हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अनिवार्य यह है कि इशा की नमाज़ आधी रात से पहले पढ़ी जाए, तथा उसे आधी रात तक विलंबित करना जायज़ नहीं है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “इशा का समय आधी रात तक है।” इसे मुस्लिम (अल-मसाजिद व मवाज़िउस्सलात/964) में रिवायत किया है।
इसलिए आप इसे खगोलीय चक्रों की गणना के अनुसार आधी रात से पहले पढ़ेंगे, क्योंकि रात बढ़ती और घटती रहती है। इसका नियम घंटों के हिसाब से आधी रात है। इसलिए अगर रात दस घंटों की है, तो पाँचवें घंटे के अंत तक इसमें विलंब करना जायज़ नहीं है। और सबसे अच्छा यह है कि यह रात के पहले तिहाई हिस्से में हो। जो व्यक्ति इसे इशा के समय की शुरुआत में पढ़ता है, तो इसमें कोई बात नहीं। लेकिन यदि कुछ समय के लिए विलंब कर दी जाए, तो यह बेहतर है; क्योंकि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इशा की नमाज़ को कुछ समय के लिए विलंब करना पसंद करते थे। यदि कोई इशा की नमाज़ उसके प्रथम समय में शफ़क़ – अर्थात् सूरज डूबने के बाद क्षितिज पर दिखाई देने वाली लाली - के ग़ायब होने के बाद ही पढ़ता है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है, और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखने वाला है।