हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
विभिन्न मानदंडों के आधार पर तलाक़ के कई प्रकार हैं, जो इस प्रकार हैं :
पहला :
तलाक़ के प्रकार उसके हुक्म के एतिबार से।
धर्मशास्त्रियों ने तलाक़ को उसके शरई हुक्म के एतिबार से निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया है :
1. शरीयत के अनुसार जायज़ तलाक़ : इसे “सुन्नी तलाक़” कहा जाता है। यह महिला को एक तलाक़ देना है, जबकि वह गर्भवती हो, या ऐसी पवित्रता की अवधि के दौरान जिसमें उसने उसके साथ संभोग नहीं किया है।
2. निषिद्ध तलाक़ जो इस्लामी शरीयत के विरुद्ध है : इसे “बिदई तलाक़” (स्वःरचित तलाक़) कहा जाता है। यह दो प्रकार का होता है :
(क) अपने समय के एतिबार से बिदई तलाक़, जैसे कि किसी ऐसी महिला को तलाक़ देना जिसका गर्भवती होना स्पष्ट न हो, और उसके लिए मासिक धर्म के आधार पर इद्दत का पालन करना हो, जबकि वह मासिक धर्म की स्थिति में हो, या पवित्रता की अवस्था में हो जिसके दौरान उसने उसके साथ संभोग किया हो। लेकिन अगर उसका गर्भवती होना स्पष्ट हो गया है : तो उसे तलाक़ देना जायज़ है, भले ही उसने पवित्रता की अवधि के दौरान उसके साथ संभोग किया हो। इसी तरह, अगर वह इद्दत का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है, जैसे कि वह महिला जिसके पास उसके पति ने प्रवेश नहीं किया है। तो अगर वह उसे मासिक धर्म के दौरान तलाक दे देता है : तो यह तलाक सुन्नत के अनुसार है। या अगर वह उन लोगों में से एक है जिन्हें मासिक धर्म नहीं आता है, जैसे कि एक युवा लड़की या एक बूढ़ी औरत : तो उसे तलाक़ देने में उसपर कोई हर्ज नहीं है।
(ख) अपनी संख्या के एतिबार से बिदई तलाक़ : जैसे कि वह उसे एक से अधिक तलाक देता है और कहता है : "तुम्हें दो तलाक़ है”, या "तुम्हें तीन तलाक़ है। क्योंकि सुन्नत का तरीक़ा यह है कि वह उसे एक तलाक़ दे।
बिदई तलाक़ के मान्य होने के बारे में विद्वानों ने मतभेद किया है। हमारा पसंदीदा दृष्टिकोण यह है वह तलाक़ नहीं होता है, और यह कि तीन तलाक़ एक ही पड़ता है।
दूसरा :
प्रयुक्त शब्दों के एतिबार से तलाक़ के प्रकार
धर्मशास्त्रियों ने तलाक़ को उसमें प्रयुक्त शब्दों के एतिबार से स्पष्ट और सांकेतिक में विभाजित किया है।
स्पष्ट तलाक़ : जिससे केवल तलाक़ ही समझा जाता है (उसके अलावा और कुछ नहीं समझा जा सकता), जैसे कि आदमी का अपनी पत्नी से कहना : तुम तलाक़शुदा हो, या तुम्हारा तलाक़ हो गया, या मैंने तुम्हें तलाक़ दे दिया। यह तलाक़ हो जाता है, चाहे पति उसे तलाक देने का इरादा रखता हो या नहीं।
सांकेतिक तलाक़ : वह है जिससे तलाक़ या उसके अलावा कुछ और मुराद होने की संभावना होती है। जैसे कि एक पुरुष का अपनी पत्नी से यह कहना : “तुम खाली या बरी (स्वतंत्र) हो” या "तुम्हारा मामला तुम्हारे हाथ में है”, या “तुम्हारी रस्सी तुम्हारे कंधे पर है” या "तुम अपने परिवार से जा मिलो”, या “मुझे तुम्हारी कोई आवश्यकता नहीं है”, और इसी तरह।
इस प्रकार के तलाक़ में नीयत का एतिबार किया जाता है। अगर पति ने तलाक़ का इरादा किया है, तो तलाक़ हो जाएगा, नहीं तो नहीं।
तीसरा :
तलाक़ के प्रकार उसपर निष्कर्षित प्रभावों के एतिबार से
तलाक़ के उसपर निष्कर्षित होने वाले प्रभावों के एतिबार से दो प्रकार हैं :
1. तलाक़ रजई : और यह उस समय होता है जब पति अपनी पत्नी को, बिना किसी मुआवजे के, पहली तलाक़ या दूसरी तलाक़ देता है; उसके लिए उसकी इद्दत समाप्त होने से पहले उसे वापस लौटाना जायज़ है।
2. तलाक़ बाइन : इसके दो प्रकार हैं :
(क) बैनूनह कुबरा : यह उस समय होता है जब कोई पुरुष अपनी पत्नी को तीसरी तलाक़ दे देता है। इस स्थिति में, वह (महिला) उसके लिए वैध नहीं है जब तक कि वह उसके अलावा किसी अन्य पति से वैध निकाह में शादी न कर ले, फिर वह पति उससे अलग न हो जाए।
(ख) बैनूनह सुग़रह : यह है कि कोई पुरुष अपनी पत्नी को पहली या दूसरी तलाक़ दे, फिर उसकी इद्दत समाप्त हो जाए; या वह मुआवजे के बदले में अपनी पत्नी को तलाक़ दे, जिसे खुल' कहा जाता है; या वह उसके पास प्रवेश करने से पहले उसे तलाक़ दे दे। इस स्थिति में उसके लिए अपनी पत्नी को लौटाना जायज़ है, लेकिन यह एक नए विवाह अनुबंध और एक नए महर के साथ होना चाहिए।
प्रश्न संख्या : (258878 ) का उत्तर देखें।
चौथा :
पूर्ण या लंबित होने के एतिबार से तलाक़ के प्रकार।
यह दो प्रकार का होता है :
1- पूर्ण या निश्चित तलाक़, जैसे कि वह अपनी पत्नी से कहता है : "तुम तलाकशुदा हो" या तलाक के इरादे से अन्य सांकेतिक शब्द कहे, जबकि तलाक़ को किसी शर्त पर लंबित न करे।
2. किसी शर्त पर लंबित तलाक़, जो तीन प्रकार का होता है:
(क) वह एक शुद्ध शर्त पर लंबित हो, तो इससे हर स्थिति में तलाक़ हो जाएगा। जैसे कि वह कहे : "जब सूर्य अस्त हो जाए, तो तुम तलाकशुदा हो।" तो ऐसी स्थिति में, सूर्य अस्त होने पर उसे तलाक़ हो जाएगा; क्योंकि उसने उसे एक शुद्ध शर्त पर लंबित किया है।
(ख) वह शुद्ध शपथ हो, तो इस मामले में उससे तलाक़ नहीं होगा। लेकिन इसमें शपथ तोड़ने का प्रायश्चित अनिवार्य है। जैसे कि वह कहता है : "यदि मैंने ज़ैद से बात की, तो मेरी पत्नी तलाक़शुदा है। इससे उसका इरादा खुद को ज़ैद से बात करने से रोकना है। इसलिए यह एक शुद्ध (स्पष्ट) शपथ है, क्योंकि उसके ज़ैद से बात करने और उसके अपनी पत्नी को तलाक़ देने के बीच कोई संबंध नहीं है।
(ग) उसमें एक शुद्ध शर्त और एक शुद्ध शपथ दोनों की संभावना हो। ऐसी स्थिति में, उस व्यक्ति के इरादे को देखा जाएगा, जिसने इसे लंबित किया है, जैसे कि वह अपनी पत्नी से कहे : "यदि तू घर से बाहर निकली, तो तुझे तलाक़ है।" इसमें इस बात की संभावना है कि उसने शर्त का इरादा किया है, जिसका अर्थ यह है कि अगर उसकी पत्नी बाहर जाती है, तो वह उससे प्रसन्न होगा, और उस पर उसका तलाक पड़ जाएगा। इस मामले में वह तलाक़ का इच्छुक समझा जाएगा।
या यह हो सकता है कि उसका इरादा तलाक़ देने का नहीं था; बल्कि वह अपनी पत्नी में रुचि रखता है, भले ही वह बाहर जाए, और वह उसे तलाक़ नहीं देना चाहता, लेकिन ऐसा करके उसका इरादा उसे बाहर जाने से रोकने का था, इसलिए उसने धमकी के तौर पर उसे तलाक़ पर लंबित कर दिया। यदि वह इस स्थिति में बाहर जाती है, तो उसे तलाक़ नहीं पड़ेगा, क्योंकि इससे अभिप्राय शपथ है।
तथा देखें : “अश-शर्ह अल-मुम्ते'” (13/126)।
यह सलाह दी जाती है कि डॉ. अवज़ अश-शहरी की “तलाक़” नामक पुस्तक को भी पढ़ें, जो एम. ए. की एक थीसिस है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।