शनिवार 8 जुमादा-1 1446 - 9 नवंबर 2024
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क़ुरआन करीम के सभी शारीरिक और आध्यात्मिक रोगों का इलाज होने का प्रमाण

प्रश्न

आपने अपने एक फतवे में कहा है कि क़ुरआन में शारीरिक और आध्यात्मिक सभी बीमारियों का इलाज है। इसका क्या प्रमाण है? गंजेपन को ठीक करने के लिए क़ुरआन का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है? अल्लाह आपको अच्छा बलदा प्रदान करे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

पवित्र क़ुरआन शिफा (बीमारियों के लिए उपचार) है। जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया :

 وَنُنَزِّلُ مِنَ الْقُرْآنِ مَا هُوَ شِفَاءٌ وَرَحْمَةٌ لِلْمُؤْمِنِينَ وَلَا يَزِيدُ الظَّالِمِينَ إِلَّا خَسَارًا

[سورة الإسراء: 82]

“और हम क़ुरआन में से जो उतारते हैं, वह ईमान वालों के लिए शिफ़ा (आरोग्य) तथा दया है। और वह अत्याचारियों को घाटे ही में बढ़ाता है।” [सूरतुल-इसरा : 82]

इसमें शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की बीमारियाँ शामिल हैं। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खुद पर और अपने परिवार के बीमार व्यक्ति पर “अल-मुअव्विज़ात” [अल्लाह की शरण में देने वाली सूरतें, यानी सूरतुल-फलक़, सूरतुन्-नास और सूरतुल-इख़्लास] पढ़ते थे। यदि इससे लाभ नहीं होता, तो आप ऐसा नहीं करते।

मुस्लिम (हदीस संख्या : 2192) ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बीमार होते थे, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खुद पर अल-मुअव्विज़ात पढ़ते थे और खुद पर फूँक मारते थे। जब आपका दर्द बढ़ जाता था, तो मैं आपपर पढ़ती थी और आपके हाथ की बर्कत की आशा में आपके हाथ को आप पर फेरती थी।

तथा मुस्लिम (हदीस संख्या : 2192) ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ही से रिवायत किया है, वह कहती हैं : “जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के परिवार में से कोई बीमार पड़ जाता था, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल-मुअव्विज़ात पढ़कर उसपर फूंक मारते थे। परंतु जब आप उस बीमारी से ग्रस्त हुए जिसमें आपकी मृत्यु हुई, तो मैं आपपर पढ़कर फूँक मारती थी और आपके हाथ को आपपर फेरती थी, क्योंकि वह मेरे हाथ से अधिक बर्कत वाला था।”

इब्ने हिब्बान (हदीस संख्या : 6098) ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उस समय उनके पास प्रवेश किए जब एक महिला उनका इलाज कर रही थी या उनपर रुक़्यह (दम या झाड़-फूँक) कर रही थी, तो आपने फरमाया : “अल्लाह की किताब से उसका इलाज करो।”

इब्नुल-क़य्यिम रहिमहुल्लाह ने कहा :

“अल्लाह तआला ने फरमाया :

وَنُنَزِّلُ مِنَ الْقُرْآنِ مَا هُوَ شِفَاءٌ وَرَحْمَةٌ لِلْمُؤْمِنِينَ 

“और हम क़ुरआन में से जो उतारते हैं, वह ईमान वालों के लिए शिफ़ा (आरोग्य) तथा दया है।” [सूरतुल-इसरा : 82]

सही दृष्टिकोण यह है कि यहाँ “मिन” [‘अर्थात् से’] का शब्द पूरे क़ुरआन को संदर्भित करता है, न कि केवल इसके कुछ हिस्से को। तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :

 يَاأَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءَتْكُمْ مَوْعِظَةٌ مِنْ رَبِّكُمْ وَشِفَاءٌ لِمَا فِي الصُّدُورِ

“ऐ लोगो! निःसंदेह तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से बड़ी नसीहत और सीनों में जो कुछ (रोग) है उसके लिए पूर्णतया शिफ़ा आया है।” [यूनुस :57]

अतः क़ुरआन सभी हार्दिक और शारीरिक बीमारियों और इस दुनिया और परलोक की सभी बीमारियों के लिए पूर्ण उपचार है।

लेकिन हर कोई इसके माध्यम से उपचार प्राप्त करने के लिए योग्य होता है और न उसे इसका सुयोग मिलता है।

अगर बीमार व्यक्ति क़ुरआन से अच्छे तरीक़े से इलाज करता है और सच्चाई व ईमानदारी, ईमान, पूर्ण स्वीकृति और दृढ़ विश्वास के साथ अपनी बीमारी पर इसका इस्तेमाल करता है और उसकी शर्तों को पूरा करता है : तो बीमारी कभी उसके सामने नहीं टिक सकती।

बीमारी धरती और आसमान के रब के शब्दों के सामने कैसे टिक सकती है, जो अगर पहाड़ों पर उतरता, तो उन्हें तोड़ देता और अगर वह धरती पर उतरता, तो उसे रेज़ा-रेज़ा कर देता?

अतः दिल और शरीर की कोई बीमारी नहीं है, परंतु क़ुरआन में उसके उपचार, उसके कारण और उससे बचाव की रहनुमाई का मार्ग मौजूद है; उस व्यक्ति के लिए जिसे उसकी किताब की समझ प्रदान की गई है।” “ज़ादुल-मआद” (4/322) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा आप रहिमहुल्लाह ने ज़ादुल-मआद (4/22) में फरमाया :

“नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रोग का उपचार तीन प्रकार से करते थे :

पहला : प्राकृतिक औषधियों के साथ।

दूसरा : दिव्य औषधियों से।

तीसरा : दोनों मामलों के संयोजन से उपचार।” उद्धरण समाप्त हुआ।

फिर आप रहिमहुल्लाह ने (4/162) में कहा :

“अध्याय : बिच्छू के डंक मारे हुए व्यक्ति का सूरतुल-फ़ातिहा से रुक़्यह करने के बारे में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का मार्गदर्शन (तरीक़ा)

सहीह बुख़ारी एवं सहीह मुस्लिम में अबू सईद अल-खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से वर्णित है कि उन्होंने कहा :

“नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों (सहाबा) का एक समूह एक यात्रा पर निकला और यात्रा करते हुए उन्होंने अरब जनजातियों में से एक के पास पड़ाव डाला। उन्होंने उनसे आतिथ्य के लिए कहा, लेकिन उन्होंने उनका आतिथ्य-सत्कार करने से इनकार कर दिया। फिर ऐसा हुआ कि उस जनजाति के सरदार को डंक मार दिया गया, तो उन्होंने उसे राहत देने के लिए हर यत्न कर डाला, लेकिन उसे किसी चीज़ से लाभ नहीं मिलता!! फिर उनमें से कुछ ने कहा : यदि तुम इन लोगों के पास जाते जो यहाँ उतरे हैं, शायद उनमें से किसी के पास कुछ होॽ इसलिए वे उनके पास गए और कहा : ऐ लोगो, हमारे सरदार को डंक मार दिया गया है और हमने उसे राहत देने के लिए सब कुछ कर डाला लेकिन किसी चीज़ उसे लाभ नहीं हो रहा है, तो क्या तुम में से किसी के पास कोई चीज़ है? तो उनमें से एक ने कहा : हाँ, अल्लाह की क़सम! मैं रुक़्या (दम) करता हूँ। लेकिन हमने तुमसे मेहमाननवाज़ी के लिए अनुरोध किया, तो तुम लोगों ने हमारी मेहमाननवाज़ी नहीं की। इसलिए जब तक तुम हमारे लिए कोई मेहनताना निर्धारित न कर दो, मैं रुक़्या करने वाला नहीं हूँ। इसलिए उन्होंने बकरियों के एक रेवड़ पर सहमझौता कर लिया। फिर उन्होंने उस पर {अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल-आलमीन} [सरतुल-फ़ातिहा] पढ़कर फूँक मारना शुरू किया। तो वह तुरंत ठीक हो गया, जैसे कि उसे रस्सी खोलकर आज़ाद कर दिया गया हो। चुनाँचे वह उठकर चलने लगा और उसे कोई भी बीमारी नहीं थी। वह कहते हैं : फिर उन लोगों ने उन्हें वह पारिश्रमिक दिया जिस पर उन्होंने समझौता किया था। उन (सहाबा) में से कुछ ने कहा : इसे बाँट लो। तो जिसने रुक़्यह किया था उसने कहा : ऐसा न करो यहाँ तक कि हम अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आ जाएँ और आपको बताएँ कि क्या हुआ था और देखें कि वह हमें क्या आदेश देते हैं। इसलिए वे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और आपको बताया कि क्या हुआ था। तो आपने कहा : “तुम्हें कैसे पता चला कि यह रुक़्यह है?” फिर आपने फरमाया : “तुमने सही काम किया है, इस बाँट लो और अपने साथ मेरा भी हिस्सा लगाओ।”

तथा इब्ने माजा ने अपनी “सुनन” में अली रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : “सबसे अच्छी दवा क़ुरआन है।”

यह सर्वज्ञात है कि कुछ शब्दों के विशेष गुण और अनुभव सिद्ध लाभ होते हैं।

इसलिए आप सारे संसारों के पालनहार के शब्दों के बारे में क्या सोचते हैं, जिसकी श्रेष्ठता सभी शब्दों पर ऐसे ही है जैसे अल्लाह की श्रेष्ठता उसकी सृष्टि पर है, जो पूर्ण उपचार, लाभकारी सुरक्षा, मार्गदर्शक प्रकाश और सर्वव्यापी दया है, जिसे यदि किसी पहाड़ पर उतार दिया जाए, तो वह उसकी महानता और महिमा से चूर्ण-विचूर्ण हो जाएगा।

अल्लाह तआला ने फरमाया :

وَنُنَزِّلُ مِنَ الْقُرْآنِ مَا هُوَ شِفَاءٌ وَرَحْمَةٌ لِلْمُؤْمِنِينَ

[الإسراء: 82]

“और हम क़ुरआन में से जो उतारते हैं, वह ईमान वालों के लिए शिफ़ा (आरोग्य) तथा दया है।” [सूरतुल-इसरा : 82]

यहाँ “मिन” [अर्थात् : ‘से’]  का शब्द पूरे क़ुरआन को संदर्भित करता है, न कि केवल इसके कुछ हिस्से को। यह दो कथनों में से अधिक सही है, यह सर्वशक्तिमान अल्लाह के इस कथन की तरह है :

وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ مِنْهُمْ مَغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا

 [الفتح: 29]

“अल्लाह ने उनमें से उन लोगों से, जो ईमान लाए तथा उन्होंने अच्छे कर्म किए, बड़ी क्षमा तथा बहुत बड़े प्रतिफल का वादा किया है।” [सूरतुल-फ़त्ह : 29] और [यह ज्ञात है कि] वे सभी उन लोगों में से हैं जो ईमान लाए और अच्छे कर्म किए। तो फिर किताब के उद्घाटक (सूरतुल-फ़ातिहा) के बारे में क्या सोचते हैं, जिसके जैसा क़ुरआन या तौरात या इंजील या ज़बूर में नहीं उतारा गया? जिसमें अल्लाह की पुस्तकों के सभी अर्थ शामिल हैं, जिसमें सर्वशक्तिमान रब के मूल और व्यापक नामों : अल्लाह, अर-रब्ब (पालनहार) और अर-रहमान (अत्यंत दयालु) के उल्लेख, मरणोपरांत पुनर्जीवन की पुष्टि, तथा दोनों प्रकार के तौहीद : तौहीद अर-रुबूबिय्यह (ईश्वरीय प्रभुत्व की एकता) और तौहीद अल-उलूहिय्यह (पूज्यता की एकता) का उल्लेख, तथा इमदाद माँगने और मार्गदर्शन माँगने में अल्लाह की आवश्यकता और इसे केवल अल्लाह के लिए विशिष्ट करने के उल्लेख को शामिल है।”

यहाँ तक कि उन्होंने आगे कहा : “…मक्का में मेरे साथ एक समय ऐसा बीता है जब मैं बीमार पड़ गया, और मुझे डॉक्टर और दवा नहीं मिली, इसलिए मैं सूरतुल-फ़ातिहा से अपना इलाज करता करता था। मैं ज़मज़म का पानी लेता और उसपर कई बार सूरतुल-फ़ातिहा पढ़ता, फिर उसे पी लेता था। तो मैं इससे पूरी तरह ठीक हो गया। फिर मैं बहुत-सी बीमारियों के लिए ऐसा ही करने लगा और मुझे इससे बहुत फायदा होता था।” उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने कहा :

“अल्लाह महिमावान ने कोई बीमारी नहीं भेजी, परंतु उसने उसके लिए एक इलाज भेजा है। जो लोग इसे जानते हैं, वे इसे जानते हैं, और जो इसे नहीं जानते हैं, वे इसे नहीं जानते। तथा अल्लाह महिमावान ने अपने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर –  क़ुरआन और सुन्नत में से – जो कुछ भी अवतरित किया है, उसमें उन सभी चीजों के लिए इलाज बनाया है जिनसे लोग पीड़ित हैं, चाहे वे शारीरिक बीमारियाँ हों, या मानसिक और आध्यात्मिक। अल्लाह ने लोगों को इससे लाभ पहुँचाया है, और इसके माध्यम से इतनी अच्छाई और भलाई हासिल हुई है, जिसे सर्वशक्तिमान अल्लाह के अलावा कोई नहीं गिन सकता।” ”फतावा इब्ने बाज़ (3/453) से उद्धरण समाप्त हुआ।

दूसरा :

क़ुरआन से संवेदी (शारीरिक) रोगों का इलाज करने में जिन तरीक़ों को आज़माया और परखा गया है उनमें से एक : क़ुरआन की कुछ आयतों को कागज़ पर लिखना और उन्हें पानी में डालना और उस पानी को शिफा (आरोग्य) के लिए इस्तेमाल करना है :

इब्नुल-क़य्यिम रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“सलफ़ रहिमहुल्लाह के एक समूह ने क़ुरआन की कुछ आयतें लिखने और उन्हें (पानी में डालकर) पीने की रुख़्सत (रियायत) दी है और इसे उस शिफा (आरोग्य) में से क़रार दिया है जो अल्लाह ने क़ुरआन में रखी है।

इसके (अर्थात् कठिन प्रसव -डिस्टोकिया- के इलाज के) लिए एक और लिखाई यह है कि एक साफ बर्तन में ये आयतें लिखी जाएँ :

 إِذَا السَّمَاءُ انْشَقَّتْ * وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ * وَإِذَا الْأَرْضُ مُدَّتْ * وَأَلْقَتْ مَا فِيهَا وَتَخَلَّتْ * وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ

“जब आकाश फट जाएगा। और अपने पालनहार के आदेश पर कान लगाएगा और यही उसके योग्य है। तथा जब धरती फैला दी जाएगी। और जो कुछ उसके भीतर है, उसे निकाल बाहर फेंक देगी और खाली हो जाएगी। और अपने पालनहार के आदेश पर कान लगाएगी और यही उसके योग्य है।” [सूरतुल-इंशिक़ाक़ : 1-5]

फिर गर्भवती महिला उसमें से कुछ पी लेगी और उसमें से कुछ उसके पेट पर छिड़क दिया जाएगा।

नकसीर (नाक से खून बहने) के इलाज के लिए लिखाई : शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह रोगी के माथे पर यह आयत लिखते थे :

وَقِيلَ يَا أَرْضُ ابْلَعِي مَاءَكِ وَيَا سَمَاءُ أَقْلِعِي وَغِيضَ الْمَاءُ وَقُضِيَ الْأَمْرُ وَاسْتَوَتْ عَلَى الْجُودِيِّ

“और कहा गया : ऐ धरती! अपना पानी निगल जा और ऐ आकाश! थम जा और पानी उतर गया और आदेश पूरा कर दिया गया और नाव ‘जूदी’ पर ठहर गई और कहा गया कि अत्याचारियों के लिए (अल्लाह की दया से) दूरी है।” [सूरत हूद : 44]

तथा मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना : मैंने इसे एक से अधिक लोगों के लिए लिखा, और वे ठीक हो गए। तथा उन्होंने कहा : इसे नकसीर से पीड़ित व्यक्ति के खून से लिखना जायज़ नहीं है, जैसा कि अज्ञानी लोग करते हैं, क्योंकि खून अशुद्ध (नापाक) है, इसलिए उससे अल्लाह तआला के शब्दों को लिखना जायज़ नहीं है।

दाँत दर्द के इलाज के लिए लिखाई : जिस गाल की ओर के दाँत दर्द कर रहे हैं उस (गाल) पर यह लिखना चाहिए : “बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर्रहीम,

قُلْ هُوَ الَّذِي أَنْشَأَكُمْ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ قَلِيلًا مَا تَشْكُرُونَ

“अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान, बेहद दयालु है। “आप कह दें : वही है जिसने तुम्हें पैदा किया तथा तुम्हारे लिए कान तथा आँखें और दिल बनाए। तुम बहुत कम आभार प्रकट करते हो।” [सूरतुल-मुल्क : 23] और यदि चाहे, तो यह लिखे :

  وَلَهُ مَا سَكَنَ فِي اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ

“तथा उसी (अल्लाह) का है, जो कुछ रात और दिन में बस रहा है और वह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।” [सूरतुल-अनआम : 13]

फोड़े के इलाज के लिए लेखन : उस पर यह लिखा जाएगा:

وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الْجِبَالِ فَقُلْ يَنْسِفُهَا رَبِّي نَسْفًا * فَيَذَرُهَا قَاعًا صَفْصَفًا * لَا تَرَى فِيهَا عِوَجًا وَلَا أَمْتًا

“वे आपसे पहाड़ों के विषय में पूछते हैं। आप कह दें कि मेरा पालनहार उन्हें उड़ाकर तितर-बितर कर देगा। फिर धरती को एक समतल मैदान बनाकर छोड़ेगा। तुम उसमें कोई टेढ़ापन और नीच-ऊँच नहीं देखोगे।” [सूरत ता-हा : 105-107]” “ज़ादुल-मआद” (4/327-329) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तीसरा :

हमें क़ुरआन से गंजेपन का कोई इलाज नहीं मिला। लेकिन मामला जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि : (समुचित) क़ुरआन शिफा (रोगों का निवारण एवं उपचार) है, यदि यक़ीन, दृढ़ संकल्प और वास्तविक रूप से अल्लाह की ओर शरण लेना पाया जाए। फिर यह बात सर्वज्ञात है कि शिफा (रोग से मुक्ति) सारे संसारों के पालनहार अल्लाह की ओर से, और उसकी इच्छा और उसकी नियति से ही मिलती है, जैसा कि उन सभी भौतिक दवाओं के साथ होता है जिनसे लोग बीमारी का इलाज करते हैं। कितने ही लोग हैं जो भौतिक दवा से बीमारी का इलाज करते हैं, जिसे उनके चिकित्सा विज्ञान के सबसे जानकार व्यक्ति के द्वारा लिखा जाता है, फिर इससे उसे कोई शिफ़ा नहीं मिलती? तो क्या यह इस दवा को उपचार का कारण बनने से रोकता है, या क्या इसके कारण डॉक्टर के ज्ञान पर सवाल खड़ा किया जाएगा?!

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर