हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
सर्व प्रथम :
छल्ले, कान की बालियाँ और कंगन पहनना महिलाओं के आभूषण में से हैं। इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने महिलाओं की छवि अपनाने वाले पुरूषों और पुरूषों की छवि अपनाने वाली महिलाओं पर लानत (धिक्कार) की है।'' इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5435) ने रिवायत किया है।
तथा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने फरमाया कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने, उस आदमी पर जो महिला की पोशाक पहनता है और उस महिला पर जो मर्द की पोशाक पहनती है, लानत भेजी है।'' इसे अबू दाऊद ने अपनी सुनन में किताबुल्लिबास के अंदर लिबासुन्निसा (औरतों के पोशाक) के अध्याय में रिवायत किया है।
इस आधार पर, मर्द के लिए अपने कानों में बालियाँ पहनना, तथा अपने कानों या नाक में छल्ले पहनना जायज़ नहीं है। तथा इसे जायज क़रार देने वालों का इस बात से दलील पकड़ना कि क़ुरैश गोत्र के लोग ऐसा किया करते थे, तो सबसे पहले इसके लिए दलील साबित करने की ज़रूरत है, तो वह दलील कहाँ है ?
दूसरी बात : यदि वे लोग जाहिलियत के समय काल में ऐसा किया करते थे और इस्लाम ने आकर मर्द को औरत का आभूषण पहनने और उसकी छवि अपनाने से रोक दिया, जैसाकि पिछली हदीसों में बीत चुका है, तो जो कुछ शरीयत लेकर आई है उसका एतिबार होगा, क़ुरैश या उनके अलावा किसी अन्य के अमल का कोई एतिबार नहीं है।''
तीसरी बात :
महिला का आभूषण जो क़ुरैश वगैरह के यहाँ परिचित था, वह दोनों कानों की बालियों, दोनों हाथों में कंगन, पिंडलियों में पायल और बाज़ू में बाज़ूबंद को सम्मिलित है, कहने का मतलब यह कि इन चीज़ों का महिला के आभूषण से होना प्राचीन समय से ही परिचित और ज्ञात है।
चौथा : इस्लामी शरीअत ने श्रृंगार के मुद्दे में पुरूषों के लिए चाँदी की अँगूठी पहनना वैध ठहराकर उन्हें बेनियाज़ कर दिया है, जैसाकि इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने चाँदी की अँगूठी तैयार करवाई, तो लोगों ने भी चाँदी की अँगूठियाँ बनवाईं।'' इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 5417) ने रिवायत किया है। तथा शरीअत ने ज़रूरत के समय पुरूषों के लिए दाँतों और नाक आदि के बदले (विकल्प) में सोने और चाँदी के प्रयोग की रूख्सत दी है।
पाँचवी बात: हम कहते हैं कि मुसलमानों में से जो व्यक्ति छल्ले, कड़े पहनता है वह इस बारे में काफिरों की छवि अपनाता है, क्योंकि आजकल यह चीज़ उनके यहाँ परिचित है, यह उनका फैशन बन चुका है कि वे कानों, नाक, होंठ, गाल, चेहरे और इनके अलावा शरीर के अन्य भागों में पहनते हैं। जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ‘‘जिसने किसी जाति की छवि अपनाई वह उन्हीं में से है।'' अबू दाऊद ने इसे अपनी किताब सुनन में किताबुल लिबास, बाब फी लिबासिश शोहरा में रिवायत किया है।
अतः ऐसा करने वाले को चाहिए कि अल्लाह के समक्ष तौबा करे, और बातिल के द्वारा कठ हुज्जती न करे, और अपने व्यक्तित्व और पोशाक के द्वारा काफिरों से उत्कृष्ट रहे, जैसाकि हमारी शरीयत ने हमें इसका आदेश दिया है। और अल्लाह तआला ही सीधे पथ की ओर मार्गदर्शन करनेवाला है।
इस्लाम प्रश्न और उत्तर