हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।ऐ पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नगरी में आने वालो, आपका आना अच्छा हो, आपको महान लाभ प्राप्त हो और तैबा की गनरी में आपका ठहरना सुगम हो, अल्लाह तआला आपके अच्छे कामों को स्वीकार करे, और आपकी अच्छी आशाओं को साकार करे, पैगंबर की नगरी अप्रवास (हिज्रत) और समर्थन के घर और प्रतिष्ठित सहाबा के अप्रवास स्थान और समर्थकों (अनसार) के घर में आपका स्वागत है।
जो व्यक्ति रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मस्जिद की ज़ियारत करना चाहता है उसके लिए ये कुछ निर्देश हैं :
1- ऐ ताबा में आगमन करनेवालो ! आप लोग एक ऐसे नगर में हैं जो मक्का के बाद सबसे बेहतरीन स्थान, और सबसे प्रतिष्ठित जगह है, अतः उसके हक़ को पहचानो, उसका आदर व सम्मान करो, उसकी पवित्रता का ख्याल रखो, उसके अंदर सबसे अच्छे व्यवहार और आचार का प्रदर्शन करो। यह बात जान लो कि अल्लाह तआला ने उस व्यक्ति को बड़े कठोर यातना की धमकी दी है जो उसमें बिदअतें पैदा करता है, चुनाँचे अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हुए कहते हैं कि आप ने फरमाया: “मदीना हरम (हुर्मत और सम्मान वाला) है, जिसने इसके अन्दर कोई बिद्अत निकाली या किसी बिद्अती को शरण दिया, उस पर अल्लाह की, फरिश्तों की और समस्त लोगों की धिक्कार है, अल्लाह तआला क़ियामत के दिन उसका कोई फर्ज़ और नफ्ली काम स्वीकार नहीं करेगा।” इस हदीस को इमाम बुखारी (हदीस संख्या : 1867) और इमाम मुस्लिम (हदीस संख्या : 1370) ने रिवायत किया है और हदीस के शब्द मुस्लिम के हैं।
अतः जिस व्यक्ति ने इसमें कोई पाप किया या पाप करने वाले को शरण दिया, उसे अपने साथ मिला लिया और उसका समर्थन किया तो उसने अपने आपको अपमानजनक प्रकोप और सर्वसंसार के परमेश्वर के क्रोध से दोचार किया।
और सबसे बड़ा नवाचार यह है कि बिद्अतों का प्रदर्शन करके उसकी शुद्धता को भंग किया जाए, खुराफात और अंधविश्वासों के द्वारा उसकी पवित्रता को मलिन किया जाए, तथा बिद्अत पर आधारित लेखनों और शिर्क की किताबों और इस्लामी शरीयत के विरूद्ध नाना प्रकार के अवैध और निषिद्ध बातों के प्रकाशन के द्वारा उसकी पवित्र धरती को अपवित्र किया जाए, और बिदअतों को निकालने वाला और उसको शरण देनेवाला दोनों पाप के अंदर बराबर हैं।
2- मस्जिदे नबवी की ज़ियारत सुन्नतों में से एक सुन्नत है, अनिवार्य चीज़ों और कर्तव्यों में से नहीं है, तथा उसका हज्ज से कोई संबंध नहीं है और न ही वह उसके पूरकों में से है, और उसके संबंध को या नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र की ज़ियारत के संबंध को हज्ज के साथ साबित करने के बारे में जो हदीसें रिवायत की जाती हैं वह मनगढ़ंत और झूठ गढ़ी हुई बातों में से है, और जिसने अपनी मदीना की यात्रा से मस्जिद की ज़ियारत और उसमें नमाज़ पढ़ने का इरादा किया तो उसका क़सद नेक है और उसकी कोशिश क़ाबिले क़द्र (सराहनीय) है, और जिसने अपनी यात्रा के द्वारा केवल क़ब्रों की ज़ियारत और क़ब्रवालों से मदद मांगने का क़सद किया तो उसका क़सद निषेध है, और उसका काम घृणित है। चुनाँचे अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तीन मस्जिदों के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान के लिए (उनसे बरकत प्राप्त करने और उनमें नमाज़ पढ़ने के लिए) यात्रा न की जाएः मस्जिदे हराम, मेरी यह मस्जिद, और मस्जिदे अक़्सा।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1189) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1397) ने रिवायत किया है।
तथा जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हुमा अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आप ने फरमाया : “सबसे बेहतरीन स्थान जिसके लिए सवारी की जाती है वह मेरी मस्जिद और अल्लाह का पुराना घर (काबा) है।” इसे अहमद (3/350) ने उल्लेख किया है और अल्बानी ने अस-सिलसिला अस-सहीहा (हदीस संख्या : 1648) में सहीह कहा है।
3. मदीना की मस्जिद में नमाज़ पढ़ने का चाहे वह फर्ज़ हो या नफ्ल, विद्वानों के सबसे सहीह कथन के अनुसार कई गुना बदला मिलता है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “मेरी इस मस्जिद में एक नमाज़ उसके अलावा अन्य मस्जिदों में एक हज़ार नमाज़ से बेहतर है सिवाय मस्जिदुल हराम के।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1190) और मुस्लिम (हदीस संख्या :1394) ने रिवायत किया है।
परंतु घर के अंदर नफ्ल नमाज़ पढ़ना उसे मस्जिद में पढ़ने से अफज़ल है भले ही उसका कई गुना पुण्य है ; क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “सबसे अफज़ल नमाज़ आदमी का अपने घर के अंदर नमाज़ पढ़ना है सिवाय फर्ज़ नमाज़ के।” इसे बुखारी (हदीस संख्या: 731) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 781) ने रिवायत किया है।
4- ऐ इस महान मस्जिद की ज़ियारत करने वाले! इस बात को जान लो कि मस्जिदे नबवी के किसी हिस्से जैसे कि खंभों, या दीवारों, या दरवाज़ों, या मेहराबों, या मिंबर के द्वारा बरकत प्राप्त करना उसे छूकर या उसका चुंबन करके जायज़ नहीं है। इसी तरह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कमरे को छूकर या चुंबन करके या उस पर कपड़े को मसलकर बरकत प्राप्त करना जायज़ नहीं है, तथा उसका तवाफ करना भी जायज़ नहीं है। जिसने ऐसा कोई काम कर लिया है उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह तौबा करे और दुबारा ऐसा न करे।
5- मस्जिदे नबवी की जियारत करने वाले के लिए धर्मसंगत है कि वह रौज़ा शरीफ में दो रक्अत या जितना चाहे नफ्ल नमाज़ पढ़े क्योंकि उसके बारे में फज़ीलत साबित है, चुनाँचे अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते है कि आप ने फरमाया : “मेरे घर और मेरे मिंबर के बीच स्वर्ग की फुलवारियों में से एक फुलवारी है, और मेरा मिंबर मेरे हौज़ पर है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1196) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1391) ने रिवायत किया है।
तथा यज़ीद बिन अबी उबैद से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैं सलमह बिन अल-अकवह के साथ आता था तो वह मुसहफ के पास मौजूद खंभे के पास अर्थात रौज़ा शरीफ में नमाज़ पढ़ते थे, तो मैं ने कहा : ऐ अबू मुस्लिम! मैं आपको देखता हूँ कि आप इस खंभे के पास क़सद करके नमाज़ पढ़ते हैं ! तो उन्हों ने कहा : क्योंकि मैं ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा है कि आप उसके पास क़सद करके नमाज़ पढ़ते थे।” इसे बुख्खरी (हदीस संख्या : 502) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 509) ने रिवायत किया है।
रौज़ा में नमाज़ पढ़ने की लालसा लोगों को आघात पहुँचाने या कमज़ोरों को धक्का देने, या लोगों की गर्दने फलांगने को जायज़ नहीं ठहराती है।
6- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण करते हुए और उम्रा का पुण्य प्राप्त करने के लिए मदीना की ज़ियारत करने वाले और उसमें निवास करने वाले के लिए मस्जिद क़ुबा में नमाज़ पढ़ने के लिए जाना मुस्तहब है, चुनाँचे सहल बिन हुनैफ से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ जो आदमी (घर से) निकला यहाँ तक मस्जिद अर्थात क़ुबा की मस्जिद में आया। फिर वह उसमें नमाज़ पढ़ता है तो वह एक उम्रा के बराबर होगा।” इसे अहमद (3/487), और नसाई (हदीस संख्या : 699) ने उल्लेख किया है और अल्बानी ने सहीहुत तर्गीब (हदीस संख्या : 1188, 1181) में सहीह कहा है।
तथा इब्ने माजा की हदीस में है: ‘‘जिसने अपने घर में वुज़ू किया फिर मस्जिदे क़ुबा आया फिर उसमें कोई नमाज़ पढ़ी तो उसके लिए एक उम्रा का अज्र (पुण्य) है।” इसे इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1412) ने रिवायत किया है।
तथा सहीहैन में है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर शनिवार को पैदल चलकर या सवार होकर मस्जिदे क़ुबा आते थे और उसमें दो रकअत नमाज़ पढ़ते थे।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1191) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1399) ने रिवायत किया है।
7- ऐ सम्मानित ज़ियारत करने वाले, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मस्जिद और क़ुबा की मस्जिद के अलावा मदीना की मस्जिदों में से किसी अन्य की जियारत करना धर्मसंगत नहीं है, तथा ज़ियारत करने वाले और अन्य लोगों के लिए भलाई की आशा या उसके पास उपासना करने के लिए किसी निर्धारित स्थान का क़सद करना धर्मसंगत नहीं है जिसकी ज़ियारत के बारे में क़ुरआन या हदीस का काई प्रमण या सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम का अमल वर्णित नहीं है।
इसी प्रकार ऐसी जगहों या मस्जिदों को ढूंढ कर उसमें नमाज़ पढ़ने या उसके पास उपासना या दुआ करने के लिए क़सद करना धर्म संगत नहीं है जिसमें अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम या आपके अलावा सहाबा किराम ने नमाज़ पढ़ी है, जबकि आप ने उसका क़सद करने का आदेश नहीं दिया है और न ही उसकी ज़ियारत करने पर उभारा है, चुनाँचे मारूर बिन सुवैद रहिमहुल्लाह से वर्णित है कि उन्हों ने कहाः हम उमर बिन खत्ताब के साथ बाहर निकले, तो रास्ते में हमारे सामने एक मस्जिद पड़ी तो लोग दौड़कर उसमें नमाज़ पढ़ने लगे, इस पर उमर ने कहाः इन लोगों का क्या मामला है ॽ लोगों ने कहाः यह एक ऐसी मस्जिद है जिसमें अल्लह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नमाज़ पढ़ी है। तो उमर ने फरमायाः ऐ लोगो! तुम से पहले जो लोग थे वे इसी तरह की चीज़ों का पालन करने यहाँ तक कि उन्हें मंदिर बना लेने के कारण सर्वनाश हो गएए अतः जिसे उसके अंदर कोई नमाज़ पेश आ जाए, तो वह नमाज़ पढ़े और जिसे उसके अंदर कोई नमाज़ पेश न आए तो वह चलता बने।” इसे इब्ने अबी शैबा ने मुसन्नफ (हदीस संख्या : 7550) में उल्लेख किया है।
तथा जब उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु को सूचना मिली कि कुछ लोग उस पेड़ के पास आते हैं जिसके नीचे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बैअत की गई थी तो आप ने उसके बारे में आदेश दिया तो उसे काट दिया गया।” इसे इब्ने अबी शैबा ने मुसन्नफ (हदीस संख्या :7545) में उल्लेख किया है।
8- मस्जिदे नबवी की ज़ियारत करने वाले पुरूषों के लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र और आपके दोना साथियों अबू बक्र और उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की क़ब्रों की उन पर सलाम पढ़ने और उनके लिए दुआ करने के लिए जियारत करना धर्मसंगत और ऐच्छिक है, जहाँ तक महिलाओं का संबंध है तो उनके लिए विद्वानों के सबसे सही कथन के अनुसार क़ब्रों की ज़ियारत करना जायज़ नहीं है, क्योंकि अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3236) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 320) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1575) ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ब्रों की ज़ियारत करने वाली औरतों फर धिक्कार किया है, इसे अल्बानी ने अपनी किताब इस्लाहुल मसाजिद में सहीह कहा है।
तथा तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1056) ने अबू हुरैरा से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ब्रों की ज़ियारत करनेवालियों पर धिक्कार किया है।” तिर्मिज़ी ने कहा: यह हदीस हसन सहीह है, तथा इसे अहमद (2/337) और इब्ने माजा (हदीस संख्या :1574) ने भी उल्लेख किया है और अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 843) और मिशकातुल मसाबीह (हदीस संख्या: 1770) में हसन कहा है।
ज़ियारत का तरीक़ा यह है कि ज़ियारत करने वाला क़ब्र शरीफ के पास आए और उसकी ओर मुँह करे और कहे: अस्सलामों अलैका या रसूलल्लाह” फिर वह एक हाथ के बराबर अपने दाहिने ओर बढ़ जाए और अबू बक्र को सलाम करे और कहे: “अस्सलामो अलैका या अबा बक्र” फिर एक हाथ के बराबर अपने दाहिने तरफ और बढ़ जाए और उमर बिन खात्ताब पर सलाम पढ़ते हुए कहे : ‘‘अस्सलामो अलैका या उमर”।
9- तथा मदीना की ज़ियारत करने वाले पुरूषों के लिए धर्मसंगत है कि वह बक़ीउल ग़रक़द वालों और उहुद के शहीदों की उन पर सलाम पढ़ने और उनके लिए दुआ करने के लिए ज़ियारत करें, चुनाँचे बुरैदा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन्हें सिखाते थे कि जब वे क़ब्रिस्तान के लिए निकलें तो यह दुआ पढ़ें :
السلام عليكم أهل الديار من المؤمنين والمسلمين وإنا إن شاء الله بكم لاحقون ،نسأل الله لنا ولكم العافية
उच्चारणः “ अस्सलामो अलैकुम अह्लद्दियारे मिनलमोमिनीन वल- मुस्लिमीन, वइन्ना इन्-शा-अल्लाहो बिकुम लाहिक़ून, नस्अलुल्लाहा लना व-लकुमुल आफियह”
ऐ मोमिनों और मुसलमानों के घराने वालो! तुम पर सलाम (शान्ति) हो, इन-शा अल्लाह हम तुम से मिलने वाले हैं, अल्लाह हम में और तुम में से पहले जानेवालों और पीछे जानेवालों पर दया करेए हम अल्लाह तआला से अपने लिए और तुम्हारे लिए आफियत का प्रश्न करते हैं।इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 975, 974) में रिवायत किया है।
तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता है :
قُلِ ادْعُواْ الَّذِينَ زَعَمْتُم مّن دُونِهِ فَلاَ يَمْلِكُونَ كَشْفَ الضُّرّ عَنْكُمْ وَلاَ تَحْوِيلاً أُولَئِكَ الَّذِينَ يَدْعُونَ يَبْتَغُونَ إِلَى رَبّهِمُ الْوَسِيلَةَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ وَيَرْجُونَ رَحْمَتَهُ وَيَخَافُونَ عَذَابَهُ إِنَّ عَذَابَ رَبّكَ كَانَ مَحْذُورًا [الإسراء : 56-57]
“आप कह दीजिए कि तुम पुकारो उन लोगों को जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़ कर (पूज्य) समझते हो, तो वे तुमसे कष्ट (तकलीफ) दूर करने और उसे बदलने का अधिकार नहीं रखते हैं। वे लोग जिन्हें ये (मुशरिक) पुकारते हैं अपने पालनहार की ओर निकटता का साधन तलाश करते हैं कि उनमें से कौन (अल्लाह से) सबसे अधिक निकट है, और वे उसकी दया की आशा रखते हैं, और उसके अज़ाब से डरते हैं, निःसंदेह आपके पालनहार का अज़ाब डरने के लायक़ है।” (सूरतुल इस्रा : 56-57).