रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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क्या शाबान के पूरे महीने का रोज़ा रखना मुस्तहब है ?

प्रश्न

क्या सुन्नत का तरीक़ा यह है कि मैं शाबान के पूरे महीने का रोज़ा रखूं ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

शाबान के महीने में अधिक से अधिक रोज़ा रखना मुस्तहब है।

यह बात वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पूरे शाबान का रोज़ा रखते थे।

इमाइ अहमद (हदीस संख्या : 26022) अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2336), नसाई (हदीस संख्या : 2175) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1648)ने उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को लगातार दो महीने का रोज़ा रखते हुए नहीं देखा,सिवाय इसके कि आप शाबान को रमज़ान के साथ मिलाते थे।

अबू दाऊद की रिवायत के शब्द यह हैं कि "नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम साल में किसी सम्पूर्ण महीने का रोज़ा नहीं रखते थे,सिवाय शाबान के कि उसे रमज़ान के साथ मिलाते थे।" अल्बानी ने सही अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2048) में इसे सहीह कहा है।

इस हदीस का प्रत्येक्ष अर्थ यह हुआ कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम शाबान के महीने का पूरा रोज़ा रखते थे।

किन्तु दूसरी हदीसों में यह बात वर्णित हुई है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम शाबान का रोज़ा रखते थे सिवाय कुछ दिनों को छोड़कर।

मुस्लिम (हदीस संख्या : 1156) ने अबू सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं ने आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के रोज़े के बारे में प्रश्न किया तो उन्हों ने उत्तर दिया : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रोज़ा रखते थे यहाँ तक कि हम कहते कि आप ने रोज़ा रखा,और आप रोज़ा तोड़ देते थे यहाँ तक कि हम कहते कि आप ने रोज़ा तोड़ दिया। तथा हमने आप को किसी महीने में शाबान के महीने से अधिक रोज़ा रखते हुए नहीं देखा। आप पूरे शाबान का रोज़ा रखते थे, आप पूरे शाबान का रोज़ा रखते थे सिवाय कुछ दिनों को छोड़कर।

इन दोनों हदीसों के अर्थ के बीच मिलान के बारे में विद्वानों ने मतभेद किया है :

कुछ विद्वान इस बात की ओर गए हैं कि यह अलग अलग समय में हुआ है,चुनांचि कुछ सालों में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पूरे शाबान का रोज़ा रखा,और कुछ सालों में आप ने कुछ दिनों को छोड़कर पूरे शाबान का रोज़ा रखा।

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने इसी को चयन किया है।

देखिए : मज्मूओ फतावा शैख इब्ने बाज़ (15 / 416)

तथा कुछ लोग इस बात की ओर गए हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रमज़ान के अलावा किसी अन्य महीने का सम्पूर्ण रोज़ा नहीं रखते थे। तथा इन लोगों ने उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस का अर्थ यह निकाला है कि इस से अभिप्राय यह है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कुछ दिनों को छोड़कर पूरे शाबान का रोज़ा रखा। उनका कहना है कि अरबी भाषा में यह जाइज़ है कि जब आदमी महीने के अक्सर दिनों का रोज़ा रखे तो उसे कहा जाये कि : उसने पूरे महीने का रोज़ा रखा।

हाफिज़ इब्ने हजर कहते हैं :

"आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस इस बात को स्पष्ट करती है कि उम्मे सलमा की हदीस कि (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम साल में किसी सम्पूर्ण महीने का रोज़ा नहीं रखते थे,सिवाय शाबान के कि उसे रमज़ान के साथ मिलाते थे।")का मतलब यह है कि आप शबान का अक्सर रोज़ा रखते थे। इमाम तिर्मिज़ी ने इब्नुल मुबारक से उल्लेख किया है कि उन्हों ने कहा : अरबों की भाषा में जायज़ है कि जब आदमी अक्सर महीने का रोज़ा रखे तो कहे कि उसने पूरे महीने का रोज़ा रखा है।

अल्लामा तीबी कहते हैं : यह इस बात पर महमूल किया जायेगा कि कभी आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पूरे शाबान का रोज़ा रखते थे और कभी अक्सर शाबान का रोज़ा रखते थे। ताकि यह भ्रम न पैदा हो कि रमज़ान के समान शाबान का भी पूरा रोज़ा रखना अनिवार्य है . . ."

फिर हाफिज़ इब्ने हजर ने कहा : पहला कथन ही दुरूस्त (शुद्ध) है। इब्ने हजर की बात समाप्त हुई।

अर्थात् नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पूरे शाबान का रोज़ा नहीं रखते थे। और इसके लिए उस हदीस से दलील पकड़ी गई है जिसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 746)ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने फरमाया : मैं नहीं जानती कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक रात में पूरा क़ुरआन पढ़ा, और न किसी रात को सुबह तक नमाज़ पढ़ी,और न ही रमज़ान के अलावा किसी महीने का पूरा रोज़ा रखा।

तथा उस हदीस से भी दलील पकड़ी गई है जिसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 1971)और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1157) ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रमज़ान के अलावा कभी किसी महीने का पूरा रोज़ा नहीं रखा।

अल्लामा सिन्धी ने उम्मे सलमा की हदीस की व्याख्या करते हुए फरमाया :

"शाबान को रमज़ान से मिलाते थे।" अर्थात् दोनों का रोज़ा रखते थे,इसका प्रत्यक्ष मतलब यह है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पूरे शाबान का रोज़ा रखते थे . . . किन्तु ऐसी हदीसें भी वर्णित हैं जो इसके विपरीत अर्थ पर दलालत करती हैं। इसीलिए इसे इस बात पर महमूल किया गया है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अक्सर दिनों का रोज़ा रखते थे। अत: मानो कि आप पूरे महीने का रोज़ा रखते थे और आप उसे रमज़ान से मिलाते थे।" (सिन्धी की बात समाप्त हुई)

यदि कहा जाए कि : शाबान के महीने में अधिक से अधिक रोज़ा रखने की क्या हिकमत (तत्वदर्शिता) है ?

तो उसका उत्तर यह है :

हाफिज़ इब्ने हजर कहते हैं :

इस विषय में सर्वश्रेष्ठ बात यह है जिसे नसाई और अबू दाऊद ने रिवायत किया है और इब्ने खुज़ैमा ने उसे सहीह कहा है,उसामा बिन ज़ैद से रिवायत है कि उन्हों ने कहा : मैं ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैं आपको किसी महीने में इतना रोज़ा रखते हुए नहीं देखता जितना आप शाबान के महीने में रोज़ा रखते हैं ? तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उत्तर दिया : "रजब और रमज़ान के बीच यह ऐसा महीना है जिस से लोग गाफिल (निश्चेत) रहते हैं,यह ऐसा महीना है जिस में आमाल अल्लाह रब्बुल आलमीन की तरफ पेश किये जाते हैं। अत: मैं पसन्द करता हूँ कि मेरा अमल इस हाल में पेश किया जाये कि मैं रोज़े से रहूं।" (हाफिज़ की बात समाप्त हुई)

इस हदीस को अल्बानी ने सहीह नसाई (हदीस संख्याः 2221) में हसन क़रार दिया है।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर