हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
मुसलमान महिला पर अनिवार्य है कि यदि वह बच्चा जनने या दूध पिलाने के कारण रमज़ान के कुछ दिनों के रोज़े तोड़ दे, तो अपने उज़्र के समाप्त होने के पश्चात उनकी क़ज़ा करे, उस बीमार व्यक्ति के समान जिसके बारे में अल्लाह तआला ने फरमाया है :
فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ [البقرة : 185]
''तुम में से जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो वह दूसरे दिनों में (तोड़े हुए रोज़ों की) गिंती पूरी करे।'' (सूरतुल बक़रा : 184)
तथा उसके लिए जायज़ है कि वह क़ज़ा के इन रोज़ों को अलग-अलग दिनों में रखे। तो इस तरह यह उसके लिए आसान हो जाएगा। (देखिए : इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किताब ''सबऊना मसअलतन फिस्सियाम'' (रोज़े से संबंधित सत्तर मसायल)
तथा वह इन दिनों की क़ज़ा अगले रमज़ान के आने से पहले-पहले करेगी। अगर उसका उज़्र निरंतर बना रहा तो वह कज़ा को सामर्थ्य होने तक विलंब कर देगी। और वह खाना खिलाने के विकल्प का सहारा नहीं लेगी सिवाय इस स्थिति में कि वह रोज़ा रखने में पूरी तरह असमर्थ हो।