हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
तरावीह की नमाज़ सुन्नते मुअक्कदह है, और महिलाओं के लिए रात की नमाज़ (क़ियामुल्लैल) अपने घरों में अदा करना बेहतर है, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "अपनी महिलाओं को मस्जिद में जाने से न रोको, जबकि उनके घर उनके लिए बेहतर हैं।" इसे अबू दाऊद ने अपनी सुनन में “बाब मा जाआ फी खुरूजिन-निसा इलल-मस्जिद : बाब अत-तश्दीद फी ज़ालिक” के अंतर्गत रिवायत किया है, तथा वह ‘सहीहुल जामे’ में (हदीस संख्या : 7458) के तहत वर्णित है।
बल्कि उसकी नमाज़ जितना ही अधिक छिपी हुई और अधिक निजी जगह में होगी, उतना ही बेहतर है। जैसा कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : “एक महिला का अपने घर (बेडरूम) में नमाज़ पढ़ना उसके अपने आंगन में नमाज़ पढ़ने से बेहतर है, और उसका अपने अंदर की कोठरी में नमाज़ पढ़ना उसके अपने घर (बेडरूम) में नमाज़ पढ़ने से बेहतर है।” इसे अबू दाऊद ने अपनी सुनन में ‘किताबुस-सलात, बाब मा जाआ फी खुरूजिन-निसा इलल-मस्जिद’ के अंतर्गत रिवायत किया है, तथा वह ‘सहीहुल जामे’ में (हदीस संख्या : 3833) के तहत वर्णित है।
तथा अबू हुमैद अस-साइदी की पत्नी उम्मे हुमैद से वर्णित है कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आईं और कहा: हे अल्लाह के रसूल, मैं आपके साथ नमाज़ पढ़ना पसंद करती हूँ। आपने फरमाया : “मुझे पता है कि तुम मेरे साथ नमाज़ पढ़ना पसंद करती हो, लेकिन तुम्हारा अपने घर में नमाज़ पढ़ना तुम्हारे अपने आँगन में नमाज़ पढ़ने से बेहतर है, और तुम्हारा अपने घर के आंगन में नमाज़ पढ़ना तुम्हारे अपने सदन में नमाज़ पढ़ने से बेहतर है, और तुम्हारा अपने सदन में नमाज़ पढ़ना तुम्हारे अपनी क़ौम की मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से बेहतर है, और तुम्हारा अपनी क़ौम की मस्जिद में नमाज़ पढ़ना मेरी मस्जिद में नमाज़ अदा करने की तुलना में तुम्हारे लिए बेहतर है।” वर्णनकर्ता कहते हैं: चुनाँचे उन्होंने आदेश दिया कि उनके घर के सबसे अंदर और सबसे अंधेरे हिस्से में उनके लिए एक नमाज़-स्थल बनाया जाए और वह हमेशा वहीं नमाज़ पढ़ती रहीं यहाँ तक कि वह अल्लाह को प्यारी हो गईं। इसे इमाम अहमद ने रिवायत किया है और इसकी इस्नाद के लोग भरोसेमंद हैं।
लेकिन यह तथ्य कि महिलाओं के लिए घर पर नमाज़ पढ़ना बेहतर है, इसका मतलब यह नहीं है कि महिलाओं को मस्जिद में जाने की अनुमति नहीं है, जैसा कि अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस में है कि उन्होंने कहा : "मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह कहते हुए सुना : “अपनी महिलाओं को मस्जिद में जाने से न रोको जब वे तुमसे इसकी अनुमति मांगें।” वह कहते हैं कि इस बात पर बिलाल बिन अब्दुल्लाह ने कहाः अल्लाह की क़सम! हम उन्हें अवश्य रोकेंगे। तो अब्दुल्लाह ने उनकी ओर रुख किया और उन्हें इस तरह बुरा-भला कहा कि मैंने उन्हें इस तरह बुरा-भला कहते हुए कभी नहीं सुना। और कहने लगेः मैं तुम्हें अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस बता रहा हूँ, और तुम कह रहे हो कि अल्लाह की क़सम! हम उन्हें अवश्य रोकेंगे।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 667) ने रिवायत किया है।
लेकिन महिला के लिए मस्जिद में जाने की अनुमति निम्न शर्तों के अनुसार है :
(१) उसे पूरा हिजाब पहनना चाहिए।
(२) वह बिना इत्र (सुगंध) लगाए बाहर निकले।
(३) उसे अपने पति की अनुमति होनी चाहिए।
तथा उसके बाहर जाने में कोई अन्य निषिद्ध कार्य शामिल नहीं होना चाहिए, जैसे कि एक गैर-मह्रम ड्राइवर के साथ कार में अकेले रहना आदि।
यदि कोई महिला उपर्युक्त शर्तों में से किसी चीज़ का उल्लंघन करती है, तो उसके पति या अभिभावक को उसे जाने से रोकने का अधिकार है, बल्कि उसके लिए ऐसा करना अनिवार्य है।
मैंने अपने शैख (गुरुजी) आदरणीय शैख अब्दुल अज़ीज़ से तरावीह की नमाज़ के बारे में पूछा कि क्या विशेष रूप से महिला के लिए मस्जिद में तरावीह की नमाज़ पढ़ना बेहतर है, तो उन्होंने नहीं में जवाब दिया और यह कि महिला के लिए अपने घर में नमाज़ पढ़ना बेहतर होने के बारे में वर्णित हदीसें सामान्य हैं जिनमें तरावीह और अन्य सभी नमाज़ें शामिल हैं। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक जानता है।
हम अल्लाह से अपने लिए और इपने मुसलमान भाइयों के लिए निष्ठा और स्वीकृति के लिए प्रश्न करते हैं, और यह कि वह हमारे कार्य को ऐसा बनाए जिससे वह प्यार करता और प्रसन्न होता है, तथा अल्लाह हमारे पैगंबर मुहम्मद पर दया व शांति अवतरित करे।
इस्लाम प्रश्न और उत्तर