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निम्नलिखित मुद्दे का क्या हुक्म है:
अगर किसी व्यक्ति ने वुज़ू करके मोज़े पहन लिए, फिर उसका वुज़ू टूट गया। इसके बाद उसने अपने पैरों पर कुछ क्रीम लगाने के लिए कुछ सेकंड के लिए मोज़े निकाल दिए, उसके बाद उसने फिर से मोज़े पहन लिए। तो क्या ऐसी स्थिति में उसके लिए फिर से अपने पैरों को धोना आवश्यक है यदि उसने दोबारा वुज़ू किया हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
वुज़ू में मोज़ों पर मसह करना केवल उसी के लिए सही है जिसने उन्हें पवित्रता (वुज़ू) की हालत में पहना हो, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सही सुन्नत (हदीस) से यही प्रमाणित है।
बुखारी (हदीस संख्या : 206) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 274) ने मुग़ीरा बिन शोअबा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ एक यात्रा में था, तो मैं झुका कि आपके मोज़े उतार दूँ, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “उन्हें रहने दो, क्योंकि मैंने उन्हें तहारत (वुज़ू) की हालत में पहना है, फिर आप ने उन दोनों पर मसह किया।”
तथा अबू दाऊद (हदीस संख्या : 151) की रिवायत के शब्द यह हैं : “मोज़ों को रहने दो, क्योंकि मैंने मोज़ों में जब पाँव दाखिल किए थे तो वे पाक थे।”
अल्लामा नववी कहते हैं :
"इस हदीस में इस बात का सबूत है कि मोज़ों पर मसह करना उसी समय जायज़ है जब उसने उन्हें पूर्ण तहारत (वुज़ू) की अवस्था में पहने हों।” अंत हुआ।
इब्ने क़ुदामा ने “अल-मुग़्नी” (1/174) में फरमाया :
“हम इस बारे में कोई मतभेद नहीं जानते कि मसह के जायज़ होन से पहले तहारत (वुज़ू) का होना शर्त है।” उद्धरण का अंत हुआ।
इमाम मालिक रहिमहुल्लाह ने फरमायाः
“मोज़ों पर मसह वही करेगा जिसने अपने पैरों को मोज़े में इस अवस्था में दाखिल किए हैं कि वे दोनों वुज़ू के द्वारा पाक हों, परंतु जिसने अपने पैरों को मोज़े में इस हालत में डाले हैं कि वे दोनों वुज़ू के द्वारा पाक नहीं थे, तो वह मोज़ों पर मसह नहीं करेगा।”
“अल-मुवत्ता” (1/37)।
अल-मुवत्ता की शर्ह “अल-मुन्तक़ा” (1/78) में कहा गया है :
“और यह ऐसे ही है जैसा कि उन्हों ने कहा कि अगर उसने वुज़ू करने के बाद अपने मोज़े पहन लिए, फिर उसका वुज़ू टूट गया, फिर उसने अपने मोज़े उतार दिए, फिर उसने उन्हें (दोबारा) पहन लिए, तो उन्हें तहारत की हालत में पहनने का हुक्म समाप्त हो गया और वह उन्हें अपवित्रता की हालत में पहनने वाला हो गया। जबकि दोनों पैरों को मोज़े में पवित्रता (वुज़ू) की हालत में दाखिल करना मोज़ों पर मसह के शुद्ध होने के लिए शर्त है।” उद्धरण का अंत हुआ।
इस आधार पर, जिसने मोज़े (जुराब) उतार दिए, फिर उसने उन्हें अपवित्रता (ग़ैर-वुज़ू) की हालत में दोबारा पहन लिए, तो उसके लिए उन पर मसह करना जायज़ नहीं है, बल्कि वुज़ू में दोनों पैर धोना अनिवार्य है। और उनके निकालने की अवधि का कुछ ही सेकंड होने से हुक्म नहीं बदलेगा, क्योंकि उसके बारे में यह कहना सही है कि उसने अशुद्धता (गैर-वुज़ू) की अवस्था में मोज़े पहने हैं, अतः उसके लिए उन पर मसह करना जायज़ नहीं है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
अधिक लाभ के लिए प्रश्न संख्याः (9640) देखें।