हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
वे सुन्नतें जिनका एक मुसलमान को ईद के दिन ध्यान रखना चाहिए निम्नलिखित हैं:
1- नमाज़ के लिए निकलने से पूर्व स्नान करना:
मुवत्ता वगैरह में शुद्ध रूप से प्रमाणित है कि अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ईदुल फित्र के दिन ईदगाह जाने से पहले स्नान किया करते थे। (अल-मुवत्ता / 428) तथा नववी रहिमहुल्लाह ने ईद की नमाज़ के लिए स्नान करने के मुस्तहब होने पर विद्वानों की सर्वसहमति का उल्लेख किया है।
तथा वह अर्थ जिसके कारण जुमा और अन्य सार्वजनिक समारोहों के लिए स्नान करना मुस्तहब करार दिया गया है वह ईद में भी मौजूद है बल्कि वह ईद में अधिक स्पष्ट रूप से पाया जाता है।
2- ईदुल फित्र में नमाज़ के लिए निकलने से पूर्व और ईदुल अज़्हा (क़ुर्बानी की ईद) में नमाज़ के बाद खाना:
ईद के शिष्टाचार में से यह है कि आदमी ईदुल फित्र में नमाज़ के लिए न निकले यहाँ तक कि कुछ खजूरें खा ले। क्योंकि बुखारी ने अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ईदुल फित्र के दिन नहीं निकलते थे यहाँ तक कि कुछ खजूरें खा लेते थे . . . और उन्हें ताक़ (विषम) संख्या में खाते थे। (बुखारी,हदीस संख्या : 953)
ईदुल फित्र की नमाज़ के लिए निकलने से पूर्व खाना उस दिन रोज़ा रखने के निषेद्ध में अतिशयोक्ति करते हुए, तथा रोज़ा तोड़ने और रोज़े के समाप्त होने की सूचना देते हुए मुस्तहब करार दिया गया है।
तथा हाफिज़ इब्ने हजर ने इसका यह कारण वर्णन किया है कि इसमें रोज़े के अंदर वृद्धि करने के रास्ते को बंद करना पाया जाता है, तथा इसमें अल्लाह के आदेश का पालन करने में जल्दी और पहल करने का तत्व है। (फत्हुल बारी 2 / 446)
और जो व्यक्ति खजूर न पाए वह किसी भी जाइज़ चीज़ के द्वारा रोज़ा तोड़ दे।
जहाँ तक ईदुल अज़्ह़ा का संबंध है तो मुस्तहब यह है कि आदमी कोई चीज़ न खाए यहाँ तक कि नमाज़ से वापस आ जाए फिर अपनी क़ुर्बानी के गोश्त से खाए यदि उसके यहाँ क़ुर्बानी है, और यदि उसके यहाँ क़ुर्बानी नहीं है तो नमाज़ से पहले खाने में कोई आपत्ति की बात नहीं है।
3- ईद के दिन तक्बीर कहना:
यह ईद के दिन महान सुन्नतों में से है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
ولتكملوا العدة ولتكبروا الله على ما هداكم ولعلكم تشكرون [البقرة : 185]
“और ताकि तुम गिंती पूरी कर लो, और अल्लाह के प्रदान किए हुए मार्गदर्शन के अनुसार उसकी बड़ाई (महानता) का वर्णन करो और तुम उसके आभारी बनो।” (सूरतुल बक़राः 185)
तथा वलीद बिन मुस्लिम से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैं ने औज़ाई और मालिक बिन अनस से ईदैन में तक्बीर का प्रदर्शन करने के बारे में पूछा तो उन दोनों ने कहा : हाँ, अब्दुल्लाह बिन उमर ईदुल फित्र के दिन उसका प्रदर्शन करते थे यहाँ तक कि इमाम बाहर निकलता था।
तथा अबू अब्दुर्रहमान अस्सुलमी से प्रमाणित है कि उन्हों ने कहा : (वे लोग ईदुल फित्र में ईदुल अज़हा से अधिक सख्त होते थे). वकीअ़ ने कहा अर्थात तक्बीर कहने में। देखिए इर्वाउल गलील (3 / 122)
तथा दारक़ुतनी वगैरह ने रिवायत किया है कि इब्ने उमर जब ईदुल फित्र के दिन और ईदुल अज़्हा के दिन निकलते थे तो तक्बीर कहने में संघर्ष करते थे यहाँ तक कि ईदगाह आते फिर तक्बीर कहते यहाँ तक कि इमाम (नमाज़ पढ़ाने के लिए) निकलता था।
तथा इब्ने अबी शैबा ने सही सनद के साथ ज़ोहरी से वर्णन किया है कि उन्हों ने कहा : (लोग ईद में जब अपने घरों से निकलते थे तो तक्बीर कहते थे यहाँ तक कि वे ईदगाह आते और यहाँ तक कि इमाम बाहर निकलता। जब इमाम निकल आता तो वे चुप हो जाते थे। फिर जब वह तक्बीर कहता तो लोग भी तक्बीर कहते थे)। देखिएः इर्वाउल गलील (2 / 121)
घर से ईदगाह की तरफ निकलने और इमाम के आने तक तक्बीर कहना सलफ (पूर्वजों) के निकट एक बहुत प्रसिद्ध बात थी, तथा मुसन्नेफीन के एक समूह जैसे कि इब्ने अबी शैबा, अब्दुर्रज़्ज़ाक़ और फिर्याबी ने किताब (अहकामुल ईदैन) में इसे सलफ के एक समूह से उल्लेख किया है, उसी में से यह उद्धरण है कि नाफे बिन जुबैर तक्बीर कहते थे और लोगों के तक्बीर न कहने से आश्चर्य करते थे, चुनाँचे वे कहते थे : (आप लोग तक्बीर क्यों नहीं कहते).
तथा इब्ने शिहाब ज़ोहरी रहिमहुल्लाह कहा करते थे : (लोग अपने घरों से निकलने से लेकर इमाम के प्रवेश करने तक तक्बीर कहते थे।)
ईदुल फित्र में तक्बीर का समय ईद की रात से शुरू होता है और इमाम के ईद की नमाज़ के लिए आने तक रहता है।
तथा ईदुल अज़्हा में तक्बीर ज़ुलहिज्जा के पहले दिन से शुरू होता है और तश्रीक़ (11-13 ज़ुलहिज्जा) के अंतिम दिन सूरज डूबने तक रहता है।
तक्बीर का तरीक़ा :
मुसन्नफ इब्ने अबी शैबा में सहीह सनद के साथ इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि : वह तश्रीक़ (11, 12, 13 ज़ुलहिज्जा) के दिनों में यह तक्बीर कहते थे : “अल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर, ला इलाहा इल्लल्लाह, वल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर व लिल्लाहिल हम्द” (अल्लाह बहुत महान है, अल्लाह बहुत महान है, अल्लाह के सिवा कोई वास्तविक पूज्य नहीं, और अल्लाह बहुत महान है, अल्लाह बहुत महान है, और हर प्रकार की प्रशंसा केवल अल्लाह के लिए है)। तथा इसे इब्ने अबी शैबा ने दूसरी बार इसी सनद से तक्बीर (अल्लाहु अक्बर) के शब्द को तीन बार रिवायत किया है।
तथा अल-महामिली ने सहीह सनद के साथ इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से ही तक्बीर के ये शब्द रिवायत किए हैं : “अल्लाहु अक्बर कबीरा, अल्लाहु अक्बर कबीरा, अल्लाहु अक्बर व अजल्ल, अल्लाहु अक्बर व लिल्लाहिल हम्द।” देखिए : इर्वाउल गलील (3/126)
4- बधाई देना :
ईद के शिष्टाचार में से अच्छी बधाई भी है जिसका लोग आपस में आदान प्रदान करते हैं उसके जो भी शब्द हों, उदाहरण के तौर पर कुछ लोगों का यह कहना : “तक़ब्बलल्लाहु मिन्ना व मिन्कुम” (अल्लाह हमारे और आपके आमाल स्वीकार करे) या “ईद मुबारक” या इसके समान बधाई के अन्य वाक्य।
तथा जुबैर बिन नुफैर से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा जब ईद के दिन मिलते थे तो एक दूसरे से कहते थे: “तुक़ुब्बिला मिन्ना व मिन्क” (हम से और आपसे क़बूल किया जाए)। इब्ने हजर ने कहा है कि : इसकी इसनाद सही है। फत्हुल बारी (2/446)
बधाई देना सहाबा के निकट परिचित और प्रसिद्ध था, और विद्वानों जैसे कि इमाम अहमद वग़ैरह ने इसकी रूख्सत दी है, तथा ऐसी चीज़ें वर्णित हैं जो इस पर तर्क हैं जैसेकि अवसरों पर बधाई देने की वैद्धता, तथा सहाबा का कोई प्रसन्नता प्राप्त होने पर एक दूसरे को बधाई देना उदाहरण के तौर पर अल्लाह तआला किसी व्यक्ति की तौबा को स्वीकार कर लेता तो वे लोग उसे इसकी बधाई देते थे, इत्यादि।
इसमें कोई संदेह नहीं कि यह बधाई देना अच्छे व्यवहार और मुसलमानों के बीच अच्छे सामाजिक दर्शनों में से है।
तथा बधाई के विषय में कम से कम इतनी बात कही जा सकती है कि जो आपको ईद की बधाई दे उसे आप भी ईद की बधाई दें, और यदि वह चुप रहे तो आप भी खामोश रहें, जैसाकि इमाम अहमद रहिमहुल्लाह ने कहा है : यदि कोई मुझे बधाई देता है तो मैं उसे बधाई का उत्तर दूँगा अन्यथा मैं स्वयं आरंभ नहीं करूँगा।
5- ईद के लिए सुशोभित होना :
अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा उमर ने इस्तबरक़ (मोटा रेशम) का एक जुब्बा लिया जो बाज़ार में बेचा जा रहा था, और उसे लेकर अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास और कहा, ऐ अल्लाह के पैगंबर आप इसे खरीद लें इसके द्वारा आप ईद और प्रतिनिधि मंडल के लिए अपने आपको सुशोभित करें, तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे कहाः यह ऐसे व्यक्ति का पोशाक है जिसका कोई हिस्सा नहीं है ... इसे बुखारी (हदीस संख्या : 948) ने रिवायत किया है।
तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के ईद के लिए सुशोभित होने की बात पर सहमति जताई किंतु उनकी उस जुब्बे को खरीदने की बात का खंडन किया ; क्योंकि वह रेशम का था।
तथा जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास एक जुब्बा था जिसे आप दोनों ईदों और जुमा के दिन पहनते थे। (सहीह इब्ने खुज़ैमा : 1765)
तथा बैहक़ी ने सहीह सनद के साथ रिवायत किया है कि इब्ने उमर ईद के लिए अपना सबसे खूबसूरत कपड़ा पहनते थे।
अतः आदमी को चाहिए कि ईद के लिए निकलते समय उसके पास जो सबसे अच्छा कपड़ा हो उसे पहने।
जहाँ तक महिलाओं का संबंध है तो जब वे बाहर निकलेंगीं तो श्रृंगार से दूर रहेंगी क्योंकि उन्हें पराये मर्दों के लिए श्रृंगार का प्रदर्शन करने से मना किया गया है, इसी प्रकार जो औरत बाहर निकलना चाहती है उसके ऊपर सुगंध लगाना या पराये मर्दों को फित्ने में डालना हराम (निषिद्ध) है, क्योंकि वह उपासना और आज्ञाकारिता के लिए निकली है।
6- नमाज़ के लिए एक रास्ते से जाना और दूसरे रास्ते से वापस आना:
जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ईद के दिन रास्ता बदल देते थे। इसे बुखारी (हदीस संख्या : 986) ने रिवायत किया है।
कहा गया है कि इसकी हिक्मत (तत्वदर्शिता) यह है कि परलोक के दिन अल्लाह के पास दोनों रास्ते उसके लिए गवाही दें, तथा क़ियामत के दिन धरती, उसके ऊपर जो अच्छाई और बुराई की गई है उसको बयान करे।
तथा यह बात भी कही गई है किः यह दोनों रास्ते में इस्लाम के प्रतीक का प्रदर्शन करने के लिए है।
तथा एक कथन यह है किः यह अल्लाह के स्मरण (ज़िक्र) का प्रदर्शन करने के लिए है।
तथा कहा गया है किः यह मुनाफिक़ों (पाखंडियों) और यहूदियों को क्रोध दिलाने के लिए है और ताकि वह उसके साथ जो लोग हैं उनकी अधिकता से उन्हें भयभीत करे।
तथा यह भी कहा गया है किः ऐसा इसलिए है ताकि लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करे जैसे कि फत्वा पूछना, शिक्षा देना, अनुसरण, तथा ज़रूरतमंदों पर दान करना, या ताकि अपने रिश्तेदारों की ज़ियारत करे और अपने निकट संबंधियों के साथ सद्व्यवहार करे।