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फर्ज़ रोज़े की क़ज़ा के दौरान रोज़ा तोड़ने का हुक्म

08-10-2023

प्रश्न 49985

फर्ज़ रोज़े की क़ज़ा करते समय रोज़ा तोड़ने का क्या हुक्म हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

जो भी व्यक्ति एक अनिवार्य रोज़ा शुरू करता है, जैसे कि रमज़ान के छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करना या क़सम (तोड़ने) का प्रायश्चित करना, तो उसके लिए बीमारी या यात्रा जैसे किसी वैध बहाने के बिना रोज़ा तोड़ना जायज़ नहीं है।

यदि वह - बहाने के साथ या बिना बहाने के - अपना रोज़ा तोड़ देता है, तो उसपर उस दिन की क़ज़ा करना अनिवार्य है। अतः वह उसके स्थान पर एक दिन रोज़ा रखेगा। लेकिन उसपर कोई प्रायश्चित अनिवार्य नहीं है, क्योंकि प्रायश्चित केवल रमज़ान के दिन के दौरान संभोग करने से अनिवार्य होता है। 

यदि उसने बिना किसी उज़्र (बहाने) के अपना रोज़ा तोड़ दिया था, तो उसे इस हराम काम के लिए अल्लाह से पश्चाताप करना चाहिए।

इब्ने क़ुदामा (4/412) ने कहा :

“जो भी व्यक्ति कोई अनिवार्य रोज़ा शुरू करता है, जैसे कि रमज़ान के छूटे हुए रोज़े की क़ज़ा करना, या मन्नत या प्रायश्चित्त का रोज़ा, तो उसके लिए उससे निकलना (यानी उसे छोड़ देना) जायज़ नहीं है। सब स्तुति अल्लाह की है, इस मुद्दे पर विद्वानों में कोई मतभेद नहीं है।” संक्षेप में उद्धरण समाप्त हुआ।  

अल्लामा नववी ने “अल-मजमू'” (6/383) में कहा:

“यदि कोई व्यक्ति रमज़ान के अलावा किसी अन्य रोज़े के दौरान संभोग करता है, जैसे कि छूटे हुए रोज़े की क़ज़ा, या मन्नत का रोज़ा, या इनके अलावा कोई अन्य रोज़ा, तो उसमें कोई प्रायश्चित (कफ़्फ़ारा) नहीं है। यही जमहूर (विद्वानों की बहुमत) का कहना है। क़तादा ने कहा : रमज़ान के छूटे हुए रोज़े की क़ज़ा को ख़राब करने में कफ़्फ़ारा अनिवार्य है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा देखें : अल-मुग़नी (4/378)

शैख़ इब्ने बाज़ (मजमूउल-फ़तावा 15/355) से पूछा गया :

मैं एक दिन छूटे हुए रोज़े की क़ज़ा के लिए रोज़ा रख रही थी, और ज़ुहर की नमाज़ के बाद मुझे भूख लगी, इसलिए मैंने जानबूझकर खाया-पिया, भूलवश या अज्ञानता से नहीं। तो मेरे इस कार्य का क्या हुक्म हैॽ

उन्होंने जवाब दिया :

“आपके लिए रोज़ा पूरा करना अनिवार्य है। यदि रोज़ा अनिवार्य है, जैसे कि रमज़ान की कज़ा या मन्नत का रोज़ा, तो रोज़ा तोड़ना जायज़ नहीं है। आपने जो किया है, उसके लिए आपको तौबा (पश्चाताप) करनी होगी, और जो कोई भी तौबा करता है, अल्लाह उसकी तौबा क़ुबूल करता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह (20/451) से पूछा गया :

पिछले वर्षों में मैंने अपने ऊपर बकाया क़र्ज़ को चुकाने के लिए रोज़ा रखा था, फिर मैंने जानबूझकर रोज़ा तोड़ दिया। उसके बाद मैंने उस रोज़े को एक दिन रोज़ा रखकर पूरा किया। लेकिन मुझे नहीं पता कि उसे एक दिन रोज़ा रखकर पूरा किया जाएगा, जैसा कि मैंने कियाॽ या लगातार दो महीने तक रोज़ा रखकर पूरा किया जाएगाॽ और क्या मुझपर प्रायश्चित्त करना अनिवार्य हैॽ कृपया मुझे अवगत कराएँ।

उन्होंने जवाब दिया :

“यदि कोई व्यक्ति एक अनिवार्य रोज़ा शुरू करता है, जैसे रमज़ान के छूटे हुए रोज़े की क़ज़ा करना, क़सम (तोड़ने) का प्रायश्चित (कफ़्फ़ारतुल-यमीन), या हज्ज के दौरान बाल मुँडाने के फ़िद्या का कफ़्फ़ारा, अगर मोहरिम ने एहराम से बाहर निकलने से पहले अपना सिर मुंडवा लिया, और इसके समान कोई अन्य अनिवार्य रोज़ा, तो उसके लिए वैध (शरई) उज़्र के बिना रोज़ा तोड़ना जायज़ नहीं है। इसी तरह हर वह व्यक्ति जो कोई अनिवार्य कार्य शुरू करता है – उसके लिए उसे पूरा करना अनिवार्य है, और उसके लिए उसे रोकना जायज़ नहीं है जब तक कि उसके पास कोई वैध शरई बहाना न हो जो उसे रोकने को जायज़ बनाता हो। यह महिला जिसने छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करना शुरू किया, फिर एक दिन बिना किसी बहाने के अपना रोज़ा तोड़ दिया और उस दिन की क़ज़ा कर ली, तो इसके बाद उसे कुछ और करने की ज़रूरत नहीं है। क्योकि छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा एक दिन के बदले एक ही दिन होती है। लेकिन उसके लिए अनिवार्य है कि बिना किसी बहाने के अनिवार्य रोज़ा बाधित करने के लिए अल्लाह से तौबा एवं इस्तिग़फ़ार करे।” उद्धरण समाप्त हुआ।

रोज़ों का क़ज़ा
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