैसा कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जिबरील अलैहिस्सलाम के साथ क़ुरआन को दोहराया। इसका मतलब यह नहीं है कि जिबरील अलैहिस्सलाम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बेहतर हैं। बल्कि जिबरील अलैहिस्सलाम वह संदेशवाहक (स्वर्गदूत) थे जो अल्लाह के पास से आते थे और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को वह सब बताते थे जिसका अल्लाह ने उन्हें क़ुरआन के संदर्भ में आदेश दिया होता था ; उसके शब्दों और उसके अर्थों के संबंध में। अतः रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जिबरील अलैहिस्सलाम से इस पहलू से लाभान्वित होते थे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जिबरील अलैहिस्सलाम आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से श्रेष्ठ हैं। बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मनुष्यों में सबसे श्रेष्ठ हैं और फ़रिश्तों से बेहतर हैं। लेकिन क़ुरआन को दोहराने में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और उम्मत के लिए बहुत अच्छाई है, क्योंकि यह उस चीज़ को दोहराना था जो वह अल्लाह की ओर से लाते थे, और ताकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उससे लाभ उठा सकें जो वह (जिबरील) अल्लाह की ओर से लाते थे।

इससे एक और महत्वपूर्ण बात का पता चलता है, जो यह है कि क़ुरआन को रात में दोहराना दिन की तुलना में बेहतर है; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जिबरील के साथ क़ुरआन रात में दोहराते थे, और यह बात सर्वज्ञात है कि रात में दिल अधिक केंद्रित और उपस्थित होता है और दिन में दोहराने की तुलना में अधिक लाभ उठाया जा सकता है।

इससे एक महत्वपूर्ण बात यह भी निष्कर्षित होती है कि : कुरआन को दोहराना धर्मसंगत है और यह एक नेक काम है, यहाँ तक कि रमज़ान के अलावा अन्य दिनों में भी; क्योंकि इसमें दोनों पक्षों के लिए लाभ है। यदि वे दो से अधिक लोग हैं, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है कि उनमें से हर एक अपने भाई से लाभ उठाए, उसे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे और उसे उत्साहित और सक्रिय करे। क्योंकि हो सकता है कि यदि वह अकेले बैठता हो तो पढ़ने के लिए सक्रिय न होता हो। लेकिन यदि उसके साथ अध्ययन करने के लिए उसका कोई सहपाठी हो या अन्य साथी हों, तो यह उसे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने में अधिक प्रभावी और उसकी सक्रियता को बढाने का अधिक पात्र होगा। जबकि उन्हें आपस में अध्ययन करने और उन चीजों पर चर्चा करने से बहुत बड़ा लाभ होगा जो उन्हें समझ में नहीं आती हैं। इन सब में बहुत अच्छाई है।

इससे यह भी समझा जा सकता है कि इमाम का रमज़ान में जमाअत को पूरा क़ुरआन सुनाना एक तरह से क़ुरआन को दोहराना ही है; क्योंकि इस तरह उन्हें पूरा क़ुरआन सुनने का फ़ायदा होता है। इसीलिए इमाम अहमद रहिमहुल्लाह  (तरावीह की) नमाज़ में उनकी इमामत करने वाले व्यक्ति से इस बात को पसंद करते थे कि वह उनके साथ क़ुरआन को ख़त्म करे (अर्थात् तरावीह की नमाज़ में पूरा क़ुरआन सुनाए)। यह सलफ (पुनीत पूर्वजों) के कृत्य के समान है जो पूरा क़ुरआन सुनना पसंद करते थे। लेकिन इसके लिए इस बात की ज़रूरत नहीं है क़ुरआन पढ़ने में जल्दबाजी कि जाए और उसे ठहर-ठहर कर न पढ़ा जाए, तथा विनम्रता और इतमिनान का ध्यान न रखा जाए, बल्कि इन चीज़ों का ध्यान रखना क़ुरआन ख़त्म करने पर ध्यान देने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

स्रोत: “मजमूओ फ़तावा व मक़ालात मुतनौविअह” लि-समाहतिश-शैख इब्न बाज़ रहिमहुल्लाह (15/324)