हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
पहला :
नेकी के कार्यों और पूजा के कृत्यों का अध्याय बहुत व्यापक और विस्तृत है, जिन्हें गिनाने के लिए यह स्थान पर्याप्त नहीं है।
इस अध्याय में विस्तार के लिए सम्मानित प्रश्नकर्ता निम्नलिखित पुस्तकों को देख सकता है :
- इमाम मुंज़िरी की किताब "अत-तर्ग़ीब वत-तर्हीब" और उसके साथ ही शैख अल्बानी की पुस्तक ''सहीह अत-तर्ग़ीब वत-तर्हीब" और ''ज़ईफ अत-तर्ग़ीब वत-तर्हीब" ताकि हदीस के सहीह और ज़ईफ़ होने का पता चल सके।
- इमाम नववी की किताब "रियाज़ुस्सालिहीन", विशेष रूप से उसका अध्याय ''किताबुल फज़ाइल''।
दूसरा:
उपासना के दैनिक कार्यों में से कुछ निम्नलिखित हैं : पांच दैनिक नमाज़ें और उनके लिए वुज़ू करना, वुज़ू और नमाज़ के समय मिस्वाक का उपयोग करना, जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना, मुअक्कदा सुन्नतें, चाश्त के समय की नमाज़, क़ियामुल्लैल (तहज्जुद) और वित्र, सुबह और शाम के अज़्कार (दुआएं), दिन और रात के अज़्कार व दुआएं (घर में प्रवेश करते समय और उससे बाहर निकलते वक़्त, मस्जिद में प्रवेश करने और उससे बाहर निकलने के समय, शौचालय में प्रवेश और उससे बाहर निकलने पर, भोजन और पेय, फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद.. आदि) मुअज़्ज़िन के पीछे अज़ान के शब्दों को दोहराना।
साप्ताहिक उपासना के कार्यों में से कुछ ये हैं : जुमा (शुक्रवार) की नमाज़, जुमा (शुक्रवार) की रात या दिन को सूरतुल कह्फ़ पढ़ना, तथा जुमा की रात और दिन पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अधिक से अधिक दुरूद भेजना, सोमवार और जुमेरात (गुरुवार) को रोज़े रखना।
उपासना के मासिक कार्यों में से : प्रत्येक माह तीन दिन के रोज़े रखना (और बेहतर यह है कि उन्हें अय्यामे बीज़ में रखा जाए, जो कि चाँद के महीने की 13, 14 और 15 तारीख हैं।)
उपासना के मौसमी या वार्षिक कार्यों में से ये हैं : रमज़ान के महीने का रोज़ा रखना, मस्जिद में जमाअत के साथ तरावीह की नमाज़ पढ़ना, ईदैन (ईदुल-फ़ित्र एवं ईदुल अज़्हा) की नमाज़, अल्लाह के घर का हज्ज करना उस व्यक्ति के लिए जो वहाँ तक पहुँचने में सक्षम है, ज़कात उस व्यक्ति के लिए जिसमें उसके अनिवार्य होने की शर्तें पाई जाती हैं, रमज़ान के अंतिम दहे का एतिकाफ़ करना, शव्वाल के छः दिन के रोज़े रखना, आशूरा (दसवीं मुहर्रम) और उससे एक दिन पहले या एक दिन बाद का रोज़ा रखना, अरफा के दिन का रोज़ा रखना, ज़ुल-हिज्जा के प्रथम दस दिनों में अधिक से अधिक अच्छे कार्य करना।
तथा कुछ कार्य ऐसे हैं जो किसी समय के साथ संबंधित नहीं हैं, तो वे हर समय और हर वक़्त धर्मसंगत हैं, उनमें से कुछ हृदय के कार्य हैं औऱ कुछ शारीरिक कार्य हैं। चुनाँचे उनमें सेः कराहत के समय के अलावा में सामान्य रूप से स्वैच्छि नमाज़ पढ़ना है, तथा सामान्य रूप से स्वैच्छिक रोज़ा रखना, उम्रा करना, अल्लाह का ज़िक्र, क़ुरआन की तिलावत, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजना, दुआ व इस्तिग़फ़ार करना, माता-पिता के साथ सद्व्यवहार, रिश्तेदारों के साथ अच्छा संबंध रखना, दान, मुसलमानों में सलाम को सर्वसामान्य करना, सद्व्यवहार, ज़ुबान की शुद्धता, अल्लाह से प्यार, उसका भय, उससे आशा रखना, उसपर तवक्कुल (भरोसा) करना, संतोष, विश्वास, निश्चितता, अल्लाह सर्वशक्तिमान की मदद मांगना।
तथा कुछ कार्य ऐसे हैं जो कारण वाले हैं, अतः वे उस समय धर्मसंगत होते हैं जब उनका कारण पाया जाए। उन्हीं में सेः बीमार की तीमारदारी करना, जनाज़े के पीछे चलना, जनाज़ा की नमाज़ पढ़ना, शोक प्रकट करना, छींकने वाले का जवाब देना, सलाम का उत्तर देना, निमंत्रण को स्वीकार करना, इस्तिखारा की नमाज़, तौबा की नमाज़, सूर्य तथा चाँद ग्रहण की नमाज़, बारिश मांगने की नमाज़, दो विवादित पक्षों के बीच संधि कराना, निगाहें नीची रखना, किसी को कष्ट व हानि पहुँचाने से उपेक्षा करना, कष्ट व कठिनाई और आपदा पर धैर्य करन. . . इत्यादि।
सलफ (पूर्वज) इस बात को पसंद करते थे कि वे एक दिन में चार इबादतों को इकट्ठा करें, और वे यह हैः रोज़ा, मिस्कीन (गरीब) को खाना खिलाना (दान), जनाज़े के पीछे जाना, रोगी की तीमारदारी करना। इसके बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान हैः ''जिस व्यक्ति में अंदर भी ये एकत्रित हो गईं वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा।'' इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 1028) ने रिवायत किया है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।