हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
यदि मुसलमान यह जानता है कि इस सांसारिक जीवन में उसके पैदा होने का उद्देश्य अल्लाह के नियमों और उसकी शरीयत के दायित्वों का पालन करना और उसके माध्यम से सर्वशक्तिमान अल्लाह की उपासना करना है, तो वह यह भी जानता है कि उसके लिए अल्लाह की शरीयत के प्रावधानों को सीखना और उसके दायित्वों को जानना भी ज़रूरी है, क्योंकि जिसके बिना कोई अनिवार्य काम पूरा नहीं होता, तो वह भी अनिवार्य हो जाता है।
हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आपने फरमाया : "ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है।" इसे इब्ने माजा (हदीस संख्या : 224) ने रिवायत किया है और इसकी कई इस्नादों और शवाहिद के आधार पर मिज़्ज़ी, जरकशी, सुयूती, सखावी, ज़हबी, मुनावी और ज़ुरक़ानी ने इसे हसन कहा है, तथा यह अलबानी की “सहीह इब्ने माजा” में है।
विद्वानों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस हदीस का अर्थ सहीह है।
इब्ने अब्दुल-बर्र रहिमहुल्लाह ने कहा :
"लेकिन उनके निकट इसका अर्थ सहीह है, भले ही उन्होंने इसके बारे में कुछ हद तक मतभेद किया है।"
“जामे' बयान अल-इल्म” (1/53)
ऐसा ही कुछ नववी ने “अल-मंसूरात” (पृष्ठ : 287) में और इब्नुल-क़य्यिम ने “मिफ़्ताह दार अस-सआदह” (1/480) में कहा है।
इब्ने अब्दुल-बर्र ने यह भी कहा :
"विद्वानों ने सर्वसम्मति से इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि ज्ञान का कुछ हिस्सा प्राप्त करना एक व्यक्तिगत दायित्व है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति को सीखना चाहिए, और उनमें से कुछ ज्ञान का सीखना एक सामुदायिक दायित्व है, यदि कुछ लोगों ने उसे प्राप्त कर लिया, तो उस स्थान के लोगों के लिए उसका दायित्व समाप्त हो जाता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“जामिओ बयानिल-इल्मि व फ़ज़्लिह्” (1/56)
विद्वानों रहिमहुमुल्लाह ने उस ज्ञान का वर्णन किया है जो व्यक्तिगत आधार पर अनिवार्य है, तथा उन्होंने उस ज्ञान की मात्रा के बारे में (भी) बात की है जिसे सीखना प्रत्येक मुसलमान के लिए एक व्यक्तिगत दायित्व है। उन्होंने उल्लेख किया है कि इसमें उन लोगों के लिए क्रय-विक्रय के नियमों को सीखना भी शामिल है जो व्यापार के क्षेत्र में काम करते हैं। ताकि वे अनजाने में हराम चीज़ों या सूद में न पड़ें। कुछ सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से ऐसी बातें वर्णित हैं, जो इसका समर्थन करती हैं।
उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : "हमारे बाज़ार में केवल वही बेचेगा जो धर्म (इस्लाम) की समझ रखता है।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 487) ने रिवायत किया है और उन्होंने कहा : यह हदीस हसन ग़रीब है। तथा अलबानी ने सहीह तिरमिज़ी में इसे हसन कहा है।
अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : "जो कोई धर्म सीखने से पहले व्यापार करता है, वह सूद में पड़ जाएगा, फिर वह सूद में गिर जाएगा, फिर वह सूद में पड़ जाएगा।"
“मुग़्नी अल-मुहताज” (2/22)
इब्ने अब्दुल-बर्र ने कहा :
“उसमें से सभी लोगों के लिए जो सीखना आवश्यक है, वह है :
उसके ऊपर अनिवार्य किए गए कर्तव्यों में से वे बातें जिनसे कोई भी व्यक्ति अनभिज्ञ नहीं रह सकता है :
जैसे : ज़बान से गवाही देना और दिल से स्वीकार करना कि अल्लाह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं है... और वह अपने गुणों और नामों के साथ शाश्वत और चिरस्थायी है; उसकी प्रथमता की न कोई शुरुआत है और न ही उसकी अंतिमता का कोई अंत, और वह अर्श (सिंहासन) पर बुलंद है।
तथा यहन गवाही देना कि मुहम्मद उसके बंदे और रसूल हैं, और सभी लोगों को उनके कर्मों का बदला देने के लिए मृत्यु के बाद पुनर्जीवित किया जाएगा, और यह कि क़ुरआन अल्लाह की वाणी है, और उसमें जो कुछ है वह सत्य है।
पाँच दैनिक नमाज़ें अनिवार्य हैं, और उसके लिए उसके ज्ञान में से उस चीज़ का सीखना अनिवार्य है जिसके बिना वह संपन्न नहीं हो सकता, जैसे नमाज़ के लिए पवित्रता और उसके अन्य नियम।
रमज़ान का रोज़ा अनिवार्य है, और उसके लिए यह जानना आवश्यक कि उसके रोज़े को क्या चीज़ अमान्य कर देती है और किस चीज़ के बिना वह पूरा नहीं हो सकता।
यदि उसके पास धन है और हज्ज करने की क्षमता है, तो उसके लिए अनिवार्य रूप से यह जानना आवश्यक है कि ज़कात किस चीज़ में अनिवार्य है, और कब अनिवार्य है, और कितने में अनिवार्य है। तथा उसके लिए यह जानना आवश्यक है कि हज्ज उसके ऊपर जीवन में केवल एक बार अनिवार्य है यदि वह ऐसा करने की क्षमता रखता है।
तथा ऐसी चीजें जिन्हें उसे सार रूप से जानना आवश्यक है और उनसे अनभिज्ञ होने का बहाना नहीं चल सकता, जैसे : ज़िना और रिबा (सूद) का निषिद्ध होना, शराब, सूअर का मांस, मृत मांस खाने और सभी अशुद्ध चीजों, गसब करने (हड़पने), झूठी गवाही देने, अवैध तरीके से लोगों का धन खाने का निषेध, सभी प्रकार के अत्याचार व अन्याय का निषेध, माताओं, बहनों और उनके साथ उल्लिखित महिलाओ से विवाह करने का निषेध। तथा किसी मोमिन (विश्वासी) आत्मा की अन्यायपूर्ण तरीके से हत्या करने का निषेध।
और इन सब की तरह जो भी चीज़ है, जिसका किताब (क़ुरआन) में उल्लेख हुआ है और उसपर उम्मत की सहमति है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“जामे' बयान अल-इल्म” (1/57)
तथा “अल-मौसूआ अल-फ़िक़्हिय्या” (30/293) में कहा गया है :
“इब्ने आबिदीन ने अल-अल्लामी के हवाले से कहा :
प्रत्येक मुकल्लफ़ (शरीयत के नियमों का पालन करने के लिए बाध्य) व्यक्ति, पुरुष और महिला के लिए धर्म और मार्गदर्शन का ज्ञान सीखने के बाद, वुज़ू, ग़ुस्ल, नमाज और रोज़ा का ज्ञान, निसाब वाले के लिए ज़कात का ज्ञान और जिसपर हज्ज अनिवार्य है उसके लिए हज्ज के प्रावधान सीखना अनिवार्य है।
व्यापारियों को व्यापार के नियमों को सीखना चाहिए, ताकि वे अपने सभी लेन-देन में संदिग्ध और मकरूह चीज़ों से बच सकें; यही बात उन लोगों पर भी लागू होती है जो किसी पेशे से जुड़े हैं।
प्रत्येक व्यक्ति जो कोई कार्य करता है, उसपर उसका ज्ञान हासिल करना और उसके हुक्म को जानना अनिवार्य है ताकि वह उसमें हराम (निषिद्ध चीज़) से बच सके।
नववी ने कहा : जहाँ तक क्रय-विक्रय, शादी और उनके समान चीज़ों का संबंध है - जो मूल रूप से अनिवार्य नहीं हैं – तो उनकी शर्तों को जाने बिना ही उन्हें करना निषिद्ध है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
ग़ज़ाली रहिमहुल्लाह ने कहा :
“इसी तरह, यदि यह मुसलमान एक व्यापारी है और देश में रिबा (सूद) का लेन-देन व्यापक है, तो उसे सूद से सावधान रहने के बारे में सीखना चाहिए। और यही उस ज्ञान के बारे में सत्य है जो 'फ़र्ज़-ऐन' (एक व्यक्तिगत दायित्व) है, और उसका मतलब यह जानना है कि एक अनिवार्य कार्य को कैसे करना हैॽ” उद्धरण समाप्त हुआ।
”एह्याओ उलूमिद्दीन” (1/33)
अली बिन अल-हसन बिन शक़ीक़ ने इब्नुल-मुबारक से कहा :
“एक मोमिन को ज्ञान सिखाने के संबंध में किस चीज़ की खोज किए बिना चारा नहींॽ और किस चीज़ को सीखना उसपर अनिवार्य हैॽ
उन्होंने कहा : "वह ज्ञान के बिना कुछ भी नहीं कर सकता, और उसके लिए पूछे बिना कोई चारा नहीं है।” इसे इब्ने अब्दिल-बर्र ने “जामिओ बयानिल-इल्म” (1/56) में रिवायत किया है।
तथा अल-ग़ज़ाली रहिमहुल्लाह ने कहा :
“प्रत्येक व्यक्ति अपने दिन और रात के दौरान अपनी इबादत और दूसरों के साथ व्यवहार में ऐसी घटनाओं और परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जो उसके लिए नवीनीकृत आवश्यकताओं से रहित नहीं होती हैं। इसलिए वह अपने साथ होने वाली सभी दुर्लभ चीज़ों के बारे में पूछने के लिए बाध्य होता है। तथा उसके लिए आवश्यक होता है कि उस चीज़ को सीखने के लिए पहल करे जिसके निकट भविष्य में घटित होने की आशा है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“एह्याओ उलूमिद्दीन” (1/34)
व्यापार और खरीद-फरोख्त का काम करने वालों को हमारी सलाह है कि वे लेन-देन के शास्त्र के बारे में लिखी गई कुछ संक्षिप्त किताबें पढ़ें, जैसे शैख सालेह अल-फ़ौज़ान द्वारा लिखित “अल-मुलख़्ख़स अल-फ़िक़्ही” और प्रोफेसर अब्दुल्लाह अल-मुस्लेह और सलाह अस-सावी द्वारा लिखित “मा ला यसउल मुस्लिम जहलुहू”।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।