रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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सह्व (भूलने) के सजदे की जगह और उसमें क्या कहना चाहिएॽ

प्रश्न

मैं पूछना चाहता हूँ कि नमाज़ में कमी या वृद्धि (यानी कुछ घटाने या बढ़ाने) की स्थिति में सह्व का सजदा कैसे किया जाएगा। अगर सह्व का सजदा सलाम फेरने के बाद हो, तो नमाज़ी को तशह्हुद दोहराना चाहिए या नहींॽ

क्या वह सह्व के सजदे में “सुब्हाना रब्बियल-आला” (बहुत पवित्र है मेरा सर्वोच्च पालनहार) तीन बार कहेगाॽ या क्या और भी दुआएँ हैं जो सह्व के सजदे में कही जाती हैंॽ

अगर नमाज़ पढ़ने वाला पहला तशह्हुद भूल जाए तो क्या उस पर सह्व का सजदा करना अनिवार्य है या नहींॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

पहली बात :

सह्व के सजदे की जगह सलाम के पहले है या उसके बाद में, इस बारे में विद्वानों में बहुत मतभेद है। उनके कथनों में सबसे स्पष्ट यह है कि : नमाज़ में गलती से कुछ वृद्धि करने की स्थिति में आदमी को सलाम के बाद सजदा करना चाहिए, और कुछ कमी करने (यानी छोड़ देने) की स्थिति में सलाम से पहले सजदा करना चाहिए। जहाँ तक शक की स्थिति का संबंध है, तो इसमें कुछ विस्तार है : अगर दोनों संभावनाओं में से कोई एक संभावना उसके निकट प्रबल (अधिक) हो, तो वह सलाम के बाद सजदा करेगा और अगर दोनों संभावनाओं में से कोई एक संभावना प्रबल न हो, तो वह सलाम से पहले सज्दा करेगा। प्रश्न संख्या : (12527 ) के उत्तर में इसका उल्लेख किया जा चुका है।

दूसरा :

फतावा अल-लजना अद-दाईमा (8/7) में आया है :

“विद्वानों के दो विचारों में से अधिक सही के अनुसार, नमाज़ में पहला तशह्हुद नमाज़ के वाजिबात (अनिवार्य तत्वों) में से है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ऐसा करते थे और कहते थे : “तुम उसी तरह नमाज़ पढ़ो, जैसा तुमने मुझे नमाज़ पढ़ते देखा है।” और जब आपने उसे गलती से छोड़ दिया, तो आपने सह्व के लिए सजदा किया। अतः जिसने उसे जानबूझ कर छोड़ दिया, उसकी नमाज़ बातिल है। और जिसने उसे गलती से छोड़ दिया है, वह सलाम फेरने से पहले सह्व का सजदा करके उसकी भरपाई करेगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।

 तीसरा :

सह्व के सजदे के बाद तशह्हुद को दोहराना धर्मसंगत नहीं है, चाहे वह सजदा सलाम से पहले हो या उसके बाद हो। प्रश्न संख्या (7895) के उत्तर में इसका वर्णन किया जा चुका है।

चौथा:

सह्व का सज्दा उसी तरह किया जाएगा जिस तरह नमाज़ का सजदा किया जाता है। इसलिए वह नमाज़ के सजदे की तरह सात हड्डियों पर सजदा करेगा, और सुप्रसिद्ध ज़िक्र (सुब्हाना रब्बियल-आला) का पाठ करके अल्लाह को याद करेगा और दोनों सजदों के बीच (रब्बिग़ फ़िरली, रब्बिग़ फ़िरली) (मेरे रब! मुझे माफ़ कर दे, मेरे रब! मुझे माफ़ कर दे) कहेगा। और सह्व के सजदे का कोई विशेष ज़िक्र नहीं है। यही विद्वानों का फ़ैसला है।

अल-मिरदावी ने “अल-इंसाफ़” (2/159) में कहा :

“सह्व का सजदा, तथा उसमें जो कुछ वह कहेगा और उससे उठने के बाद जो कुछ कहेगा, नमाज़ के सजदे के समान है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

अर-रमली ने “निहायतुल-मुहताज” (2/88) में कहा :

“उन दोनों (यानी सह्व के दोनों सजदों) का तरीक़ा नमाज़ के सजदों के समान है, उसके वाजिबात और मुस्तहब (अनिवार्य एवं ऐच्छिक) कार्यों के संबंध में, जैसे कि माथे को ज़मीन पर रखना, आसन में इतमिनान अपनाना, उन दोनों के बीच इफ्तिराश (बाएँ पैर को बिछाकर उस पर बैठने और दाहिने को खड़ा रखने) के आसन पर बैठना।” संक्षेप के साथ उद्धरण समाप्त हुआ।

कुछ फुक़हा सह्व के सजदे में “सुब्हाना मन् ला यस्हु व ला यनाम” कहना मुस्तहब मानते हैं, लेकिन इसका कोई सबूत नहीं है। इसलिए धर्मसंगत यह है कि नमाज़ के सजदे में कहे जाने वाले ज़िक्र तक ही सीमित रहा जाए, और उसके अलावा किसी अन्य ज़िक्र का पाठ न किया जाए।

विद्वानों के अन्य कथन प्रश्न संख्या : (39399 ) में पहले ही उद्धृत किए जा चुके हैं।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।  

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर