गुरुवार 27 जुमादा-1 1446 - 28 नवंबर 2024
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जिस व्यक्ति पर रमज़ान के रोज़े हों, जिनकी संख्या उसे याद न हो

प्रश्न

एक वर्ष मैंने उन दिनों के रोज़े नहीं रखे थे जिनमें मासिक धर्म आता है और अब तक मैं उन दिनों के रोज़े नहीं रख पाई हूँ। जबकि उसपर कई साल बीत चुके हैं। मैं अपने ऊपर अनिवार्य रोज़ों के क़र्ज़ को पूरा करना चाहती हूँ, लेकिन मैं नहीं जानती कि मेरे ऊपर अनिवार्य रोज़ों की संख्या कितनी है। ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिएॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है। तथा अल्लाह की दया और शांति अवतरित हो अल्लाह के रसूल पर। इसके बाद :

आपको तीन काम करने होंगे :

पहला काम :

1 – आप इस विलंब के लिए अल्लाह के समक्ष तौबा (पश्चाताप) करें, अतीत में हुई लापरवाही पर पछतावा करें और दोबारा ऐसा काम न करने का दृढ़ संकल्प करें। क्योंकि अल्लाह तआला फरमाता है :

 وَتُوبُوا إِلَى اللَّهِ جَمِيعاً أَيُّهَا الْمُؤْمِنُونَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ

النور : 31

"ऐ मोमिनो, तुम सब के सब अल्लाह की ओर तौबा (पश्चाताप) करो ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो।" (सूरतुन्नूर : 31)

यह विलंब एक पाप है, इसलिए इससे अल्लाह के समक्ष तौबा करना आवश्यक है।

दूसरा काम :

आप उन दिनों की संख्या में रोज़ा रखने में जल्दी करें, जिन्हें आप सबसे अधिक संभावित मानती हैं। अल्लाह किसी भी प्राणी पर उसकी शक्ति से अधिक बोझ नहीं डालता। अतः आपका जितने भी दिनों के रोज़े छोड़ने का गुमान है, आपको उतने दिनों का रोज़ा रखना चाहिए। यदि आपका गुमान यह है कि वे दस दिन हैं, तो आप दस दिनों के रोज़े रखें। अगर आपको लगता है कि वे इससे अधिक या कम हैं, तो आप अपने गुमान के अपेक्षानुसार रोज़े रखें। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :

 لا يُكَلِّفُ اللَّهُ نَفْساً إِلا وُسْعَهَا

البقرة : 286

“अल्लाह तआला किसी प्राणी पर उसके सामर्थ्य से अधिक भार नहीं डालता।'' (सूरतुल-बक़रा : 286)

तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान का कथन है :

 فَاتَّقُوا اللَّهَ مَا اسْتَطَعْتُمْ

التغابن :16

''अतएव अपनी यथाशक्ति अल्लाह से डरते रहो।'' (सूरतुत्-तग़ाबुन : 16)

तीसरा काम :

प्रत्येक दिन के बदले एक ग़रीब व्यक्ति को खाना खिलाएँ यदि आप ऐसा करने में सक्षम हैं, भले ही आप इसे पूरे का पूरा एक ही गरीब व्यक्ति को दे दें। लेकिन अगर आप ग़रीब हैं और खाना खिलाने की क्षमता नहीं रखती हैं, तो इस विषय में आपके ऊपर रोज़ा रखने और पश्चाताप करने के अलावा कुछ भी अनिवार्य नहीं है।

प्रत्येक दिन के बदले एक ग़रीब व्यक्ति को खाना खिलाने की अनिवार्य मात्रा अपने देश के मुख्य भोजन (खाद्य) का आधा “साअ” है, जो डेढ़ किलोग्राम के बराबर होता है, यह उसके लिए है जो इसे देने में सक्षम है। और अल्लाह ही तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) प्रदान करने वाला है।

स्रोत: स्रोत : मजमूओ फ़तावा व मक़ालत मुतनौविअह लि समाहतिश-शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह (15/342).