बुधवार 8 रजब 1446 - 8 जनवरी 2025
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जिन स्थितियों में दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ है और बर्फ़बारी के कारण दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ने का हुक्म

प्रश्न

मैं अपनी पढ़ाई की परिस्थितियों के कारण, एक नए शहर में रहने के लिए आया हूँ। मैं मग़रिब की नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद गया, तो इमाम ने मग़रिब और इशा की नमाज़ एक साथ पढ़ी। हालाँकि मुझे पता है कि नमाज़ों को एक साथ पढ़ने के कई कारण हैं, लेकिन मुझे इस बारे में पूरी जानकारी नहीं है। इसलिए मैंने जाकर उनसे नमाज़ को एक साथ पढ़ने का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा : नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने बारिश के कारण नमाज़ एक साथ पढ़ी है और बाहर बर्फ़ पड़ने के कारण हमने दोनों नमाज़ें एक साथ पढ़ी हैं। क्या बर्फ़ पड़ने पर (दो) नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ है? नमाज़ों को एक साथ पढ़ने के सभी कारण क्या हैं? अल्लाह आपको अच्छा प्रतिफल प्रदान करे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सुन्नत (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस) से पता चलता है कि बारिश के कारण मगरिब और इशा की नमाज़ को एक साथ पढ़ना जायज़ है। इमाम मुस्लिम (हदीस संख्या : 705)  ने सईद बिन जुबैर के माध्यम से इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया कि उन्होंने कहा : “अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम) ने मदीना में ज़ुहर और अस्र की नमाज़, तथा मगरिब और इशा की नमाज़ को एक साथ पढ़ा, जबकि न तो कोई डर था और न ही बारिश। मैंने इब्ने अब्बास से पूछा : आपने ऐसा क्यों किया? तो उन्होंने कहा : ताकि आप अपनी उम्मत को परेशानी में न डालें।”

बारिश पर क़ियास करते हुए (यानी बारिश को आधार बनाते हुए) बर्फबारी के कारण नमाज़ों को जमा करना जायज़ है।

“कश्शाफ़ अल-क़िना’” में कहा गया है : “शाम की दो नमाज़ों (यानी मग़रिब और इशा) को, (बर्फ और ओलों के कारण, एक साथ पढ़ना जायज़ है, (लेकिन) दोपहर की दो नमाज़ों (ज़ुहर और अस्र) को नहीं, क्योंकि वे दोनों (यानी बर्फ़ एवं ओले) बारिश के हुक्म के अंतर्गत आते हैं।

तथा बर्फ जमने के कारण मगरिब और इशा को एक साथ पढ़ना जायज़ है, क्योंकि यह ठंड की तीव्रता के कारण होता है।”

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने ओलों के कारण नमाज़ों को एक साथ पढ़ने के बारे में कहा : “यह इस शर्त के अलावा जायज़ नहीं है कि ओलों के साथ ठंडी हवाएँ चल रही हों जो लोगों को नुकसान पहुँचाती हैं, या जब ओले के साथ बर्फ़ गिर रही हो। क्योंकि जब बर्फ़ गिरती है, तो निःसंदेह यह लोगों को नुकसान पहुंचाती है। ऐसी स्थिति में नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ है।” इसका पूरा पाठ आगे आ रहा है।

यह ज्ञात होना चाहिए कि हंबली मत नमाज़ों को एक साथ पढ़ने की अनुमति देने वाले कारणों (बहानों) के बारे में सबसे व्यापक (विस्तृत) मत है। हम यहाँ संपूर्ण लाभ के लिए आपके सामने इन कारणों का उल्लेख कर रहे हैं।

अल-बहूती रहिमहुल्लाह ने “कश्शाफ़ अल-क़िना’” (2/5) में  कहा :

“(दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ने का अध्याय) … ज़ुहर और अस्र की नमाज़ को उनमें से किसी एक के समय में, तथा मग़रिब और इशा की नमाज़ को उनमें से किसी एक के समय में एक साथ पढ़ना जायज़ है। यही चार नमाज़ें हैं जो एक साथ पढ़ी जाती हैं : ज़ुहर और अस्र, तथा मगरिब और इशा, इन दोनों में से किसी एक के समय में; या तो पहली नमाज़ के समय में, जिसे “जमा तक़दीम” कहते हैं, या दूसरी नमाज़ के समय में, जिसे “जमा ताख़ीर” कहते हैं।

ऐसा आठ स्थितियों में किया जा सकता है :

पहली स्थिति : उनमें से एक : (उस यात्री के लिए जो अपनी नमाज़ें क़स्र करता है) अर्थात् : जिसके लिए नमाज़ें क़स्र करना जायज़ है, इस प्रकार कि उसकी यात्रा न तो मक्रूह (नापसंदीदा) हो और न ही हराम (निषिद्ध) हो।

दूसरी स्थिति : (ऐसे बीमार व्यक्ति के लिए), जिसको इसे त्यागने (यानी नमाज़ों को एक साथ न पढ़ने) से कठिनाई और कमज़ोरी का सामना करना पड़ता हो। जबकि यह साबित हो चुका है कि उस महिला के लिए नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ है जो इस्तिहाज़ा (अनियमित रक्तस्राव) से पीड़ित है, जो एक प्रकार की बीमारी है। इमाम अहमद ने यह तर्क दिया है कि बीमारी में यात्रा से ज़्यादा कठिनाई होती है। उन्होंने सूरज डूबने के बाद सिंघी लगवाई, फिर रात का खाना खाया, फिर उन्होंने (मग़रिब और इशा की) नमाज़ों को एक साथ पढ़ा।

तीसरी स्थिति : (स्तनपान कराने वाली महिला के लिए अत्यधिक अशुद्धता की कठिनाई के कारण) इसका अर्थ यह है कि उसका हर नमाज़ के लिए खुद को शुद्ध करना (तहारत हासिल करना) कठिन है। अबुल-मआली रहिमहुल्लाह ने कहा : वह एक बीमार व्यक्ति की तरह है।

चौथी स्थिति : उस व्यक्ति के लिए जो खुद को पानी से शुद्ध करने या हर नमाज़ के लिए तयम्मुम करने में असमर्थ है। क्योंकि यात्री और बीमार के लिए कठिनाई के कारण दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ना अनुमेय है, और वह व्यक्ति जो हर नमाज़ के लिए खुद को शुद्ध करने में असमर्थ है उन दोनों के अर्थ में है।

पाँचवी स्थिति : जिसकी ओर उन्होंने अपने इस कथन से संकेत किया है : ‘‘या जो व्यक्ति समय का पता लगाने में असमर्थ है, जैसे कि वह व्यक्ति जो अंधा है और जो भूमिगत है, (जिसकी ओर अहमद ने इशारा किया) उन्होंने अर-रिआयह में इसका उल्लेख किया है, और अल-इनसाफ में इसी तक सीमित रखा है।

छठी स्थिति : इस्तिहाज़ा से पीड़ित महिला और इस तरह की अन्य बीमारी से पीड़ित व्यक्ति, जैसे कि वह व्यक्ति जो सलसुल-बौल (मूत्र असंयमिता- एक ऐसी स्थिति जिसमें अनैच्छिक रूप से पेशाब का रिसाव होता रहता है), या लगातार मज़ी निकलने (डिस्चार्ज), या लगातार नाक से खून बहने और इसी तरह की अन्य समस्याओं से पीड़ित है। इसका प्रमाण हम्ना रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि जब उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इस्तिहाज़ा के बारे में प्रश्न किया, तो आपने फरमाया : “यदि तुम ऐसा कर सकती हो कि ज़ुहर की नमाज़ को विलंब कर दो और अस्र की नमाज़ को पहले कर दो, फिर स्नान करके ज़ुहर और अस्र की नमाज़ एक साथ पढ़ो, फिर इसी तरह मग़रिब की नमाज़ को विलंब कर दो और इशा की नमाज़ को प्रथम समय में कर दो, फिर गुस्ल करो और दोनों नमाज़ें एक साथ पढ़ो ; तो फिर ऐसा ही करो।” इसे अहमद, अबू दाऊद और तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है और तिर्मिज़ी ने इसे सहीह कहा है।

जो व्यक्ति मूत्र असंयमिता और इस तरह की बीमारी से पीड़ित है, वह भी इसी हुक्म के अंतर्गत आता है।

सातवीं और आठवीं स्थिति :

वह व्यक्ति जिसके पास कोई ऐसा काम हो या कोई ऐसा बहाना हो जो जुमा और जमाअत की नमाज़ छोड़ने को अनुमेय करता हो, जैसे कि वह व्यक्ति जिसे दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ना आदि त्यागने से अपनी जान या अपने परिवार या अपने धन के प्रति डर हो, या अपनी आवश्यक आजीविका को नुकसान पहुँचने का खतरा हो।

उपर्युक्त बहाने (कारण) ज़ुहर और अस्र की नमाज़ों को एक साथ, तथा गम़रिब और इशा की नमाज़ों को एक साथ पढ़ने को अनुमेय करते हैं।

जबकि, कुछ बहाने (कारण) ऐसे हैं जो विशेष रूप से मग़रिब और इशा की नमाज़ों को एक साथ पढ़ने को जायज़ बनाते हैं, और वे छह हैं, जिन्हें उन्होंने इस प्रकार बयान किया है :

“बारिश के कारण कपड़े भीगने, या जूते या शरीर भीगने और उसके साथ कष्ट होने की स्थिति में मग़रिब और इशा की नमाज़ को एक साथ पढ़ना जायज़ है। इमाम बुखारी ने अपने इस्नाद (संचरण की श्रृंखला) के साथ रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक बरसात की रात में मग़रिब और इशा की नमाज़ को एक साथ पढ़ा। तथा अबू बक्र, उमर और उसमान रज़ियल्लाहु अन्हुम ने भी ऐसा ही किया। हमारे मत के अनुसार, बूंदाबांदी (फुहार), या हल्की बारिश के कारण जो कपड़े नहीं भिगोती, दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ नहीं है, क्योंकि इसमें कष्ट नहीं पाया जाता।

बर्फ़ और ओले पड़ने की स्थिति में मगरिब और इशा की नमाज़ को एक साथ पढ़ना जायज़ है, क्योंकि वे भी बारिश ही के हुक्म के अंतर्गत आते हैं, लेकिन ज़ुहर और अस्र की नमाज़ के बारे में ऐसा करना जायज़ नहीं।

तथा ‘’बर्फ जमने’’ के कारण मगरिब और इशा की नमाज़ एक साथ अदा करना जायज़ है, क्योंकि यह अत्यधिक ठंड के कारण होता है। तथा कीचड़ और तेज़ ठंडी हवा के कारण भी। अहमद रहिमहुल्लाह ने अल-मयमूनी की रिवायत में कहा : ‘‘इब्ने उमर ठंडी रात में नमाज़ों को इकट्ठा करते थे।’’ एक से अधिक ने यह शब्द जोड़ा है : “रात में”, जबकि “अल-मज़हब”, “अल-मुस्तौइब” और “अल-काफ़ी” में यह वृद्धि है : “अगर अंधेरा होता।” अल-काज़ी ने कहा : अगर ठंड के कारण जमाअत छोड़ने का उल्लेख हुआ है, तो इसमें कीचड़ के कारण ऐसा करने का संकेत है। क्योंकि ठंड से होने वाला कष्ट कीचड़ से होने वाले कष्ट से बढ़कर नहीं है। इसका संकेत इब्ने  अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा की इस रिवायत से मिलता है कि ‘नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मदीना में बिना किसी डर या बारिश के दो नमाज़ों को एक साथ अदा किया।’ और कोई बीमारी न होने की स्थिति में इससे कीचड़ मुराद लेने के अलावा कोई औचित्य नहीं है। काज़ी ने कहा : और यह (यानी कीचड़ मुराद लेना) कोई भी उज़्र (बहाना) मुराद न लेने से, या निरस्तीकरण मुराद लेने से बेहतर है। क्योंकि उससे कोई लाभप्रद अर्थ मुराद लिया जाएगा। इसलिए इन बहानों के साथ दो नमाज़ों को इकट्ठा करके पढ़ना जायज़ है। यहाँ तक कि उस व्यक्ति के लिए भी जो अपने घर में नमाज़ पढ़ता है, या जो ऐसी मस्जिद में नमाज़ पढ़ता है जिसका रास्ता आर्केड के नीचे है, तथा मस्जिद में रहने वाले व्यक्ति के लिए भी, और इसी तरह के अन्य लोगों के लिए, जैसे कि वह व्यक्ति जिसके घर और मस्जिद के बीच सिर्फ़ कुछ कदमों की दूसरी है। भले ही उसे थोड़ा-सा ही कष्ट पहुँचे। क्योंकि आम रियायत के मामले में कठिनाई की उपस्थिति और अनुपस्थिति बराबर है, जैसे कि सफ़र (के मामले में इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि कठिनाई मौजूद है या नहीं)। उक्त बहाने केवल मगरिब और इशा की नमाज़ को एक साथ पढ़ने तक ही सीमित हैं; क्योंकि यह केवल उन दोनों के बारे में ही वर्णित है। तथा उन दोनों में होने वाली कठिनाई अधिक है क्योंकि वे दोनों नमाज़ें अंधेरे में पढ़ी जाती हैं। और सफ़र की कठिनाई चलने के लिए और साथियों के बिछड़ने (के डर) के कारण होती है। जबकि यहाँ मामला उसके विपरीत है।” संक्षेप में उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कष्ट पाए जाने की स्थिति में इन बहानों (कारणों) के आधार पर ज़ुहर और अस्र की नमाज़ों को भी एक साथ पढ़ना प्रबल क़रार दिया है।

आप रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“इस मुद्दे के बारे में सही दृष्टिकोण यह है कि : इन बहानों (कारणों) के आधार पर ज़ुहर और अस्र की नमाज़ो को एक साथ पढ़ना जायज़ है, जिस तरह कि मगरिब और इशा की नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ है। और इसका कारण कठिनाई है। अतः अगर रात या दिन में कभी भी कठिनाई पाई जाए, तो दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ है।” “अश-शर्ह अल-मुम्ते’” (4/393)

तथा आप रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“अगर ठंड बहुत कड़ाके की हो, साथ ही ऐसी हवा चल रही हो जो लोगों को कष्ट पहुँचाती हो, तो इनसान के लिए ज़ुहर और अस्र की नमाज़ को, तथा मगरिब और इशा की नमाज़ को एक साथ पढ़ना जायज़ है, क्योंकि सहीह मुस्लिम में अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से साबित है कि : “नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मदीना में बिना किसी डर या बारिश के दो नमाज़ें एक साथ पढ़ीं। लोगों ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से पूछा : इसके पीछे क्या उद्देश्य था? उन्होंने कहा : आप चाहते थे कि अपनी उम्मत को कठिनाई में न डालें।” यह दर्शाता है कि दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ने की वैधता की हिकमत मुसलमानों से कठिनाई को दूर करना है, अन्यथा दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ नहीं है। ठंड की स्थिति में कठिनाई तभी होती है जब उसके साथ ठंडी हवा भी चल रही हो। यदि हवा न चल रही हो, तो व्यक्ति कई कपड़े पहनकर खुद को ठंड से बचा सकता है और उसे उससे कष्ट नहीं पहुँचेगा। इसलिए अगर कोई प्रश्न करने वाला हमसे पूछे : क्या केवल भीषण ठंड के कारण नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ है? तो हम कहेंगे : यह जायज़ नहीं है, सिवाय इस शर्त पर कि उसके साथ ठंडी हवा चल रही हो जो लोगों को नुकसान पहुँचाए, या यदि उसके साथ बर्फ गिर रही हो, क्योंकि जब बर्फ़ गिरती है तो निःसंदेह वह नुकसान पहुँचाती है। इसलिए उस स्थिति में नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ है। लेकिन जहाँ तक ​​केवल ठंड की बात है, तो यह दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ने को जायज़ ठहराने का कोई (वैध) बहाना नहीं है। अतः जो कोई बिना किसी शरई उज़्र (वैध कारण) के दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ता है, तो वह पाप करने वाला है और जिस नमाज़ को उसने पहली नमाज़ के साथ मिलाया है वह नमाज़ सही नहीं है, और उसकी गिनती नहीं की जाएगी; बल्कि उसे वह (दूसरी नमाज़) दोहराना पड़ेगी। अगर वह पहली नमाज़ को दूसरी नमाज़ के समय में एक साथ पढ़ता है, तो उसने अपनी पहली नमाज़ उसके समय पर नहीं पढ़ी, और ऐसा करके उसने पाप किया है।

मैंने इस मुद्दे पर इसलिए ध्यान आकर्षित करना चाहा, क्योंकि कुछ लोगों ने मुझे बताया कि उन्होंने दो रात पहले ठंड के कारण नमाज़ों को एक साथ पढ़ा था, जबकि हवा नहीं चल रही थी जो लोगों को नुकसान पहुँचाती। यह उनके लिए जायज़ नहीं है।” “लिक़ा अल-बाब अल-मफतूह” (18/1)

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर