हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
जब आपके और बैंक के बीच ज़मीन के खरीदने पर समझौता हो गया तो यह ज़मीन आपकी मिल्कियत (संपत्ति) हो गई, भले ही आप ने उसकी पूरी क़ीमत का भुगतान नहीं किया है, और शेष कीमत आपके ऊपर क़र्ज़ बाकी रहेगी।
किंतु . . . यदि आप इस ज़मीन में तसर्रुफ (हस्तक्षेप और वयावहार) नहीं कर सकते और उसे बेचने पर सक्षम नहीं सकते यहाँ तक कि सभी क़िस्तें पूरी हो जायें, तो ऐसी हालत में आपके ऊपर ज़कात अनिवार्य नहीं है, क्योंकि इस ज़मीन पर आपका स्वामित्व और अधिकरण संपूर्ण नहीं है,और ज़कात की शर्तो में से एक : संपूर्ण स्वामित्व का होना भी है जिसमें बिक्री किया गया सामान उसके मालिक के हाथ और उसके अधिकार में हो।
“स्थायी समिति के फतावा” (9/449) में, उस ज़मीन के बारे में जिसमें तसर्रुफ (व्यावहार) करने से उसके मालिक को रोक दिया गया हो, आया है कि : “यदि आप लोग उसमें तसर्रुफ (हस्तक्षेप और व्यावहार) करने से रोक दिये गए हैं तो उसमें आपके ऊपर ज़कात अनिवार्य नहीं है, यहाँ तक कि आप लोग उसमें तसर्रुफ (हस्तक्षेप) करने के मालिक बन जाएँ। इसके बाद भविष्य में ज़कात अनिवार्य होगी जब उस पर उस समय से एक साल बीत जाए जब से आप लोग उसमें तसर्रुफ करने पर सक्षम हुए हैं। . . .” अंत हुआ।
लेकिन यदि आप इस ज़मीन में हस्तक्षेप और व्यावहार करने और उसे बेचने पर सक्षम थे,चाहे बैंक के माध्यम से ही क्यों न हो, जबकि इसमें आपके ऊपर कोई हानि निष्कर्षित नहीं होता था, तो इस हालत में आपके ऊपर व्यापारिक सामान की ज़कात के रूप् में 2.5 प्रतिशत उसकी ज़कात अनिवार्य है।
दूसरा :
ज़कात ज़मीन की संपूर्ण क़ीमत पर अनिवार्य होगी, क्योंकि बा़की बची हुई क़िस्तें बैंक के लिए आपके ऊपर क़र्ज (उधार) हैं,और विद्वानों के दो कथनों में से सही क़थन के अनुसार क़र्ज ज़कात की अनिवार्यता में रूकावट नहीं है, जैसाकि प्रश्न संख्या (22426) के उत्तर में इसका वर्णन हो चुका है।
तीसरा :
आपके ऊपर ज़मीन की ज़कात उसके उस भाव (मूल्य) के अनुसार निकालना अनिवार्य है जो ज़कात के अनिवार्य होने के दिन उसका मूल्य बनता है,चाहे यह क़ीमत खरीदारी की क़ीमत के बराबर या उससे कम या उससे अधिक हो,चुनाँचे साल के अंत में ज़मीन की क़ीमत लगाई जायेगी फिर उसी क़ीमत के हिसाब से उसकी ज़कात निकाली जायेगी।
इसका वर्णन प्रश्न संख्या (26236) के उत्तर में गुज़र चुका है।
चौथा :
जब आप इस समय उसके द्वारा व्यापार करने की नीयत रखते हैं तो आपके ऊपर उसकी ज़कात अनिवार्य है, यदि बाद में आपकी नीयत बदल जाये और उसे आप निवास के लिए या उसके अलावा दूसरी चीज़ की नीयत कर लें तो आपके ऊपर ज़कात अनिवार्य नहीं होगी।
तथा प्रश्न संख्या (117711 ) का उत्तर देखें।
पाँचवाँ :
ज़कात को, ज़कात निकालने वाले के उसूल (मूल) जैसे कि माता पिता, या उसके फुरूअ (शाखओं) जैसेकि बेटा और बेटी को देना जाइज़ नहीं है।
इसका वर्णन प्रश्न संख्या (81122 ) के उत्तर में गुज़र चुका है।