हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
प्रथम :
एक बकरी की क़ुर्बानी आदमी और उसके घर वालों तथा मुसलमानों में से जिसे वह शामिल करना चाहे, उन सब की ओर से काफी होगी। आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की इस हदीस के आधार पर कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सींगों वाला एक मेढ़ा लाने का आदेश दिया जो काले पैर, काले पेट और काली आँखों वाला हो। उसे आप के पास लाया गया ताकि आप उसकी क़ुर्बानी करें। आप ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया : ऐ आयशा छुरी लाओ। चुनाँचे वह छुरी लेकर आईं और आप ने छुरी ले ली और मेढ़े को लिटाया और उसे ज़ब्ह करने के लिए तैयार होने लगे फिर कहा : अल्लाह के नाम से ज़ब्ह करता हूँ, ऐ अल्लाह मुहम्मद और मुहम्मद के परिवार की ओर से और मुहम्मद की उम्मत की ओर से स्वीकार कर।‘’ फिर आप ने उसकी क़ुर्बानी की।‘’ इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
अबू अय्यूब अन्सारी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह कहते हैं कि : ‘’नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में आदमी अपनी ओर से और अपने घर वालों की ओर से एक बकरी ज़ब्ह करता था। चुनाँचे वे खुद खाते थे और दूसरों को भी खिलाते थे।‘’ इसे इब्ने माजा और तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है और तिर्मिज़ी ने सहीह कहा है। तथा शैख अल्बानी ने भी सहीहुत्तिर्मिज़ी (हदीस संख्याः 1216) में इसे सहीह क़रार दिया है।
अतः यदि आदमी अपनी ओर से और अपने घर वालों की ओर से एक बकरी या भेढ़ की क़ुर्बानी करता है, तो वह क़ुर्बानी उसके घर वालों में से उन सब की ओर से काफी है जिन की ओर से उसने नीयत की है चाहे वह ज़िन्दा हो या मुर्दा। यदि वह किसी सामान्य या विशेष चीज़ की नीयत न करे तो उसके घर वालों में हर वह व्यक्ति दाखिल होगा जिसे यह शब्द प्रथानुसार या भाषा की दृष्टि से शामिल होता है। प्रथानुसार वह पत्नियों, बच्चों और रिश्तेदारों में से उन सबको संदर्भित करता है जिनके खर्च का वह ज़िम्मेदार है। और भाषा की दृष्टि से उसके हर उस संबंधी को शामिल है जो उसकी संतान, उसके पिता की संतान, उसके दादा और उसके परदादा की संतान से है।
तथा ऊँट या गाय का सातवाँ भाग उन लोगों की ओर से काफी होगा, जिनकी ओर से एक बकरी काफी होती है। यदि आदमी अपनी ओर से और अपने घर वालों की ओर से ऊँट या गाय के सातवें भाग की क़ुर्बानी करे तो वह काफी है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हदी (हज्ज की क़ुर्बानी) में ऊँट और गाय के सातवें भाग को बकरी के बराबर क़रार दिया है। अतः इसी तरह क़ुर्बानी में भी होगा, क्योंकि इस विषय में हदी और क़ुर्बानी के बीच कोई अन्तर नहीं है।
दितीय :
एक बकरी दो या उससे अधिक व्यक्तियों की ओर से काफी नहीं है कि दो लोग उसे खरीदें और दोनों साझी होकर उसकी क़ुर्बानी करें, क्योंकि यह किताब व सुन्नत के अन्दर वर्णित नहीं है। इसी तरह आठ या उससे अधिक लोग एक ऊँट या गाय में साझी नहीं हो सकते (परंतु एक ऊँट या गाय में सात लोगों का साझी होना जायज़ है); क्योंकि इबादतें तौक़ीफी हैं (अर्थात पूजा के कृत्यों का आधार क़ुरआन और सुन्नत के निर्धारण पर है) इस में निर्धारित मात्रा और विधि से आगे बढ़ना जायज़ नहीं है। और यह मुद्दा सवाब (पुण्य) में साझेदारी के अतिरिक्त है, क्योंकि सवाब में साझेदारी करना बिना किसी सीमा के प्रमाणित है जैसा कि इसका उललेख हो चुका है।