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मैं अक्सर सुनता हूँ कि लोगों पर आज़माइश के आने के पीछे बड़ी हिकमतें निहित होती हैं। तो वे हिकमतें क्या हैंॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जी हाँ, परीक्षण और आज़माइश में बड़ी हिकमतें निहित होती हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
1- सर्व संसार के पालनहार अल्लाह के लिए दासत्व एवं भक्ति की सिद्धि
क्योंकि बहुत से लोग अपनी इच्छा के गुलाम होते हैं, वास्तव में अल्लाह के गुलाम नहीं होते। वे प्रदर्शन तो यह करते हैं कि वे अल्लाह के गुलाम और बंदे हैं, लेकिन जब वे परीक्षण में डाले जाते हैं, तो अपनी एड़ियों के बल पलट जाते हैं। इस तरह वे दुनिया और आख़िरत दोनों का नुक़सान करते हैं, जो कि बहुत स्पष्ट घाटा है। अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَعْبُدُ اللَّهَ عَلَى حَرْفٍ فَإِنْ أَصَابَهُ خَيْرٌ اطْمَأَنَّ بِهِ وَإِنْ أَصَابَتْهُ فِتْنَةٌ انْقَلَبَ عَلَى وَجْهِهِ خَسِرَ الدُّنْيَا وَالْآخِرَةَ ذَلِكَ هُوَ الْخُسْرَانُ الْمُبِينُ الحج : 11
“कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो एक किनारे पर रहकर (यानी असमंजस और संदेहात्मक स्थिति में) अल्लाह की उपासना करते हैं। यदि उन्हें कोई (सांसारिक) लाभ पहुँचा तो उससे संतुष्ट हो गए और यदि उन्हें कोई आज़माइश पेश आ गई तो औंधा होकर पलट गए। इस प्रकार दुनिया और आख़िरत दोनों का घाटा किया। यही स्पष्ट घाटा है।” (सूरतुल हज्ज : 11)
2- परीक्षण विश्वासियों को पृथ्वी पर आधिपत्य प्रदान करने के लिए तैयार करना है
इमाम शाफ़ेई रहिमहुल्लाह से पूछा गया : इनमें क्या बेहतर है : धैर्य या परीक्षण या सशक्तिकरणॽ तो उन्होंने कहा : सशक्तिकरण (आधिपत्य) पैगंबरों का दर्जा (स्थान) है, और आधिपत्य परीक्षण के बाद ही प्राप्त होता है। यदि किसी व्यक्ति का परीक्षण किया जाता है, तो वह धैर्य से काम लेता है, और जब वह धैर्य से काम लेता है, तो उसे आधिपत्य प्रदान किया जाता है।
3- पापों का प्रायश्चित
तिर्मिज़ी ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : मोमिन पुरुष एवं स्त्री पर उनके प्राण, संतान और धन में आज़माइशें आती रहती हैं यहाँ तक कि जब वे (मरने के बाद) अल्लाह से मुलाक़ात करते हैं, तो उनपर कोई गुनाह नहीं होता।” इसे तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 2399) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने “अस-सिलसिला अस-सहीहा” (हदीस संख्या : 2280) में इसे सहीह कहा है।
अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंनें कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब अल्लाह तआला अपने किसी बंदे के साथ भलाई का इरादा करता है, तो उसे दुनिया ही में जल्द सज़ा दे देता है। तथा जब अल्लाह तआला अपने किसी बंदे के साथ बुराई का इरादा करता है, तो उसके पापों की सज़ा को रोके रखता है, यहाँ तक कि क़यामत के दिन उसे पूरी-पूरी सज़ा देता है।” इसे तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 2396) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “अस-सिलसिला अस-सहीहा” (हदीस संख्या : 1220) में इसे सहीह कहा है।
4- अज्र व सवाब की प्राप्ति और पदों में वृद्धि
मुस्लिम (हदीस संख्या : 2572) ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मोमिन को अगर एक काँटा लगता है या उससे अधिक कोई तकलीफ़ पहुँचती है, तो अल्लाह तआला उसकी वजह से उसका एक दर्जा बढ़ा देता है या उसका एक पाप मिटा देता है।”
5- आज़माइश (परीक्षण) खामियों, आत्म दोषों और अतीत की गलतियों के बारे में सोचने का अवसर प्रदान करती है।
क्योंकि अगर यह परीक्षण सज़ा के तौर पर है, तो कहाँ गलती हुई हैॽ
6- परीक्षण तौहीद (एकेश्वरवाद), अल्लाह तआला पर ईमान और तवक्कुल (भरोसा) का एक पाठ है
यह आपको व्यावहारिक रूप से स्वयं की सच्चाई से अवगत कराता है ताकि आपको बोध हो जाए कि आप एक कमजोर बंदा हैं, आपके पास अपने पालनहार की तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) के बिना न भलाई करने की ताकत है और न बुराई से बचने की शक्ति। अतः आप यथोचित उसी पर भरोसा करें और सच्चे अर्थों में उसी का सहारा लें। उस समय प्रतिष्ठा, अहंकार, घमंड, आत्म-प्रशंसा, अभिमान और लापरवाही – सब कुछ समाप्त हो जाएगा और आपको आभास होगा कि आप एक गरीब हैं जो अपने मालिक की शरण लेता है और एक कमज़ोर हैं जो सर्वशक्तिमान महिमावान का सहारा लेता है।
इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह कहते हैं :
“यदि महिमावान अल्लाह विपत्तियों और परीक्षणों की दवाओं के द्वारा अपने बंदों का उपचार न किया करता, तो वे निश्चय ही सरकशी, अत्याचार और उद्दंडता करते। अल्लाह तआला जब अपने बंदे के साथ भलाई चाहता है, तो उसे उसकी स्थिति के अनुसार विपत्ति और परीक्षण की दवा पिलाता है, जिसके द्वारा वह घातक बीमारियों को निकाल बाहर फेंकता है, यहाँ तक कि जब वह उसे विशुद्ध, स्वच्छ और साफ कर देता है : तो उसे दुनिया के सबसे सम्मानित रैंक अर्थात अपने दासत्व एवं भक्ति के लिए योग्य बना देता है, तथा आख़िरत के सर्वोच्च पुरस्कार यानी अपने दर्शन और अपने सामीप्य के लिए योग्य बना देता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“ज़ादुल-मआद” (4/195).
7- परीक्षण दिलों से आत्मानुराग (खुदपसंदी) को बाहर निकालता है और उन्हें अल्लाह के अधिक क़रीब कर देता है।
इब्ने हजर ने कहा : “अल्लाह का फरमान : وَيَوْم حُنَيْنٍ إِذْ أَعْجَبَتْكُمْ كَثْرَتكُمْ “और हुनैन (की लड़ाई) के दिन, जब तुम अपनी अधिक संख्या पर फूल गए।” (सूरतुत-तौबा : 25) यूनुस बिन बुकैर ने “ज़ियादातुल-मग़ाज़ी” में अर-रबी बिन अनस से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : एक आदमी ने हुनैन (की लड़ाई) के दिन कहा : “हम आज संख्या की कमी के कारण कभी पराजित नहीं होंगे। यह बात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नागवार लगी और फिर उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा..”
इब्नुल-क़ैयिम “ज़ादुल-मआद” (3/477) में कहते हैं :
“महिमावान अल्लाह की हिकमत की अपेक्षा हुई कि उसने मुसलमानों को उनकी बड़ी संख्या, शस्त्र की अधिकता और ताकत के बावजूद, पहले हार और पराजय की कड़वाहट का स्वाद चखाया, ताकि कुछ ऐसे लोगों के सिर को नीचा कर दे जो मक्का पर विजय के कारण गर्व का शिकार हो गए थे और उसके घर और उसके हरम में उस तरह प्रवेश नहीं किए थे, जिस तरह कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसमें अपने सिर को नीचे किए हुए अपने घोड़े पर झुके हुए प्रवेश किए थे, यहाँ तक कि आपकी ठुड्डी, अपने पालनहार के प्रति विनम्रता, उसकी महानता के प्रति समर्पण और उसकी शक्ति के प्रति नम्रता से, लगभग उसकी काठी को छू रही थी।” उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَلِيُمَحِّصَ اللّهُ الَّذِينَ آمَنُواْ وَيَمْحَقَ الْكَافِرِينَ آل عمران : 141
“और ताकि अल्लाह ईमानवालों को निखार दे और इनकार करनेवालों को मिटा दे।” (सूरत आल इमरान : १४१).
अल-क़ासिमी (4/239) ने कहा :
“अर्थात् ताकि उन्हें पापों से और दिलों के रोगों से विशुद्ध कर दे। इसी तरह इल्लाह ने उन्हें मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) से भी अलग कर दिया, तो वे उनसे उत्कृष्ट हो गए ..... फिर अल्लाह ने एक अन्य हिकमत का उल्लेख किया है, जो कि यह है : (وَيَمْحَقَ الْكَافِرِينَ) “ताकि वह इनकार करने वालों को मिटा दे।” अर्थात् उन्हें नष्ट कर दे। क्योंकि जब वे जीत जाएँगे और सफ़ल हो जाएँगे, तो वे सरकशी और अत्याचार करेंगे। इस तरह यह उनके पतन और विनाश का कारण होगा। क्योंकि अल्लाह तआला का नियम रहा है कि जब वह अपने दुश्मनों को नष्ट करना और मिटाना चाहता है, तो वह उनके लिए ऐसे कारण बना देता है जिनकी वजह से वे विनाश के हक़दार बन जाते हैं। जिनमें से, उनके कुफ़्र के बाद, सबसे बड़ा कारण उनका अत्याचार करना और उसके औलिया (क़रीबी दोस्तों) को कष्ट देने में उद्दंडता से काम लेना, उनका विरोध करना, उनसे लड़ाई करना और उनपर अधिकार जमाना है ... अल्लाह तआला ने उन सभी लोगों को विनष्ट कर दिया जिन्होंने उहुद के दिन अल्लाह के रसूल के खिलाफ जंग छेड़ी और कुफ़्र पर अडिग रहे।” उद्धरण समाप्त हुआ।
8- लोगों की वास्तविकता और उनके स्वभावों को प्रदर्शित करना। क्योंकि कुछ लोग ऐसे हैं जिनका गुण केवल विपत्तियों में पता चलता है।
फुज़ैल बिन अयाज़ रहिमहुल्लाह कहते हैं : “जब तक लोग कुशल-मंगल से होते हैं, उनका वास्तविक स्वभाव गुप्त रहता है। लेकिन जब उनपर कोई विपत्ति आती है, तो वे अपने वास्तविक स्वभावों की ओर लौट आते हैं; चुनाँचे मोमिन अपने ईमान की ओर लौट आता है और पाखंडी अपने पाखंड की ओर लौट जाता है।”
बैहक़ी ने ”अद-दलाइल” में अबू सलमह से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : बहुत से लोग – इस्रा व मेराज की घटना के पश्चात - भ्रमित हो गए। इसलिए कुछ लोग अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आए और उन्हें उसके बारे में बताया। उन्होंने कहा : “मैं गवाही देता हूँ कि वह सच बोल रहे हैं।" उन लोगों ने कहा : क्या आप इस बात में उनकी पुष्टि करते हैं कि वह एक ही रात में शाम (लेवंट) गए और फिर मक्का वापस आ गएॽ” अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : “हाँ, मैं तो इससे भी बढ़कर चीज़ के बारे में उनको सच्चा मानता हूँ, मैं आसमान की ख़बर (वह़्य) के बारे में उनकी पुष्टि करता हूँ। वर्णकर्ता कहते हैं : इसी कारण उनका नाम “सिद्दीक़” पड़ गया।”
9- परीक्षण लोगों को प्रशिक्षित करता और उन्हें तैयार करता है।
अल्लाह ने अपने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए, उनके बचपन ही से, कठोर जीवन को चुना, जो कठिनाइयों (विपत्तियों) से भरा हुआ था, ताकि आपको उस महान कार्य (मिशन) के लिए तैयार करे, जो आपका इंतज़ार कर रहा था और जिसपर ऐसे सुदृढ़ पुरुष ही धैर्य कर सकते हैं, जिनकी कठिनाइयों से मुठभेड़ हुई हो, तो उन्होंने सुदृढ़ता से उसका सामना किया हो, तथा वे विपत्तियों से ग्रस्त हुए हों, तो उनपर धैर्य से काम लिया हो।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का जन्म एक अनाथ के रूप में हुआ, फिर थोड़ा ही समय बीता था कि उनकी माँ का भी निधन हो गया।
अल्लाह तआला नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इसकी याद दिलाते हुए फरमाता है :
ألم يجدك يتيماً فآوى
“क्या उसने आपको एक अनाथ नहीं पाया, तो आपको शरण दीॽ” [सूरतुज़-ज़ुहा : 6]
गोया अल्लाह तआला नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को, आपकी छोटी उम्र (अल्प-वयस्कता) ही से, ज़िम्मेदारी उठाने और कठिनाइयों का सहन करने के लिए तैयार करना चाहता था।
10- इन परीक्षणों और कठिनाइयों के पीछे निहित हिकमतों में से एक यह भी है कि : मनुष्य सच्चे दोस्तों और स्वार्थी दोस्तों के बीच अंतर करने में सक्षम हो जाता है।
जैसा कि कवि ने कहा है :
अल्लाह तआला कठिनाइयों का भला करे
भले ही वे मेरे थूक से मेरा गला अवरुद्ध कर देती हैं।
(अर्थात भले ही वे मुझे शोकाकुल व व्याकुल कर देती हैं।)
मैं उन्हें केवल इसलिए धन्यवाद देता हूँ; क्योंकि उनके द्वारा मुझे अपने दुश्मन की अपने दोस्त से पहचान होगई है।
11- परीक्षण आपको आपके पापों की याद दिलाता है ताकि आप उनसे तौबा (पश्चाताप) कर लें।
सर्वशक्तिमान अल्लाह फरमाता है :
وَمَا أَصَابَكَ مِن سَيئَةٍ فَمِن نفسِكَ النساء : 79
“और आपको जो बुराई पहुँचती है, वह स्वयं आपके अपनी तरफ से है।” (सूरतुन निसा : 79)
तथा महिमावान अल्लाह फरमाता है :
وَمَا أَصابَكُم من مصِيبَةٍ فَبِمَا كَسَبَت أَيدِيكُم وَيَعفُوا عَن كَثِيرٍ الشورى : 30
"और जो कुछ भी कष्ट तुम्हें पहुँचता है, वह तुम्हारे अपने हाथों के करतूत का (बदला) है। और वह बहुत सी बातों को माफ कर देता है।" (सूरतुश्शूरा : 30)
अतः विपत्ति क़यामत के दिन सबसे बड़ी यातना के उतरने से पहले तौबा करने का अवसर प्रदान करती है; क्योंकि अल्लाह तआला फरमाता है :
وَلَنُذِيقَنهُم منَ العَذَابِ الأدنَى دُونَ العَذَابِ الأكبَرِ لَعَلهُم يَرجِعُونَ السجدة : 2 .
“निःसंदेह हम उन्हें (क़यामत के दिन की) सबसे बड़ी यातना से पहले (दुनिया में) न्यूनतम यातना का मज़ा चखाएँगे, ताकि वे लौट आएँ।” (सूरतुस-सज्दा : 21).
“न्यूनतम यातना” से अभिप्राय इस दुनिया की व्यथा, परेशानी और मनुष्य को पहुँचने वाली तकलीफ और बुराई है।
अगर जीवन निरंतर खुशहाल बना रहे, तो मनुष्य अहंकार और अभिमान की अवस्था को पहुँच जाएगा और अपने आपको अल्लाह से निःस्पृह (बेनियाज़) समझने लगेगा। इसलिए यह महिमावान अल्लाह की दया है कि वह मनुष्य का परीक्षण करता है, ताकि वह उसकी ओर वापस लौट आए।
12- परीक्षण आपके लिए इस दुनिया की सच्चाई और मिथ्यात्व को उजागर करता है और यह कि दुनिया धोखे का सामान है।
तथा संपूर्ण सच्चा जीवन, इस दुनिया के परे, एक ऐसे जीवन में है जिसमें कोई बीमारी और थकान नहीं है।
وَإِن الدارَ الآخِرَةَ لَهِىَ الحَيَوَانُ لَو كَانُوا يَعلَمُونَ العنكبوت : 64 .
निःसंदेह आख़िरत के घर का जीवन ही वास्तविक जीवन है। काश! वे जानते।” (सूरतुल अनकबूत : 64).
लेकिन यह जीवन, तो केवल कष्ट, थकान और चिंता से भरा है :
لَقَد خَلَقنَا الإِنسانَ في كَبَدٍ البلد : 4
“हमने निश्चित रूप से मनुष्य को कष्ट में बनाया है (कि वह दुनिया के कष्टों को झेलता है)।” (सूरतुल बलद : 4)
13- विपत्ति (परीक्षण) आपको स्वास्थ्य एवं कुशल-मंगल के साथ आपके ऊपर अल्लाह की कृपा की याद दिलाती है।
यह विपत्ति आपके लिए उस स्वास्थ्य और कुशल-मंगल के अर्थ की सबसे स्पष्ट व्याख्या करती है जिनका आपने लंबे वर्षों तक आनंद लिया है। लेकिन आपने उनकी मिठास का स्वाद नहीं लिया और न यथोचित उनके महत्व को समझा।
विपत्तियाँ आपको नेमतों और नेमतों के प्रदाता की याद दिलाती हैं। इस तरह वे महिमावान अल्लाह के लिए उसकी नेमत पर आभार प्रकट करने और उसकी प्रशंसा करने का कारण बनती हैं।
14- जन्नत की अभिलाषा
जब तक आप इस दुनिया की कड़वाहट का स्वाद नहीं चखते, तब तक आप जन्नत के लिए हरगिज़ लालायित नहीं होंगे। इसलिए जब आप इस दुनिया में प्रसन्न और संतुष्ट हैं, तो फिर आप जन्नत के लिए कैसे लालायित हो सकते हैंॽ
ये कुछ हिकमतें, हित और लाभ हैं, जो परीक्षण और विपत्ति के आने पर निष्कर्षित होते हैं और अल्लाह तआला की हिकमत सबसे महान है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।