हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
इसमें कोई हर्ज की बात नहीं है कि ग़रीब व्यक्ति को पैसे भेज दें और उसे अपनी ओर से ज़कातुल-फ़ित्र खरीदने और ईद से एक या दो दिन पहले उसे अपने लिए इकट्ठा करने का अधिकार प्रदान कर दें।
कुछ फ़ुक़हा (धर्म-शास्त्रियों) ने शर्त लगाई है कि आप ज़कात देने का इरादा उसे खरीदने के बाद करें। क्योंकि वह खरीदने के बाद उसके पास एक जमा राशि हो जाएगी। इसलिए आपको उसे ज़कातुल फ़ित्र के तौर पर निकालने का इरादा करना होगा।
जबकि उनमें से कुछ विद्वानों ने यह शर्त नहीं लगाई है, और यही प्रबल मत है, खरीदने में वकील बनाने को पर्याप्त समझते हुए, और यह कि यह उसके इरादे में भी वकील बनाना माना जाएगा।
उन्होंने "इआनतुत्-तालिबीन" (2/207) में कहा : "और अगर वह दूसरे से कहे : अमुक व्यक्ति से मेरा क़र्ज ले लो, और वह (राशि) तुम्हारे लिए ज़कात है, तो वह पर्याप्त नहीं है, जब तक कि वह [यानी लेनदार] उसे लेने के बाद ज़कात का इरादा न करे, फिर उस व्यक्ति को उसे लेने की अनुमति दे।
उनमें से कुछ विद्वानों ने फतवा दिया है कि उसे निकालने में पूर्ण पावर ऑफ अटॉर्नी देने से उसे उसकी नीयत (इरादे) के संबंध में पावर ऑफ अटॉर्नी देना आवश्यक हो जाता है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
प्रश्न संख्या : (339075 ) का उत्तर देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।