शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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उसने क़सम खाई कि वह किराया चुकाएगा, फिर उसके साथी ने चुका दिया

प्रश्न

मैं अपने एक पड़ोसी के साथ टैक्सी में सवार हुआ। मैंने क़सम खाकर उससे कहा कि मैं किराया चुकाऊँगा, लेकिन दुर्भाग्य से वह भुगतान करने पर अडिग रहा और उसने भुगतान कर दिया। अब मुझे क्या करना चाहिएॽ क्या मैं क़सम तोड़ने का प्रायश्चित करूँ, या मैं अपने पड़ोसी के पास जाऊँ और उसे किराए की क़ीमत दूँ, और इस प्रकार क्या मुझे प्रायश्चित नहीं करना पड़ेगा?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

जो व्यक्ति भविष्य में किसी काम को करने की क़सम खाकर कहे कि मैं उसे करूँगा, फिर वह उसे न करे; तो उसपर क़सम का कफ़्फ़ारा अनिवार्य है।

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “जो व्यक्ति किसी चीज़ को करने की क़सम खाए, फिर वह उसे न करे, या किसी चीज़ को न करने की क़सम खाए, फिर उसे कर ले, तो उसपर कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) अनिवार्य है। इसके बारे में विद्वानों (फ़ुक़हा-उल-अमसार) के बीच कोई मतभेद नहीं है। इब्ने अब्दुल-बर्र ने कहा : वह क़सम जिसमें मुसलमानों की सर्वसहमति के अनुसार कफ़्फ़ारा अनिवार्य है, वह है जो भविष्य के कार्यों से संबंधित होता है।” “अल-मुग़नी” (13/445) से उद्धरण समाप्त हुआ।

'इफ्ता की स्थायी समिति' के विद्वानों से पूछा गया :

“मेरे पास रात के समय एक मेहमान आया, और मैंने यह क़सम खा ली कि मैं उसके लिए एक जानवर ज़बह करूँगा, और उसने यह क़सम खा ली कि मैं उसके लिए जानवर ज़बह नहीं करूँगा। और उसने मुझसे कहा : मैं तीन बार अल्लाह की क़सम खाता हूँ कि तुम इस जानवर को ज़बह नहीं करोगे। मैं पीछे हट गया, और मैं उसकी क़सम तोड़ने से डर गया। इसलिए कृपया मुझे सलाह दें कि मुझे क्या करना चाहिएॽ

तो उन्होंने जवाब दिया : “अगर मामला ऐसा ही है, जैसा कि उल्लेख किया गया है, तो आपको क़सम का कफ्फारा देना होगा, और वह : एक मोमिन दास को मुक्त करना, या दस गरीबों को खाना खिलाना, या उन्हें कपड़े पहनाना है। यदि तुम ऐसा न कर सको, तो तुम तीन दिन रोज़े रखोगे। अल्लाह तआला का फरमान है :

لَا يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَكِنْ يُؤَاخِذُكُمْ بِمَا عَقَّدْتُمُ الْأَيْمَانَ فَكَفَّارَتُهُ إِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسَاكِينَ مِنْ أَوْسَطِ مَا تُطْعِمُونَ أَهْلِيكُمْ أَوْ كِسْوَتُهُمْ أَوْ تَحْرِيرُ رَقَبَةٍ فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ ذَلِكَ كَفَّارَةُ أَيْمَانِكُمْ إِذَا حَلَفْتُمْ 

المائدة: 89

“अल्लाह तुम्हें तुम्हारी व्यर्थ क़समों पर नहीं पकड़ता, परंतु तुम्हें उसपर पकड़ता है जो तुमने पक्के इरादे से क़समें खाई हैं। तो उसका प्रायश्चित दस निर्धनों को भोजन कराना है, औसत दर्जे का, जो तुम अपने घर वालों को खिलाते हो, अथवा उन्हें कपड़े पहनाना, अथवा एक दास मुक्त करना। फिर जो न पाए, तो तीन दिन के रोज़े रखना है। यह तुम्हारी क़समों का प्रायश्चित है, जब तुम क़सम खा लो।” (सूरतुल मायदा : 89)

और अल्लाह ही सामर्थ्य प्रदान करने वाला है। तथा अल्लाह हमारे नबी मुहम्मद और उनके परिवार और साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।

अल-लजनह अद-दाईमह लिल-बुहूस अल-इल्मिय्यह वल-इफ़्ता

शैख अब्दुल्लाह बिन ग़ुदैयान... शैख अब्दुर-रज़्ज़ाक़ अफीफी... शैख अब्दुल-अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़।

“फ़तावा अल-लजनह अद-दाईमह” (23/73) से उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख़ इब्ने उसैमीन से पूछा गया :

जब मैं दोस्तों के एक समूह के साथ एक रेस्तराँ में बैठता हूँ और मैं बिल का भुगतान करना चाहता हूँ, तो उनमें से एक बिल का भुगतान करने के लिए खड़ा होता है। लेकिन मैं क़सम खा लेता हूँ कि मैं बिल का भुगतान करूँगा और मैं कहता हूँ : अल्लाह की क़सम! तुम भुगतान नहीं करोगे। लेकिन वह क़सम की परवाह किए बिना भुगतान कर देता है। क्या यह जायज़ हैॽ क्या मेरी यह क़सम, अल्लाह की क़सम मानी जाएगी और उसका कफ़्फ़ारा देना पड़ेगाॽ

तो उन्होंने जवाब दिया :

“सबसे पहले : मैं इस प्रश्नकर्ता और अन्य लोगों को नसीहत करता हूँ कि वे दूसरों पर किसी चीज़ को करने या न करने की क़सम न खाएँ ; क्योंकि इस क़सम में ख़ुद उनके लिए या उन लोगों के लिए कठिनाई है जिनपर उसने क़सम खाई है। उनके लिए कठिनाई का कारण इस प्रकार है कि जिस व्यक्ति पर क़सम खाई गई है अगर वह क़सम के ख़िलाफ़ करता है तो, उस (क़सम खाने वाले) पर कफ़्फ़ारा अनिवार्य होगा। जहाँ तक उस व्यक्ति को कठिन परिस्थिति में डालने का संबंघ है जिसपर क़सम खाई गई है, तो वह इसलिए है, क्योंकि हो सकता है कि वह क़सम का पालन कष्ट के साथ करे, और शायद कष्ट और हानि के साथ-साथ उस व्यक्ति के प्रति अच्छा व्यवहार करने के तौर पर करे, जिसने उसपर क़सम खाई है। और इसमें उसे एक कठिन और असुविधाजनक स्थिति में डालना पाया जाता है।

जहाँ तक कफ़्फ़ारा की बात है : अगर कोई व्यक्ति किसी चीज़ के करने या न करने की अपने आपपर या किसी दूसरे पर क़सम खाता है : तो या तो वह अपनी क़सम को अल्लाह की मशीयत (इच्छा) के साथ जोड़ता है और कहता है : “अल्लाह की क़सम! इन शा अल्लाह (यदि अल्लाह ने चाहा) तो तुम निश्चित रूप से ऐसा और ऐसा करोगे, या मैं निश्चित रूप से ऐसा करूंगा”, और या तो वह उसे अल्लाह की इच्छा के साथ नहीं जोड़ता है।

यदि वह अपनी क़सम को अल्लाह की इच्छा (इन शा अल्लाह) के साथ जोड़ता है, तो उसकी क़सम भंग नहीं होती है और न ही कोई प्रायश्चित अनिवार्य होता है, भले ही वह चीज़ पूरी न हो, जिसपर क़सम खाई गई है।

और यदि वह उसे अल्लाह की इच्छा (इन शा अल्लाह) के साथ नहीं जोड़ता है, तो उसकी क़सम भंग हो जाएगी, यदि वह उस चीज़ को छोड़ देता है जिसे करने की उसने क़सम खाई थी, या वह उस चीज़ को कर लेता है जिसे उसने छोड़ने की क़सम खाई थी।

जब इनसना किसी चीज़ को करने की क़सम खाए, चाहे वह उसे खुद से करने वाला हो, या किसी और को ऐसा करने के लिए आग्रह करना हो, तो उसे चाहिए कि : “इन शा अल्लाह” कहे ; क्योंकि "इन शा अल्लाह" कहने में दो महान लाभ हैं : जिनमें से पहला यह है कि यह उसे आसान बनाने का एक कारण है जिसकी उसने क़सम खाई है। दूसरा : यदि वह अपनी क़सम को तोड़ दे, चुनाँचे वह उस चीज़ को न करे जिसकी उसने क़सम खाई है, या जिस चीज़ को न करने की क़सम खाई है उसे कर ले ; तो उसपर कोई कफ़्फ़ारा अनिवार्य नहीं है...

जहाँ तक सवाल करने वाले के सवाल का संबंध है जिसने अपने साथी पर क़सम खाई थी कि वह रेस्तरां के मालिक को बिल का भुगतान न करे, परंतु उसके साथी ने उसे भुगतान कर दिया : तो उसपर अनिवार्य है कि वह क़सम का कफ़्फ़ारा अदा करे ; क्योंकि उसके साथी ने उसकी क़सम पूरी नहीं की।” “फतावा नूरुन अलद्-दर्ब” (11/256-257) से उद्धरण समाप्त हुआ।

जहाँ तक आपके उसके पास जाने और उसे टैक्सी का किराया देने की बात है : तो यह आपसे क़सम तोड़ने का कफ़्फ़ारा समाप्त नहीं करेगा, क्योंकि क़सम को तोड़ने और उस चीज़ को न करने के कारण जिसकी आपने क़सम खाई थी, उसकी अनिवार्यता आपपर सिद्ध हो चुकी है।

प्रश्न संख्या : (45676 ) के उत्तर में क़सम तोड़ने के कफ़्फ़ारा के बारे में विस्तार से बताया गया है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर