बुधवार 15 शव्वाल 1445 - 24 अप्रैल 2024
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उसने क़ुर्बानी देने का इरादा किया फिर उसने अपना इरादा बदल दिया, क्या उसके लिए ऐसा करना जायज़ हैॽ

प्रश्न

क़ुर्बानी की नीयत करने के बाद हज्ज के तीसरे दिन क़ुर्बानी के इरादे से पलटने का क्या हुक्म हैॽ इसका कारण यह है कि उसके लिए क़ुर्बानी के जानवर का चुनना और उसे ज़बह करना मुश्किल है। तथा उसके पास कोई महरम नहीं है जो इस काम में उसकी मदद कर सके।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

क़ुर्बानी के संबंध में मूल सिद्धांत यह है कि यह सुन्नत-ए-मुअक्कदा है और इस्लाम के दृश्य प्रतीकों में से एक प्रतीक है। शरीयत ने इसके लिए प्रोत्साहित किया है और उसपर बल दिया है। बल्कि कुछ विद्वानों का मत यह है कि जो इसे वहन कर सकता है उसके लिए यह अनिवार्य है। अधिक जानकारी के लिए कृपया प्रश्न संख्या (36432 ) का उत्तर देखें।

दूसरा :

जब यह निर्धारित हो गया कि क़ुर्बानी सुन्नत है, तो यदि किसी व्यक्ति ने क़ुर्बानी करने का इरादा किया, फिर उसने अपना इरादा कैंसिल कर दिया : तो उसपर अपने इरादे से फिरने की वजह से कोई दोष नहीं है। परंतु यदि उसने क़ुर्बानी के उस जानवर को जिसे वह ज़बह करेगा यह कहकर निर्दिष्ट कर दिया है कि : “यह क़ुर्बानी का जानवर है”, या इसी आशय का कोई दूसरा शब्द, जिससे क़ुर्बानी का जिनवर निर्दिष्ट (चिह्नित) हो जाता है। तो ऐसी स्थिति में उसके लिए उसे ज़बह करना अनिवार्य है और उसके लिए उसके प्रति अपना इरादा बदलना जायज़ नहीं है। क्योंकि जब उसने उसे (क़ुर्बानी के रूप में) निर्दिष्ट (निर्धारित) कर दिया तो वह उसके स्वामित्व से निकल गया।

यदि उसने उसे क़ुर्बानी करने के इरादे से खरीदा, लेकिन उसने उसे “यह क़ुर्बानी का जानवर है” कहकर निर्दिष्ट नहीं किया, तो विद्वानों ने इस बारे में मतभेद किया है कि उसके लिए उसे ज़बह करना अनिवार्य है या नहींॽ

सही दृष्टिकोण यह है कि उसके लिए ऐसा करना आवश्यक नहीं है, जैसे कि अगर उसने अपने घर को वक़्फ़ करने का इरादा किया और फिर उससे पलट गया, तो उसपर कोई दोष नहीं है। यही बात क़ुर्बानी के मामले में भी लागू होती है।

देखें : “अल-मुग़्नी” (9/353), “अल-मजमू” (8/402) और “अश-शरहुल मुम्ते’ (7/466).

चूँकि आपने अभी तक क़ुर्बानी करने के लिए कोई जानवर नहीं खरीदा है, और प्रत्यक्ष है कि आपने उसे निर्दिष्ट नहीं किया है; तो आपके लिए मात्र नीयत (इरादे) के कारण क़ुर्बानी करना अनिवार्य नहीं है।

तथा ज्ञात होना चाहिए कि क़ुर्बानी के जानवर को चुनने और उसे आपकी ओर से ज़बह करने के लिए महरम का होना शर्त (आवश्यक) नहीं है। बल्कि अगर आप ऐसा करने लिए किसी भरोसेमंद व्यक्ति, या किसी धर्मार्थ संगठन को वकील (प्रतिनिधि) नियुक्त कर देती हैं, तो यह संभव है और - इन शा अल्लाह - इससे आपको क़ुर्बानी का अज्र व सवाब मिलेगा।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर