शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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मोज़ों पर मसह करने के बाद यदि उन्हें उतार दे तो क्या इससे उसकी तहारत (पवित्रता) नष्ट हो जायेगी ?

प्रश्न

यदि किसी वुज़ू करने वाले ने मोज़ों या जुर्राबों पर मसह किया फिर उन्हें निकाल दिया, तो क्या इसके कारण उसकी तहारत (वुज़ू) व्यर्थ हो जायेगी ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उलमा (विद्वानों) ने उस आदमी के हुक्म के बारे में मतभेद किया है जिसने वुज़ू किया और अपने दोनों मोज़ों पर मसह किया फिर उन्हें निकाल दिया।

कुछ उलमा ने कहा है : उसके लिए दोनों पैरों को धोना काफी है, और इसके द्वारा उसका वुज़ू संपूर्ण हो जायेगा। यह कथन कमज़ोर है, क्योंकि वु़ज़ू के अंदर मुवालात (निरंतरता) अनिवार्य है, अर्थात् वुज़ू के अंगों को धोने के बीच लंबा अंतर नहीं किया जायेगा, बल्कि उसे एक दूसरे के पीछे लगातार धोयेगा।

इसीलिए इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने "अल-मुग़नी" (1 / 367) में उल्लेख किया है कि यह कथन वुज़ू के अंदर मुवालात (निरंतरता) के अनिवार्य न होने पर आधारित है, हालांकि वह कथन कमज़ोर है।

तथा दूसरे लोगों का कहना है : इसके कारण उसका वुज़ू बातिल (व्यर्थ और अमान्य) हो जायेगा, और उसके ऊपर अनिवार्य है कि जब वह नमाज़ पढ़ने का इरादा करे तो पुनः वुज़ू करे। इन लोगों का तर्क यह है कि मसह को वुज़ू के स्थान पर रखा गया है, अतः जब मोज़ा हट गया तो पैरों की पवित्रता समाप्त हो गई, क्योंकि ऐसी अवस्था में न तो वह धुला हुआ है और न ही उस पर मसह किया गया है, और जब पैरों में पवित्रता नष्ट हो गयी तो पूरी पवित्रता ही नष्ट होगयी, क्योंकि पवित्रता अंशों में नहीं बट सकती है। इसी कथन को शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने अपनाया है, जैसाकि उनके "फतावा संग्रह" (10 / 113) में है।

जबकि दूसरे लोगों का कहना है कि : इस से पवित्रता बातिल नहीं होगी यहाँ तक कि उसका वुज़ू टूट जाये। सलफ (पूर्वजों) के एक समूह का यही कथन है जिनमें क़तादा, हसन बसरी और इब्ने अबी लैला आदि हैं, और इब्ने ह़ज़्म ने "अल मुहल्ला" (1 / 105) में इसी का समर्थन किया है और शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या और इब्नुल मुंज़िर ने इसी को अपनाया है, और नववी ने "अल-मजमूअ़" (1 / 557) में कहा है : यही पसंदीदा और सबसे ठोस है।

इन लोगों ने कई प्रमाणों से तर्क स्थापित किया है :

1- तहारत (पवित्रता या वुज़ू) हदस से ही नष्ट होती है, और मोज़े को निकाल देना कोई हदस (नापाकी) नहीं है।

2- मोज़े पर मसह करने वाले की तहारत शरई प्रमाण के द्वारा सिद्ध (साबित) है, और उसके व्यर्थ और नष्ट होने का हुक्म किसी अन्य शरई प्रमाण के द्वारा ही लगाया जा सकता है, और यहाँ कोई ऐसा प्रमाण नहीं है जो मोज़े निकालने से वुज़ू के टूटने पर तर्क स्थापित करता हो।

3- वुज़ू करने के बाद बाल मुंडाने पर क़यास (अनुमान) करना, क्योंकि जो व्यक्ति वुज़ू करे और अपने सिर का मसह करे, फिर अपने बाल मुंडा ले, तो उसकी तहारत (पवित्रता) बाक़ी रहती है, इसके कारण वह टूटती नहीं है, अतः इसी प्रकार वह व्यक्ति भी है जो मोज़ों पर मसह करे फिर उन्हें उतार दे।

आदरणीय शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं :

"यदि आदमी मोज़े या जुर्राब को उस पर मसह करने के बाद उतार दे तो इसके कारण उसकी तहारत (पवित्रता अर्थात वुज़ू) समाप्त नहीं होगी, अतः शुद्ध कथन के अनुसार वह जितनी भी चाहे नमाज़ पढ़ सकता है यहाँ तक कि उसका वुज़ू टूट जाये।"

"मजमूओ फतावा इब्ने उसैमीन" (11 / 193) से समाप्त हुआ।

देखिये: "अल-मुग़नी" (1 / 366 – 368), "अल-मुहल्ला" (1 / 105) "अल-इख्तियारात" (पृष्ठः 15) "अश्शर-हुल मुम्ते" (1 / 180)

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर