हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
ईमान में वृद्धि के कई कारण हैं :
पहला कारण : सर्वशक्तिमान अल्लाह को उसके नामों और गुणों के साथ जानना। क्योंकि जितना अधिक व्यक्ति अल्लाह तथा उसके नामों और गुणों को जानेगा, उतना ही वह निःसंदेह ईमान में बढ़ जाएगा। इसलिए आप उन विद्वानों को पाते हैं जो अल्लाह के नामों और विशेषताओं के बारे में वह कुछ जानते हैं जो दूसरे नहीं जानते, आप उन्हें इस संबंध में दूसरों की तुलना में विश्वास में अधिक मजबूत पाएँगे।
दूसरा कारण : अल्लाह की ब्रह्मांडीय और शरई निशानियों में मनन-चिंतन करना। जितना अधिक एक व्यक्ति ब्रह्मांडीय निशानियों अर्थात सृष्टियों में मनन चिंतन करेगा, उतना ही उसका ईमान बढ़ जाएगा। अल्लाह तआला ने फरमाया :
وفي الأرض آيات للموقنين وفي أنفسكم أفلا تبصرون
الذاريات:20-21
“तथा धरती में विश्वास करने वालों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं। तथा स्वयं तुम्हारे भीतर (भी)। तो क्या तुम नहीं देखतेॽ” (सूरतुज़ ज़ारियात : 20-21)
इसको इंगित करने वाली आयतें बहुत हैं, मेरा तात्पर्य उन आयतों से है जो इस बात को इंगित करती हैं कि इस ब्रह्मांड में मनन-चिंतन और विचार करने से मनुष्य के ईमान में वृद्धि होती है।
तीसरा कारण : अधिक से अधिक अल्लाह की उपासना के कार्य करना, क्योंकि इनसान जितना अधिक उपासना के कार्य करेगा, उतनी ही उसका ईमान बढ़ जाएगा, चाहे ये उपासना के कार्य कथन से संबंधित हों या कर्म से। अल्लाह का ज़िक्र ईमान को मात्रा और गुणवत्ता में बढ़ा देता है, इसी तरह नमाज़, रोज़ा और हज्ज ईमान को मात्रा और गुणवत्ता में बढ़ा देते हैं।